भारत के 65वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे मुख्य अतिथि बनकर आए. जापानी प्रधानमंत्री की भारत यात्रा से न स़िर्फ भारत की रणनीतिक भागीदारी एक बार फिर से मजबूत हुई है, बल्कि दोनों देशों के प्रगाढ़ होते संबंधों पर चीन सहित अन्य विश्व शक्तियों की नज़रें भी टिक गई हैं. शिंजो अबे ने भारत के साथ आठ महत्वपूर्ण समझौते भी किए, जिसे भारत और जापान के बीच सहयोग के नए द्वार के तौर पर देखा जा रहा है. दोनों देशों के इस आपसी सहयोग से पूरे क्षेत्र में शांति और सुरक्षा बनाए रखने में मदद मिलेगी.
भारत ने 26 जनवरी, 2014 को 65वां गणतंत्र दिवस मनाया. इस बार गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि थे जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे. जापानी प्रधानमंत्री के साथ आए प्रतिनिधिमंडल में विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों के अलावा उच्च प्रौद्योगिकी कंपनियों के उद्यमी भी शामिल थे. भारत और जापान ने इस अवसर पर आपसी सहयोग के आठ समझौतों पर हस्ताक्षर किए. भारत-जापान के संबंध कभी भी बहुत अनबन वाले नहीं रहे. शिंजो अबे ने 2012 में जब दूसरी बार जापान के प्रधानमंत्री के रूप में कामकाज संभाला, तब भारत और जापान के रिश्तों में और भी मिठास घुल गई. इन दोनों देशों के रिश्ते की गर्माहट का ही असर है कि दो महीने पहले जापान के उम्रदराज सम्राट अकिहितो और उनकी पत्नी ने भी भारत का दौरा किया था. यह इस मामले में खास है कि जापान के सम्राट अकिहितो बहुत कम ही कहीं जाते हैं.
ऐसा नहीं कि केवल भारत को ही जापान की ज़रूरत है, बल्कि जापान को भी भारत की आवश्यकता है. इस बात पर शिंजो अबे ने जोर दिया. शिंजो ने कहा कि जापान को मानव संसाधन की आवश्यकता है, जो भारत के पास है. उन्होंने कहा कि दवाओं के अलावा जापान के पास कृषि क्षेत्र से जुड़ी प्रौद्योगिकी भी है, जिसमें दोनों देशों के बीच गठबंधन की संभावनाएं हैं. ऊर्जा के क्षेत्र में भी भारत जापान से फायदा उठा सकता है, क्योंकि जापान के पास सक्षम प्रौद्योगिकी है, जो कार्बनडाई ऑक्साइड के उत्सर्जन को कम कर सकती है. दोनों देशों के बीच वर्ष 2011 में व्यापक मुक्त व्यापार समझौता लागू हो चुका है. जापान भारत को उसकी बुनियादी सुविधाओं को आधुनिक बनाने में सहयोग दे रहा है. जापान भारत में दिल्ली-मुंबई औद्योगिकी गलियारे के विकास में भी मदद कर रहा है.
भारत और जापान के बीच द्विपक्षीय व्यापार का झुकाव जापान के पक्ष में है. वर्ष 2012-13 में दोनों देशों के बीच 18.51 अरब डॉलर का व्यापार हुआ, जबकि एक साल पहले यह व्यापार 18.32 अरब डॉलर का था. भारत में जापान से अप्रैल 2000 से अक्टूबर 2013 के बीच 15 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त हुआ, जो देश में प्राप्त कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का सात प्रतिशत रहा है. जापान इस समय भारत में निवेश करने वाला चौथा सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है. अप्रैल 2000 से मार्च 2013 तक भारत में जापान ने 14.5 बिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया है. जापान भारत की लुक ईस्ट पॉलिसी का केंद्र है. वह हमारे आर्थिक विकास और शांतिपूर्ण, स्थिर एवं समृद्ध एशिया तथा दुनिया के लिए हमारे प्रयास में मुख्य भागीदार है. हमारे साझा मूल्यों और हितों में, मजबूत एवं आर्थिक रूप से सक्षम जापान और तेजी से बढ़ रहे भारत के बीच भागीदारी क्षेत्र की भलाई के लिए प्रभावी ताकत बन सकती है. बड़ी बात यह है कि वर्तमान में जापान के साथ भारत के जिस तरह के राजनीतिक रिश्ते हैं, उनके आने वाले दिनों में और अधिक प्रगाढ़ होने की प्रबल संभावना है. परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण प्रयोग में सहयोग के लिए समझौते की दिशा में पिछले कुछ महीनों में तेजी से प्रगति हुई है.
