सोमवार, 16 जून 2014

निजी क्षेत्र के बिजली प्रोजेक्ट पर अंकुश लगाए केंद्र सरकार


बिजली के मामले में नयी सरकार की प्राथमिकताओं पर बिजली इंजीनियरों के सुझाव- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हाई पावर कमेटी बनाने की जरूरत
लखनऊ। आल इंडिया पावर इन्जीनियर्स फेडरेशन ने केंद्र में नयी सरकार के समक्ष ऊर्जा क्षेत्र में विद्यमान चुनौतियों को चिन्हित करते हुए केंद्र सरकार को पूर्ण समर्थन का भरोसा दिया है।
फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे व उ प्र राज्य विद्युत परिषद अभियन्ता संघ के महासचिव डी सी दीक्षित ने इस बाबत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विद्युत मंत्री पीयूष गोयल से अपील की है कि यू पी ए की प्रतिगामी ऊर्जा नीति पर पुनर्विचार किया जाये तथा “सबके लिए मुनासिब दाम पर बिजली“ का लक्ष्य प्राप्त करने हेतु प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय एक्सपर्ट कमेटी बनाई जाये जिसमें बिजली इंजीनियरों को भी प्रतिनिधित्व दिया जाये। पत्र भेजकर ऊर्जा क्षेत्र की प्राथमिकताओं को चिन्हित किया है। उन्होंने कहा कि देश के लगभग 34.5 करोड़ लोग अभी भी बिजली के बिना हैं। यह संख्या दुनिया में किसी एक देश में बिना बिजली के रहने वाले लोगों में सर्वाधिक है। अतः नयी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती “सबके लिए मुनासिब दाम पर बिजली“ मुहैय्या कराना है। यू पी ए सरकार ने नारा दिया था ‘2012 तक सबको बिजली’ जो पूरी तरह विफल रहा। यू पी ए सरकार की विफलता का मुख्य कारण गलत ऊर्जा नीति, क्रियान्वयन की विफलता और सही फैसले लेने में राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी रहा है।
बिजली कर्मचारी नेताओं ने कहा कि गलत ऊर्जा नीति का तात्पर्य यह कि नए बिजली घरों के निर्माण में निजी घरानों पर अतिनिर्भरता जिसके चलते बिजली उत्पादन का लक्ष्य पिछड़ता चला गया। अभी नयी लगने वाली परियोजनायों में लगभग आधी क्षमता की परियोजनाएं निजी क्षेत्र में है। दस बड़े घरानों के पास इनमे से अधिकाँश प्रोजेक्ट हैं। निजी घरानों की दिलचस्पी मुनाफा कमाने में है, अतः इनकी उत्पादन लागत एन टी पी सी और राज्यों के सरकारी बिजली घरों की तुलना में काफी अधिक आती है। उदाहरण के तौर पर रोजा की लागत रु. 6.06 प्रति यूनिट है जबकि इसी क्षमता की सामान इकाई से हरियाणा में सरकारी क्षेत्र में लागत रु 3.38प्रति यूनिट है। यह अंतर दर्शाता है कि निजी क्षेत्र की बिजली महंगी हैराष्ट्रीय स्तर पर यही हाल है सबसे सस्ती बिजली राज्य के सरकारी बिजली घरों की फिर एन टी पी सी की और सबसे महंगी निजी क्षेत्र की। इसी लिए अति विशाल बिजली परियोजनाएं (अल्ट्रा मेगा पॉवर प्रोजेक्ट) स्थापित करने का निर्णय लिया गया जिनके लिए म प्र में सासन, झारखण्ड में तिल्लैय्या और आंध्र प्रदेश में कृष्णापट्टनम में रिलायंस को तथा गुजरात में मूंदड़ा में टाटा को ये परियोजनाएं प्रतिस्पर्धात्मक बिडिंग के जरिये दी गयीं। बिडिंग में सस्ती दरें देकर इन्होने प्रोजेक्ट तो ले लिए किन्तु बाद में केंद्र सरकार के साथ मिलीभगत के चलते अब टैरिफ बढ़वाने में सफल हो गए तो