नई दिल्ली/ लुधियाना। देश भर में मजदूरों का अंतर्राष्ट्रीय त्योहार मई दिवस धूमधाम के साथ मनाया गया।
मई दिवस पर करावल नगर दिल्ली , में ‘दिल्ली् कामगार यूनियन’ और ‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ के द्वारा मज़दूर पंचायत बुलायी गयी और सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। क्रान्तिकारी गीत और नाटकों के द्वारा ‘मज़दूर पंचायत’ में मई दिवस के शहीदों का इतिहास बताते हुए मजदूरों को यह संदेश भी दिया गया कि मज़दूर केवल आर्थिक लड़ाईयों तक सीमित रहकर मुक्ति का मार्ग नहीं गढ् सकते बल्कि उन्हें अपने राजनीतिक संघर्ष को अन्तिम मंजिल तक ले जाना होगा यानी मज़दूर राज कायम करने तक। पंचायत का संचालन ‘करावल नगर मजदूर यूनियन’ के योगेश ने किया। उन्होंनें बताया कि मई दिवस मज़दूरों की मुक्ति की राजनीतिक लड़ाई के इतिहास का मील का पत्थर और हमें उससे सीखना चाहिए। शिकागो के मजदूरों ने अलग-अलग पेशों, कारखानों की दीवारों को गिराकर पूरे मज़दूर वर्ग को इंसानों जैसी जिन्दगी जीने की मांग को लेकर ‘आठ घण्टे काम’ के आन्दोलन को संगठित किया और पूरी दूनिया के पूँजीपतियों की सरकारों को कानूनी तौर पर आठ घण्टे काम का कानून बनाने के लिए मजबूर कर दिया। लेकिन आज पूरी दुनिया में मजदूरों से यह हक छीना जा चुका है। भारत में आठ घण्टे काम का कानून किताबों में सड़ रहा है। इसलिए मज़दूरों को नये सिरे से अपने क्रान्तिकारी आन्दोलन को खड़ा करना होगा। कार्यक्रम में बच्चों का एक नाटक ‘तमाशा’ प्रस्तुत किया गया जिसमें चुनावी नेताओं की असलियत को उजागर किया गया। साथ ही विहान सांस्कृतिक टोली ने ‘मई दिवस के इतिहास की कहानी’ नामक नाटक का मंचन किया गया। इस नाटक के माध्यम से शिकागो शहर में मई दिवस आन्दोलन के इतिहास की कहानी प्रस्तुत की गयी।
‘स्त्री मज़दूर संगठन’ की बेबी ने मई दिवस का महत्व बताते हुए कहा कि ये कार्यक्रम हमारे लिए रस्म-अदायगी का कार्यक्रम नहीं है यूं तो तमाम नकली लाल झण्डे वाली ट्रेड-यूनियनें महज झण्डा फहराने, जुलूस निकालने जैसे कार्यक्रम कर रहे हैं लेकिन उनका मकसद मई दिवस के शहीदों के सपनों को पूरा करना नहीं है। मई दिवस के शहीदों की कुर्बानी को याद करने का मतलब है मजदूरों के संघर्ष को इंकलाब के रास्ते पर आगे बढ़ाना। हरियाणा से आये ‘भगाना संघर्ष समिति’ के जगदीश ने हिसार जिले में हुए दलित उत्पीड़न की घटना के बारे में मज़दूर पंचायत को अवगत कराया। जिसमें उन्होंनें कहा कि पिछले दो सालों से भगाना गांव के 80 दलित परिवारों को खाप पंचायत ने मनमानी करके गांव से बाहर कर दिया और जब दलित परिवारों ने इसके खिलाफ आवाज उठायी तो प्रशासन से सरकार तक ने सीधे तौर पर दबंगों का ही पक्ष लिया। पिछली 23 मार्च को चार दलित नाबालिग लड़कियों के साथ सर्वण जाति के लड़कों ने सामुहिक बलात्कार किया। जो साफ तौर पर दिखाता है कि ग़रीब दलित आबादी को इस व्यवस्था में न्याय नहीं मिल सकता। क्योंकि दलित परिवारों ने हरियाणा से लेकर दिल्ली तक के सभी मंत्रियों के पास न्याय