रविवार, 23 मार्च 2014

सरकार को सामाजिक विज्ञान अनुसंधान में ज्यादा निवेश करने की जरूरत

सम्मेलन में समाज विज्ञान अनुसंधान के पहलुओं पर रोशनी डाली गई

दक्षिण एशियाई देशों की सरकारों को इस विषय पर अधिक निवेश करने को कहा

 सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषदों के संघ ने इस विषय पर चर्चा की

नई दिल्ली, 13 मार्च 2014ः सामाजिक विज्ञान अनुसंधान नीति निर्माण हेतु पर्याप्त साक्ष्य आधारित सहयोग दे सके, इसके लिए थिंक टैंकों (विचार समूहों) और विश्वविद्यालयों के पास मजबूत संस्थागत क्षमताएं होनी चाहिए, विशेषकर उत्तम मानव संसाधनों, पर्याप्त अनुसंधान अनुदान और स्वायत्तता व कड़ीे क्वालिटी मूल्यांकन प्रक्रियाओं के मामले में ताकि वे ज्ञान प्रदाता की अपनी भूमिका को अच्छी तरह निभा सकें। इस बात के मद्देनजर भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR) और उसके सहयोगियों आह्वान किया कि जानकारीपूर्ण नीति निर्माण में अपनी भूमिका बढ़ाने के लिए सामाजिक विज्ञान अनुसंधान के मोर्चों पर और आगे बढ़ें। उन्होंने भारत सरकार तथा अन्य दक्षिण एशियाई देशों से आग्रह किया कि पुख्ता व प्रगतिशील इंफ्रास्ट्रक्चर एवं ईकोसिस्टम की रचना के लिए सामाजिक विज्ञान अनुसंधान के क्षेत्र में और ज्यादा निवेश करें ताकि नीति निर्माण के काम में पर्याप्त सहयोग दिया जा सके।
भारत, दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के विद्वानों व नीति निर्माताओं ने इस राय पर स्वीकृति जाहिर की। ये सभी, सामाजिक विज्ञान अनुसंधान पर हुए एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में आए थे जिसे प्ब्ैैत् ने इंटरनैशनल डैवलपमेंट रिसर्च सेंटर (IDRC) तथा थिंक टैंक इनिशिएटिव (TTI) के साथ मिलकर आयोजित किया था। यहां आए प्रतिनिधियों ने कहा कि सामाजिक विज्ञान अनुसंधान इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने और शक्तिशाली व स्वतंत्र थिंक टैंक व विश्वविद्यालय बनाने की जरूरत है जो कि नीति निर्माण की प्रक्रिया के आधार का काम देंगे, इस तरह प्राप्त ज्ञान का उपयोग समाज की बेहतरी के लिए किया जाएगा। इस बात पर भी बल दिया गया कि दक्षिण एशियाई देशों के बीच तालमेल कायम करने की आवश्यकता है क्योंकि वे एक जैसी ही समस्याओं का सामना कर रहे हैं जैसेः गरीबी, सामाजिक व आर्थिक अवसरों तक पहुंच की कमी, विकास की विषमता और बेरोजगारी।
इस कार्यक्रम में उपस्थित विशिष्ट व्यक्तियों में शामिल थेः ICSSR के चेयरमैन प्रो सुखदेव थोराट, ICSSR के सदस्य सचिव प्रो रमेश दाधीच, प्रधान मंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन डॉ सी रंगराजन, इंटरनैशनल डैवलपमेंट रिसर्च सेंटर की उपाध्यक्ष सुश्री ऐनेट निकॉलसन और ICSSR की डॉ रीना मारवाह।
 ’एशिया में सामाजिक विज्ञान की स्थिति एवं भूमिकाः उभरती चुनौतियां और नीति के सबक’ शीर्षक से आयोजित इस तीन दिवसीय सम्मेलन को इसलिए तैयार किया गया है कि इस क्षेत्र की अनुसंधान हेतु अनुदान देने वाली संस्थाएं और थिंक टैंक अन्य पक्षों के साथ एक जगह पर आकर सामाजिक विज्ञान अनुसंधान की स्थिति पर चर्चा कर सकें। इस चर्चा में अनुसंधान की आपूर्ति, अनुसंधान इंफ्रास्ट्रक्चर की पर्याप्तता व प्रभावशीलता के संदर्भ को खास महत्व दिया गया और इस बात पर विचार किया गया कि सामाजिक मुद्दों व अनुसंधान की कमियों के प्रति समझ बढ़ाने में देश की मौजूदा व उभरती मांगों को यह किस हद तक पूरा कर पाते हैं। इस सम्मेलन में सार्क देशों की अनुसंधान हेतु अनुदान देने वाली 8 परिषदें, संस्थान व थिंक टैंक तथा IDRC द्वारा वित्तपोषित 25 अनुसंधान संस्थान शामिल हैं।
प्रो थोराट ने कहा, ’’मैं आशा करता हूं कि इस सम्मेलन से मजबूत व प्रगतिशील सामाजिक विज्ञान इंफ्रास्ट्रक्चर व ईकोसिस्टम की रचना का मार्ग प्रशस्त होगा जिससे हमारे क्षेत्र के उभरते व विकासशील देशों में नीति निर्माण के कार्य को मदद मिलेगी।’’ इस सम्मेलन में अनुदान एजेंसियों, समाजसेवियों और सरकारों को नीति संबंधी सिफारिशें भी दी जाएंगीं।