यूएस-2 एम्फिबियन विमान पर हमारे संयुक्त कार्य समूह ने भारत में इसके उपयोग और सह-उत्पादन पर सहयोग के तौर-तरीकों की तलाश के लिए बात की है. अधिक व्यापक रूप से, हम उन्नत प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में अपना सहयोग बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं. जापान विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचे के लिए भारत की उन सर्वाधिक महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में विशिष्ट भागीदार है, जो हमारी सरकार ने हाल के वर्षों में शुरू की हैं. ये परियोजनाएं हैं-पश्चिमी समर्पित माल गलियारा, दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा, आईआईटी हैदराबाद और नियोजित चेन्नई-बंगलुरु औद्योगिक गलियारा. भारत ने इन फ्लैगशिप परियोजनाओं पर विचार किया है. इनके समेत भारत की कई अन्य परियोजनाओं में जापान की विदेशी निवेश सहायता ने भारत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी जापान के इस सहयोग के प्रति दिल से आभार प्रकट किया है, जो यह बताता है कि जापान द्वारा की जा रही यह मदद भारत के लिए कितनी महत्वपूर्ण है और इस मदद को भारत किस रूप में देखता है. जापान सरकार और वहां के औद्योगिक घरानों के लिए भारत का कितना महत्व है, उसे इस बात से समझा जा सकता है कि भारत में अभी भी 1000 जापानी कंपनियां काम कर रही हैं और हाल में इन कंपनियों में 16 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. भारत सरकार ने जापान से भारत में और अधिक निवेश करने को कहा है, क्योंकि सरकार का मानना है कि यहां निवेश की अभी काफी गुंजाइश है.
भारत और जापान ने इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ-साथ ऊर्जा के क्षेत्र में एक्सपर्ट और ऊर्जा की बचत करने वाली प्रौद्योगिकियों के निर्माण, अनुसंधान एवं विकास के क्षेत्र में ठोस सहयोग के लिए विचारों का आदान-प्रदान भी किया है, जिसका फायदा आने वाले वर्षों में देखने को मिलेगा. हाल के वर्षों में भारत और जापान के बीच पर्यटन एवं नागरिक विमानन क्षेत्र में काफी कार्य हुआ है. मनमोहन सिंह ने जापान में सजायाफ्ता भारतीय कैदियों के तबादले और उनके आपराधिक मामलों पर आपसी क़ानूनी सहायता जैसे क्षेत्रों में लंबित कानूनी ढांचे को निष्कर्ष तक पहुंचाने के लिए जापान के प्रधानमंत्री का समर्थन मांगा. भारत जापान के साथ कनेक्टिविटी परियोजनाओं की संभावनाएं तलाश रहा है. भारत और जापान के बीच आसियान एवं पूर्व एशिया शिखर सम्मेलनों में काफी अच्छा समन्वय है. जापान भारत को नालंदा विश्वविद्यालय परियोजना के लिए काफी सहयोग करता रहा है और जापान का यह सहयोग आगे भी जारी रहने की उम्मीद है. भारत और जापान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधारों और जी-20 जैसे सम्मेलनों के जरिये वैश्विक समृद्धि के लिए कार्य करने पर भी सहमत हुए हैं.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात के दौरान अबे ने दिल्ली मेट्रो के लिए दो अरब डॉलर का कर्ज देने की घोषणा भी की. दोनों प्रधानमंत्रियों ने दोनों देशों की रणनीतिक एवं वैश्विक साझीदारी को दुनिया के किसी अन्य द्विपक्षीय साझीदारी से सर्वाधिक संभावना वाला करार दिया. पिछले महीने भारत के चेन्नई के तटीय किनारों वाले जल स्रोतों में भारत और जापान की सेनाओं ने नौसैन्य युद्धाभ्यास किया था. इसी तरह का युद्धाभ्यास दोनों देशों ने जून 2012 में जापानी जल स्रोतों में किया था. भारत-जापान का यह अभ्यास वार्षिक रूप ले चुका है. भारत और जापान के बीच पर्यटन को बढ़ावा देने, भारत की बिजली उत्पादन क्षमता बढ़ाने समेत आठ समझौतों पर हस्ताक्षर भी हुए. मनमोहन सिंह ने भारत के आर्थिक विकास में जापान को महत्वपूर्ण साझीदार बताया. बाद में दोनों प्रधानमंत्रियों ने दोनों देशों के बीच वीजा प्रणाली को सरल बनाने की ज़रूरत पर जोर दिया और इसके लिए आगे भी प्रयास जारी रखने पर सहमति जताई.