की गुहार लगायी लेकिन सभी चुनावी पार्टियां और मंत्री खाप पंचायतों से कोई बैर नहीं लेना चाहते। इसलिए इस मसले पर सभी चुनावी पार्टियों ने चुप्पी साध रखी है। आगे विहान सांस्कृतिक टोली ने जाति-धर्म विरोधी गीत ‘लडाई जारी है’ प्रस्तुत किया। बिगुल मज़दूर दस्ता की शिवानी ने कहा कि भगाना में हुए दलित उत्पीड़न की ऐसी घटनायें अधिकांशतः गरीब खेतिहर मज़दूर दलितों के साथ ही होती हैं इसलिए सभी मजदूरों को ऐसी घटनाओं पर जाति-भेद तोड़कर अपनी वर्गीय एकता कायम करनी चाहिए। क्योंकि इसके बिना हम अपनी लड़ाई नहीं जीत सकते हैं। साथ ही उन्होंने कहा ‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ भगाना से आये परिवारों के संघर्ष में कन्धे से कन्धा मिलाकर साथ खड़ा रहेगा।
अन्त में दिल्ली कामगार यूनियन के नवीन ने कहा कि आज मज़दूर वर्ग की राजनीति को नये सिरे से संगठित करने की जरूरत है। क्योंकि 66 साल की चुनावी नौंटकी में सभी चुनावबाज पार्टियों की नीतियाँ यही हैं कि – पूँजीपतियों को पूजो आबाद करो- मजदूरों को लूटो बर्बाद करो! दूसरी तरफ आज मज़दूर वर्ग के सामने सबसे बड़ा खतरा फासीवादी भगवा गिरोह है जो सत्ता पर काबिज होते ही मेहनतकश को डण्डे के जोर पर निचोड़ेगा और मज़दूर प्रतिरोध का सबसे बर्बर दमन करेगा। इनका मुकाबल संसदीय वामपंथी पार्टियां नहीं कर सकती। इतिहास गवाह है कि हिटलर जैसे फासीवादियों को भी धूल में मिलाने का काम मज़दूरों की फौलादी ताकत ने ही किया था। इसलिए हमें अभी से मज़दूर वर्ग की क्रान्तिकारी राजनीति को जमीनी स्तर पर खड़ा करना होगा। और मई दिवस के शहीदों को सच्ची श्रद्धांजली यही होगी कि हम मजदूर अलग-अलग कारखाने की चैहद्दियों को तोड़कर इलाकाई और सेक्टरगत यूनियनों के आधार पर एकजुट हों।
मज़दूर पंचायत में संकल्प लिया गया कि शोषण उत्पीड़न अत्याचार की नारकीय जिन्दगी से मज़दूर वर्ग को मुक्त कराने के लिए लड़ने का ठेका दूसरों को देने के बजाए अपनी और समाज की मुक्ति का परचम खुद अपने हाथों में थामने के लिए आगे आयेंगे।
लुधियाना में अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस के अवसर पर पूरी दुनिया में मज़दूरों ने रैलियाँ-सभाएँ आयोजित करके ”आठ घण्टे कार्यदिवस” का कानून बनवाने के संघर्ष के दौरान शहीद हुए शिकागो के शहीदों को श्रदांजलि अर्पित की। लुधियाना के पुडा मैदान में भी टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन, कारखाना मज़दूर यूनियन, नौजवान भारत सभा तथा अखिल भारतीय नेपाली एकता मंच की ओर से संयुक्त रूप से विशाल ‘मज़दूर दिवस सम्मेलन’ किया गया। ”मई दिवस के शहीद अमर रहें”, ”दुनिया के मज़दूरों एक हो” , ”इंकलाब जिन्दाबाद” आदि गगनभेदी नारे बुलन्द करते हुए हज़ारों मज़दूर सम्मेलन में शामिल हुए। जनसंगठनों ने प्रतिनिथियों द्वारा क्रान्तिकारी लाल झण्डा फहराकर शिकागो के शहीदों को सलामी दी गई। मादूर शहीदों की याद में दो मिनट का मौन रखा गया। इसके बाद क्रान्तिकारी सांस्कृतिक मंच, दस्तक ने इंकलाबी गीतों द्वारा शहीदों की राह पर चलने का संदेश दिया। राजविन्दर, अध्यक्ष, टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन, लखविन्दर, संयोजक, कारखाना मादूर यूनियन, छिन्दरपाल, संयोजक, नौजवान भारत सभा, तेग बहादुर साही, अध्यक्ष, अखिल भारतीय नेपाली एकता मंच और अन्य नेताओं द्वारा सम्मेलन को संबोधित किया गया।
