गुरुवार, 12 जून 2014

कुछ तो है बात जो तहरीरो मे तासीर नहीं ...


लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश के समक्ष उपस्थित समस्याओं का उल्लेख करते हुए उनका सामना करने की जो प्रतिबद्धता व्यक्त की उसमें कुछ भी नया नहीं है, क्योंकि इस तरह की बातें स्वयं उनकी ओर से इसके पहले भी की जा चुकी हैं। आखिर कब तक केवल समस्याओं से लड़ने की बातें की जाती रहेंगी या फिर उनका उल्लेख किया जाता रहेगा? क्या पिछले नौ वर्ष इसी तरह की बातें सुनते हुए ही नहीं बीते? बतौर उदाहरण, यह न जाने कितनी बार सुनने को मिल चुका है कि सरकार आतंकवाद और नक्सलवाद को जड़ से उखाड़ने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखेगी। यथार्थ यह है कि ऐसा होता हुआ दिखाई नहीं देता। यह ठीक है कि आंतरिक सुरक्षा को लेकर शीघ्र ही मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन बुलाया जा रहा है, लेकिन पिछले नौ वर्षो में ऐसे सम्मेलन तो कई बार बुलाए जा चुके हैं और सब जानते हैं कि नक्सलवाद में कहीं कोई कमी आती नहीं दिख रही है। इसी तरह यह भी जगजाहिर है कि मुंबई हमले के षड्यंत्रकारी खुले आम घूम रहे हैं। देश यह भी जानता है कि पाकिस्तान से वार्ता के संदर्भ में आतंकवाद पर रोक लगाने की शर्त हटा दी गई है इस पर संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि प्रधानमंत्री ने लालकिले से कमजोर मॉनसून से उत्पन्न कृषि संकट की भी चर्चा की और स्वास्थ्य सुविधायों की भी, क्योंकि न तो कृषि क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के लिए बुनियादी कदम उठाए जा रहे हैं और न ही देश के स्वास्थ्य ढांचे में सुधार के लक्षण दिख रहे हैं। यह एक यथार्थ है कि देश में कृषि और किसानों की दशा वैसी ही है जैसी प्रधानमंत्री के बहुचर्चित विदर्भ दौरे के समय थी।

लालकिले से प्रधानमंत्रियों के संबोधन में जो एकरसता और रस्म अदायगी का भाव आता जा रहा है उसका एक बार फिर विस्तार होता हुआ दिखा। नि:संदेह ऐसे रस्मी उद्बोधन न तो राष्ट्र को कोई दिशा दे सकते हैं और न ही उसमें ऊर्जा एवं उत्साह का संचार कर सकते हैं। यह सही है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ओजपूर्ण भाषण के लिए नहीं जाने जाते और न ही ऐसा भाषण देना आवश्यक है, लेकिन कम से कम इस अवसर पर पुरानी बातें दोहराने का काम भी नहीं होना चाहिए। क्या इस तरह के आश्वासन का कोई मूल्य महत्व रह गया है कि सरकार महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने के लिए प्रतिबद्ध है? आखिर उस प्रतिबद्धता का क्या हुआ जो पहले भी  करीब-करीब इन्हीं शब्दों के रूप में दिखाई गई थी? स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में राष्ट्रपति के बाद प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में भ्रष्टाचार को लेकर इन शब्दों में चिंता जताई कि जब तक हमारा सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं हो जाता, योजनाओं का फायदा जनता तक नहीं पहुंचेगा, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से लोकपाल के संदर्भ में सिर्फ आश्वासन ही मिला। दरअसल जब खुद प्रधानमंत्री की ओर से इस तरह का कुछ सुनने को मिलता है कि ऐसा-ऐसा करने की जरूरत है अथवा यह या वह किया जाना चाहिए तो निराशा कहीं अधिक बढ़ जाती है। क्या जो कुछ भी किया जाना है उसकी पहल शीर्ष स्तर से अपेक्षित नहीं है? 