भारत और जापान के बीच बढ़ती नजदीकियां ऐसे वक्त में भी देखी जा रही हैं, जब पूर्वी चीन सागर में विवादित द्वीप समूहों को लेकर जापान और चीन के बीच तनाव की स्थिति है. जापान का चीन के कुछ बिंदुओं पर गहरा मतभेद है. दूसरी तरफ़ भारत का भी चीन से सीमा विवाद सहित कई अन्य बिंदुओं पर मतभेद है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भारत और जापान के सहयोगी रिश्ते को चीन के ख़िलाफ़ देखा जाए. चीन के साथ मित्रवत संबंध भारत और चीन दोनों के हित में है और चीन से दुश्मनी की शर्तों पर भारत और जापान एक-दूसरे के क़रीब कभी नहीं आना चाहेंगे. विश्व राजनीति को आज की तारीख में दुश्मनी की नहीं, बल्कि दोस्ती की दरकार है. ज़रूरत तो इस बात की है कि भारत के चीन के साथ भी रिश्ते मधुर रहें और वह जापान के साथ भी सहयोगात्मक रवैया बनाए रखे. हालांकि जापान का चीन के साथ एक द्वीप को लेकर गंभीर विवाद है. वह द्वीप है सेनकाकू. सेनकाकू एक निर्जन द्वीप समूह है, जो पूर्वी चीन सागर में स्थित है. इस विवादित द्वीप पर जापानी झंडा फहराने को लेकर चीन एवं जापान के संबंधों में तल्खी आज भी बरकरार है. यह द्वीप समूह वर्षों से जापान के प्रशासनिक क्षेत्र का हिस्सा है, लेकिन चीन इस पर अपना दावा जताता रहा है. चीन का कहना है कि द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले यह द्वीप समूह उसके कब्जे में था, इसलिए वह कभी इस बात को स्वीकार नहीं करेगा कि यह जापान का क्षेत्र है. जापान इस द्वीप समूह को सेनकाकू कहकर पुकारता है, तो चीन इसे दियाओउ द्वीप समूह कहता है. दरअसल, इस द्वीप समूह को लेकर विवाद का मुख्य कारण इस क्षेत्र के समुद्र में प्राकृतिक गैस का विशाल भंडार है, जिस पर दोनों देशों की नज़र है. इस मामले में भारत को कूटनीतिक रूप से जापान से क़रीबियां बढ़ानी होंगी.
भारत-जापान सहयोग : क्या है खास
ऐसा नहीं कि ये बातें यूं ही कही जा रही हैं, बल्कि जापान और उसके वर्तमान प्रधानमंत्री शिंजो अबे का भारत के प्रति नरम रुख का लंबा इतिहास रहा है. 2007 में लिखी अपनी पुस्तक टुवार्ड्स अ ब्यूटीफुल कंट्री: माई विजन फॉर जापान में शिंजो अबे ने भारत को काफी अहमियत दी है और कहा है कि आने वाले दशक में भारत और जापान का रिश्ता अगर जापान-अमेरिका का स्थान ले ले, तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
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बुधवार, 19 फ़रवरी 2014
सहयोग के खुलते नए द्वार
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