साथी राजविन्दर ने कहा कि ऐसा भी समय था जब विश्व में काम के घण्टों के बारे में कोई कानून नहीं था। विभिन्न देशों के मज़दूरों ने काम के घण्टे तय करवाने के लिए संघर्ष किया। भारत में भी 1862 में इस सम्बन्धी हड़ताल हुई थी। 1 मई 1886 को सारे अमेरिका में एक बड़ी हड़ताल की हुई। हड़ताल पर बैठे निहथ्थे मादूरों को पुलिस और गुण्डों ने कत्ल किया। मज़दूर नेताओं पर झूठे मुकद्दमें बनाकर फाँसी पर लटका दिया गया। कइयों को लम्बे समय के लिए जेल काटनी पड़ी। लेकिन यह दमन भी मजदूर आन्दोलन को दबा नहीं पाया। आगे चलकर सारे विश्व में हुक्मरानों को ”आठ घण्टे कार्यदिवस” का कानून बनाना पड़ा। साथी राजविन्दर ने कहा कि आज मज़दूरों की संगठित ताकत न होने के चलते आठ घण्टे दिहाड़ी के कानूनी अधिकार सहित बहुतेरे कानूनी अधिकार लागू नहीं हो रहे। मज़दूरों को अपनी क्रान्तिकारी विरासत से सीखना होगा और संगठित ताकत के दम पर अपने अधिकार हासिल करने के लिए आगे आना चाहिए।
नौजवान भारत सभा के संयोजक छिन्दरपाल ने कहा कि यह झूठ कि पूँजीवादी व्यवस्था में वोटों के जरिए जिन्दगी बेहतर बन सकती है, आज काफी हद तक जनता के सामने नंगा हो चुका है। यह साबित हो चुका है कि पूँजीवादी व्यवस्था में जनतंत्र नाम की कोई चीज नहीं होती , बल्कि हर जगह पूँजी का ही ज़ोर चलता है। उन्होंने कहा कि मई दिवस का इतिहास गवाह है कि मज़दूर एकजुट होकर ही पूँजी की ताकत का मुकाबला कर सकते हैं।
अखिल भारतीय नेपाली एकता मंच के नेता तेग बहादुर साही ने कहा कि मज़दूरों को धर्म, जाति, नस्ल, देश आदि के नाम पर बाँटा जाता रहा है। लेकिन कुल दुनिया के मज़दूरों के हित्त एक ही हैं। हर देश में मज़दूरों को धन-दौलत पर काबिज वर्गों द्वारा दबाया जाता रहा है। उन्होंने कहा कि मई दिवस सारे विश्व के मज़दूरों को एक होने का आह्वान करते हुए हर तरह की लूट-खसोट, दमन, बेइंसाफी के खिलाफ उठ खड़े होने की शिक्षा देता है।
मंच संचालन कारखाना मज़दूर यूनियन के संयोजक लखविन्दर ने किया। उन्होंने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस कोई रस्म अदायगी का त्यौहार न होकर म मज़दूरों के न्यायपूर्ण संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प लेने का दिन है। इसी रूप में ही शिकागो के शहीदों को सच्ची श्रदांजलि दी जा सकती है।
विभिन्न टोलियों द्वारा पेश किए गए क्रान्तिकारी गीतों ने पुडा मैदान में आयोजित ‘मज़दूर दिवस सम्मेलन’ के क्रान्तिकारी रंग को और गाढ़ा करने में खूब भूमिका अदा की।
सम्मेलन की समाप्ति के समय इलाके की गलियों-मोहल्लों में क्रान्तिकारी नारे बुलन्द करते हुए मज़दूरों-नौजवानों ने पैदल रैली निकाली।
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