’’न सिर्फ भारत बल्कि इस क्षेत्र के कई अन्य एशियाई देशों में भी सामाजिक विज्ञान नीति निर्माण की प्रक्रिया से बाहर निकल कर हाशिए पर पहुंच चुका है,’’ प्रो थोराट ने कहा।
उन्होंने आगे कहा, ’’एक टास्क फोर्स गठित करने की आवश्यकता है जो सहभागी देशों के बीच तालमेल कायम करेगी और सामाजिक विज्ञान अनुसंधान को सही गति देने के लिए पारस्परिक समन्वय को भी सुगम करेगी।’’ इस सम्मेलन में सामाजिक विज्ञान परिषदों, विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थानों, दानदाताओं और थिंक टैंकों के संघ का लांच भी अपेक्षित है।
प्रो दाधीच ने कहा, ’’राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन जैसी शक्तिशाली नीतियों को काफी ज्यादा प्रतिक्रियाशील व उन्नतिशील बनाया जा सकता है, यदि सामाजिक विज्ञान के घटकों को इनके साथ एकीकृत कर दिया जाए; उदाहरण के लिए सामाजिक विज्ञान अनुसंधानकर्ताओं को इनके साथ-साथ मूल्यांकन करने दिया जाए। सामाजिक विज्ञान अनुसंधान को प्रोत्साहन देने के लिए, अन्य चीजों के अलावा, यह अहम है कि इसे नीति रचना एवं नियमन में एक बड़ी भूमिका प्रदान की जाए।’’
IDRC के क्षेत्रीय निदेशक डॉ अनिंद्य चैटर्जी ने अनुसंधान को सहयोग देने के लिए एक पुख्ता इंफ्रास्ट्रक्चर के गठन की आवश्यकता को रेखांकित किया। प्क्त्ब् विकासशील देशों को स्थानीय समस्याओं के हल ढूंढने के लिए विज्ञान व टैक्नोलॉजी के उपयोग में मदद देता है। उन्होंने कहा, ’’ IDRC मुनासिब सवालों के जवाब खोजने के लिए अनुसंधान को सहयोग देता है; जैसेः निर्धन समुदाय स्वास्थ्यकर आहार कैसे उगा सकते हैं, वे अपनी सेहत की रक्षा तथा और ज्यादा रोजगार की तलाश कैसे कर सकते हैं। यह सेंटर इन जानकारी को दुनिया भर के नीति निर्माताओं, अन्य अनुसंधानकर्ताओं व समुदायों के साथ साझा करने को बढ़ावा देता है। फलस्वरूप अभिनव व दीर्घकालिक प्रभावकारी स्थानीय समाधान प्राप्त होते हैं जिनका लक्ष्य सबसे ज्यादा जरूरतमंद लोगों को विकल्प मुहैया कराना एवं उनके जीवन में बदलाव लाना है।
भारत में सामाजिक विज्ञान अनुसंधान को अधिकांश वित्तीय मदद भारत सरकार व IDRC तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से प्राप्त होती है। स्थापना के समय से ही IDRC की प्रधान भूमिका सामाजिक विज्ञान को प्रोत्साहन देने और अनुसंधान के उपयोग को सुगम करने की रही है। यह स्वायत्तशासी एजेंसी है जिसका प्रमुख कार्य सामाजिक विज्ञान के सभी विषयों में नए अनुसंधान को प्रारंभ करना है। हालांकि इसे भारत सरकार से वित्तीय मदद मिलती है, किंतु इसका प्रबंधन समाज विज्ञानियों द्वारा किया जाता है। IDRC 1970 में स्थापित एक कैनेडियन क्राउन कॉर्पोरेशन है।
TTI, IDRC का एक मल्टी डोनर प्रोग्राम है, जो विकासशील देशों में स्वतंत्र नीति अनुसंधान संस्थानों को मतबूत करने के लिए समर्पित है। उनका लक्ष्य और विचार थिंक टैंकों को पुख्ता अनुसंधान प्रदान करना है जो नीतियों के लिए सूचना दे और उन्हें प्रभावित करे तथा यह सुनिश्चित करे की सहभागी देशों के नीति निर्माता निरंतर वस्तुनिष्ठ, उच्च क्वालिटी अनुसंधान का उपयोग कर के ही नीतियों का विकास एवं अमल करें जो समाज को ज्यादा न्यायसंगत एवं समृद्ध बनाए। इस इरादे को पूरा करने के लिए वे विकासशील देशों के स्वतंत्र नीति अनुसंधान संगठनों के चयनित समूह को दृढ़ एवं स्वतंत्र अनुसंधान में सहयोग दे रहे हैं जिससे नीति निर्माण प्रक्रिया में बेहतरी आए।
इस सम्मेलन में भाग लेने वाले देश हैंः भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, थाईलैंड, जापान, वियतनाम व अफगानिस्तान, युनाइटेड किंग्डम, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, दक्षिण कोरिया, कम्बोडिया, जर्मनी, इंडोनेशिया, फिलिपींस व फ्रांस।
यह जानकारी एक विज्ञप्ति में दी गई।

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