रविवार, 23 मार्च 2014

सरदार कहाँ है इस युद्ध में…

गौरव अवस्थी
जिन्होंने देश पर दस साल राज किया। इन वर्षों में देश कहाँ से कहाँ (कांग्रेसी  कहते हैं उत्कर्ष पर, विरोधी कहते हैं रसातल में और जनता कहती है मुश्किल में) पहुँचा दिया। कहते हैं कि उनकी ही नीतियों से भारत दुनिया की दूसरी सबसे तेज गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था वाला देश बन चुका है।  दस वर्षों में जिन्होंने एक नहीं तमाम माइलस्टोन गाढ़े। मसलन-प्रति व्यक्ति आय 2004 के मुकाबले 24143 से बढ़कर वर्ष 2012-13 में 68747 पहुँच गई। जीडीपी(ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट ) बढ़कर 100. 28 लाख करोड़ गया। जो 2004-05 में सिर्फ 32. 42 लाख करोड़ ही था। इन्हीं दस वर्षों में 14 करोड़ लोगों को गरीबी की रेखा से ऊपर उठाया गया। सूचना, शिक्षा और चलते-चलते 70 करोड़ लोगों को भोजन का अधिकार भी इन्हीं सरदार ने दिया। सभी मील के पत्थर गिनाने या लिखने में एक पूरा ग्रन्थ तैयार होने की सम्भावना है इसलिए सबका जिक्र यहाँ रोक रहा हूँ। सुधी पाठक और जागरूक लोग सब देखते-सुनते और समझते चले ही आ रहे हैं।
इन सरदार के सर पर केवल विकास और गति तेज करने का ही सेहरा नहीं है। पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बाद सबसे ज्यादा समय तक प्रधानमंत्री पद पर बने रहने के रिकॉर्ड निर्माण का ताज भी उन्ही के माथे पर है। आप समझ ही गये होंगे कि यह सब किया धरा  एक ऐसे सरदार का है जिसे टीवी पर देखते समय एक चाबी वाले खिलौने का अहसास होता है। कभी-कभी वह टेडी बियर लगता है। उसने जितना किया उससे ज्यादा धोया लेकिन फिर भी ….
अब जब लोकतंत्र का चुनावी उत्सव दूसरे शब्दों में “युद्ध” बाकायदा शुरू है। देश को इतनी प्रगति पर ले जाने वाले सरदार को दूसरी सेनाओं (विरोधी पार्टियों ) से लड़ते-भिड़ते दिखना चाहिए था। मोर्चे पर डटा हुआ होना चाहिए था। आरोपों-प्रत्यारोपों का जवाब भी उन्हें ही देना चाहिए था लेकिन समय की बलिहारी देखिये कि क्रांति करने वाला वही सरदार युद्ध में कितना अ-सरदार हो गया है।  ना उसकी अपनी सेना ( पार्टी ) पूछ रही है और ना विरोधी दल। सारे हमले या तो कांग्रेस पर हैं या उनके सेनापति ( राहुल गांधी ) पर। यह सरदार तो लोकतंत्र के चुनावी युद्ध के परिदृश्य से गायब हैं। ना अपील मेंना सभाओं में ना विज्ञापनो में। आम चुनाव की अधिसूचना जारी होने के पहले भारत निर्माण के विज्ञापनों में इस सरदार के दर्शन हो जाते थे पर अब उन पर “ढूँढते रह जाओगे …” वाली विज्ञापनी उक्ति ही सटीक बैठ रही है। सरदार का कोई नाम लेवा तक नहीं है। हाँ, उनकी एक जगह है कांग्रेस की स्टार प्रचारक की लिस्ट में। अभी सभी प्रदेशों की लिस्ट तो चुनाव आयोग तक नहीं पहुँची हैं लेकिन असम की  लिस्ट में उनका नाम दूसरे नम्बर पर दर्ज है।  विश्वास है कि हर प्रदेश के स्टार प्रचारक की सूची में उनका नाम जरूर रहेगा लेकिन उनकी कही से कोई डिमांड नहीं है। उस प्रदेश में भी नहीं जहाँ से वे चोर दरवाजे से राज्य सभा में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं यानी असम में।

लगता ही नहीं कि शोर-शराबे वाले चुनाव के इस दौर में भारतीय राजनीति में कोई सरदार भी है। मैं आपसे एक सवाल पूछता हूँ सच बताइयेगा कि राजनीति की मुख्य धारा ही नहीं प्रधानमंत्री पद पर रहते हुये क्या किसी नेता को आपने “था” की पोजीशन इस 67 वर्षीय लोकतंत्र में कभी देखी है। देश ने एक से एक कमजोर प्रधानमंत्री-देवेगौड़ा और गुजराल सरीखे- भी देखे, लेकिन इतने काठ के तो वो भी नहीं हुये जितने अपने यह सरदार जी। कोई कैसे सोच सकता है कि जिसने प्रधानमंत्री जैसे पद पर रहकर देश की इतनी अमूल्य सेवा की हो। देश को इतनी तरक्की दिलाई हो वह युद्ध ( चुनाव ) में इतना नकारा हो जाए कि लोग ( पक्ष-विपक्ष ) उसका  नाम तक ना लें।  ऐसे देश सेवक के बारे में आपका क्या नजरिया होगा आप ही जाने लेकिन हम तो व्यथित हैं। शर्मिंदा हुये जा रहे हैं सरदार का यह हश्र सोच-सोच कर। लोग पद और पॉवर मिलने पर कालजयी काम करते हैं ताकि नाम अजर-अमर हो जाये और अपने सरदार तो वर्त्तमान जयी भी ना बन पाये। ऐसे सरदार को अब क्या कहें।

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गौरव अवस्थी, वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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