बुधवार, 2 अप्रैल 2014

यहाँ भ्रष्टाचार और विस्थापन नहीं एयरपोर्ट है मुद्दा!

अरुणाचल—मुकाबला पुराने योद्धाओं के बीच
ईटानगर से रीता तिवारी
वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों में अरुणाचल ईस्ट सीट पर कांग्रेस के निनांग ईरिंग जीते थे और अरुणाचल वेस्ट पर इसी पार्टी के संजय टकाम। कांग्रेस की ओर से अबकी भी यही दोनों नेता मैदान में हैं। यहाँ पार्टी का भाजपा से सीधा मुकाबला है। संजय टकम के मुकाबले भाजपा के किरेन रिज्जू मैदान में हैं और जबकि पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष तापिर गाओ ईरिंग को चुनौती दे रहे हैं।
राज्य की 60 सदस्यों वाली विधानसभा के लिये वर्ष 2009 में हुये चुनावों के बाद कांग्रेस को 42 सीटें मिली थीं। लेकिन भाजपा, राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और कुछ छोटे दलों के विधायकों के पाला बदलने की वजह से मार्च के पहले सप्ताह में सदन भंग होते समय पार्टी के विधायकों की तादाद 55 तक पहुँच गयी थी। वैसे, तो सरकार की ओर से दलील दी गयी है कि चुनाव का खर्च कम करने के लिये विधानसभा के चुनाव साथ कराने की सिफारिश की गयी है। लेकिन विपक्षी भाजपा को इसमें राजनीतिक साजिश की बू आ रही है।
भाजपा के प्रदेश महासचिव तापिर गाओ कहते हैं, ‘कांग्रेस को डर है कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उसका सूपड़ा साफ हो जायेगा। इसलिये उसने तय समय से सात महीने पहले ही विधानसभा को भंग कर दिया।’ गाओ का दावा है कि प्रदेश में भाजपा की मजबूत लहर से कांग्रेस डर गयी है।
अरुणाचल प्रदेश देश के दुर्गम इलाकों में से एक है। राज्य में दो मतदान केंद्र ऐसे हैं जहाँ महज तीन-तीन वोटर हैं। लेकिन वहाँ तक पहुँचने के लिये चुनाव अधिकारियों को एक सप्ताह से दस दिनों तक पैदल चलना होता है। इन वोटरों ने आज तक अपने किसी उम्मीदवार को देखा तक नहीं है। दो-चार वोटों के लिये भला वहाँ तक पहुँचने की हिम्मत कौन करेगा ? दस मतदान केन्द्रों में वोटरों की तादाद दस से भी कम है। लेकिन चुनाव आयोग ने वहाँ भी मतदान के मुकम्मल इंतजाम किये हैं। कई केन्द्रों पर हेलीकाप्टर और हाथियों के सहारे पहुँचना पड़ता है। लोकसभा की दो सीटों होने के बावजूद दुर्गम हालातों की वजह से राज्य में चुनव का खर्च दूसरे राज्यों के मुकाबले बहुत ज्यादा है। इन दो सीटों के लिये आयोग को 70 से 90 करोड़ रुपए तक की रकम खर्च करनी पड़ती है।
कुछ छोटे-मोटे संगठनों ने बाँधों और भ्रष्टाचार को मुद्दा जरूर बनाया है। लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती बन कर रह गयी है। अब सवाल यह है कि अगर इस राज्य में लोकसभा व विधानसभा चुनावों में भ्रष्टाचार और विस्थापनअगर मुद्दा नहीं है तो फिर क्या है। यहाँ मुद्दा है एअरपोर्ट। राज्य के विभिन्न इलाकों तक पहुँचने के लिये या सड़कों का सहारा लेना पड़ता है या फिर कुछ तय मार्ग पर चलने वाली हेलीकाप्टर सेवा का। वर्षों से एअरपोर्ट परियोजना ठंढे बस्ते में है। हर बार मुख्यमंत्री बदलते ही एअरपोर्ट की जगह भी बदल जाती है। इसलिये अबकी यही प्रमुख मुद्दा बन रहा है।जनादेश न्यूज़ नेटवर्क

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