क्या प्रधानमंत्री के पुराने वादे पूरे हुए हैं ? इस सवाल के जवाब में संप्रग सरकार की दूसरी पारी की शुरुआत में 15 अगस्त, 2009 को दिए प्रधानमंत्री के भाषण को खंगाला गया। प्रस्तुत है तीन साल पहले प्रधानमंत्री द्वारा किए गए वादों और उनकी जमीनी हकीकत की बानगी :

आर्थिक विकास
2009 : 'विकास दर को नौ फीसद पर लाना सबसे बड़ी चुनौती है। उम्मीद है इस साल के अंत तक हालात सुधर जाएंगे।'
2012 : इस साल हम बारहवीं पंचवर्षीय योजना को राष्ट्रीय विकास परिषद के सामने रखेंगे। इसमें उन उपायों का निर्धारण किया जाएगा जिनसे हमारे आर्थिक विकास की दर वर्तमान 6.5 प्रतिशत से बढ़कर योजना के आखिरी साल में नौ प्रतिशत हो जाए।

खाद्य सुरक्षा विधेयक
2009 : हमारा वादा है कि हम एक खाद्य सुरक्षा कानून बनाएंगे जिसके तहत गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले हर परिवार को हर महीने निश्चित मात्रा में रियायती दरों पर अनाज दिया जाएगा।
2012 : खाद्य सुरक्षा कानून अभी तक लागू नहीं हो सका है। दिसंबर, 2011 में लोकसभा में पेश खाद्य सुरक्षा विधेयक में कई संशोधनों पर सरकार की सहयोगी तृणमूल कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दल दबाव बना रहे हैं।

आइसीडीएस योजना
2009 : मार्च 2012 तक देश में छह साल से कम उम्र के हर बच्चे तक समेकित बाल विकास योजना का लाभ पहुंचाने का प्रयास करेंगे।
2012 : अभी तक यह लक्ष्य हासिल नहीं हो पाया है। पीएम ने बुधवार को कहा कि योजना को और प्रभावी बनाने की प्रक्रिया अब आखिरी दौर में है। इसे अगले एक-दो महीने में पूरा कर लिया जाएगा।

स्वास्थ्य
2009 : राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का विस्तार करेंगे, ताकि गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले हर परिवार को शामिल किया जा सके।
2012 : अभी तक निर्धारित लक्ष्य हासिल नहीं हो सका है।

राजमार्ग
2009 : देश में रोजाना 20 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने के लिए कार्रवाई शुरू कर दी गई है।
2012 : राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण की दर 10 किमी प्रतिदिन से आगे नहीं बढ़ पा रही है।

नागरिक उड्डयन
2009 : एयर इंडिया की समस्याओं पर हम गंभीरता से गौर कर रहे हैं और जल्द ही उनका समाधान निकल आएगा।
2012 : एयर इंडिया अब भी मुश्किलों से जूझ रही है। बीते तीन सालों में सरकारी विमानन कंपनी में कई हड़तालें हो चुकी हैं। घाटा और बढ़ गया है।

आवास
2009 : देश को झुग्गी-झोपड़ी से मुक्त बनाने के लिए अगले पांच सालों में हम बेहतर आवास सुविधाएं मुहैया कराने के लिए राजीव आवास योजना शुरू करेंगे।
2012 : यह योजना अभी तक अमल का इंतजार कर रही है। पीएम ने अपने भाषण में कहा, सरकार राजीव आवास ऋण योजना की शुरुआत करेगी जिसके तहत आर्थिक रूप से कमजोर तबकों के लोगों को मकान बनाने के लिए पांच लाख रुपये तक के कर्ज पर ब्याज में छूट दी जाएगी।

सांप्रदायिक हिंसा विधेयक
2009 : सांप्रदायिक हिंसा रोकने के लिए संसद में पेश विधेयक को जल्द से जल्द कानून में बदलने की कोशिश की जाएगी।
2012 : विधेयक अभी तक पारित नहीं हो पाया है।

महिला आरक्षण विधेयक
2009 : हमारी सरकार महिला आरक्षण विधेयक को जल्द से जल्द पारित कराने के लिए प्रतिबद्ध है।
2012 : यह विधेयक 2010 में राज्यसभा से तो पारित हो गया, लेकिन लोकसभा में अटका हुआ है।
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एक शेर याद आता है ... 

"  कुछ तो है बात जो तहरीरो मे तासीर नहीं ...

झूठे फनकार नहीं है तो कलम झूठे है !!"
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जागो सोने वालों ...

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