बिडिंग का मकसद ही खत्म हो गया। रिलायंस ने तिल्लैय्या और कृष्णापटनम में टैरिफ बढ़वाने हेतु दबाव बनाने के लिए कम रोक रखा है, सासन में प्लांट को पूरी क्षमता पर नहीं चला रहा है तो टाटा ने मूंदड़ा में दरें बढ़वा ली हैं। इन मामलों पर कड़ा रुख अपनाने के साथ नयी सरकार को राज्य, एन टी पी सी और निजी क्षेत्र के बीच उत्पादन क्षमता का अनुपात ऐसा रखना होगा जिससे बिजली की दरें बहुत महंगी न हों। राज्य और केंद्र के सरकारी क्षेत्र में  कम से कम 70 प्रतिशत उत्पादन क्षमता होनी चाहिए तभी बिजली दरें नियंत्रण में रह सकेंगी। बिडिंग के बाद किसी भी सूरत में बिजली दरें पुनरीक्षित न की जाएँ। कोयला उपलब्ध कराना सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी क्योंकि देश में प्रचुर मात्रा में कोयला होने के बावजूद कृत्रिम कोयला संकट की आंड़ में कोयला आयात किया जा रहा है जिससे उत्पादन लागत में भारी वृद्धि हो रही है।
उन्होंने कहा कि वितरण के क्षेत्र में घाटे के मुख्यतया दो बड़े कारण हैं। एक महंगी बिजली खरीद जिसे ऊपर बताये गए तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है। दूसरा कारण लाइन हानियाँ हैं जिसमे बड़ा हिस्सा बिजली चोरी का होता है। लाइन हानियाँ कम करने के लिए यू पी ए सरकार ने वितरण फ्रेंचायजी का प्रयोग किया जो विफल रहा क्योंकि फ्रेंचायजी के लिए बिजली के इंतजाम की जिम्मेदारी बिजली निगमों की है जो महंगी बिजली खरीद कर फ्रेंचायजी को सस्ते दाम में बेचने में और घाटा उठा रहे हैं। उ प्र में आगरा इसका ज्वलंत उदहारण है जिस पर सी ए जी ने अपनी रपट में कई सवाल उठाये हैं। दूसरी ओर गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल, पंजाब, पश्चिम बंगाल जैसे सरकारी क्षेत्र के कई निगम हैं जहाँ लाइन हानियाँ 15 प्रतिशत या कम हैं। अतः उ प्र, बिहार जैसे कुछ प्रान्तों में वही तकनीक अपनाई जाये जो अन्य राज्यों में की जा रही है। दरअसल बिजली के मामले में “ वोट और नोट“ की राजनीति से ऊपर उठकर दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय देना होगा तभी सुधार होगा।
विद्युत कर्मचारियों के नेताओं ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ती बिजली बिजली निगमों के घाटे का मुख्य कारण है। अतः देश के चारों हिस्सों में केंद्र सरकार चार अल्ट्रा मेगा पॉवर प्रोजेक्ट इस दृष्टि से लगाये कि इनकी सस्ती बिजली पर पहला हक सम्बंधित क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों का ही हो तो ग्रामीण क्षेत्रों को बिजली तो मिलेगी ही वह भी सस्ती। इसकी सब्सिडी का बोझ केंद्र सरकार उठाये तो ग्रामीण बिजली की सब्सिडी के नाम पर हो रहे घोटाले और राजनीति दोनों पर अंकुश लगेगा। और सबसे महत्वपूर्ण यह कि बिजली एक जटिल तकनीकी विषय है अतः नयी सरकार प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में  तत्काल ऊर्जा एक्सपर्ट्स की एक हाई पावर कमेटी बनाये जिसकी अनुशंसा को दृढ़ इच्छा शक्ति व कठोर मानीटरिंग कर लागू किया जाये तो भारत बिजली के मामले में आत्म निर्भर बनेगा साथ ही सबको मिलेगी मुनासिब दम पर बिजली ।

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