शुक्रवार, 13 जून 2014

कनेक्शन वैध हो या अवैध जलेगा ते भारतीय चूल्हे मे ही

डाँ कुणाल सिंह//संपादक//(आवाज़-ए-हिन्द.इन)
अपने बडे बुर्जुगों से एक कहानी सुना करता था "अंधेर नगरी चौपट राजा,टके सेर भांजी टके सेर खाजा"।जब भी यह कहानी सुना करता, हंस पडता कि वह जमाना कैसा रहा होगा। अब मै सचमुच दुःखी हूँ कि वह 'जमाना' खुद भुगत रहा हूँ। चौपट भारत सरकार अन्धी हो कर गैस कम्पनीयों के संगठन को देश का चूल्हा सौंप दिया है और ये कम्पनियां नगरों मे अंधेरा फैला रही है। ये कम्पनियां भारी मुनाफे की लालच मे गैस सिलिण्डरों के दामो मे भारी वृद्धि के चक्कर मे केवाईसी "ग्राहकों को जानो" का पलीता चुल्हे मे लगाने जा रही हैं। क्या सचमुच अंधेर नगरी चौपट राजा का युग आ गया है।

पर्यावरण के नाम पर पहले चुल्हे से लकडी खींचा गया फिर कुकिंग कोल की खुब प्रसंशा की गई।अंगीठी जलाने पर जब लोग उतर गये तो कुकिंग कोल एवम पत्थर का कोयला भी सार्वजनिक मार्केट से गायब कर दिया गया।अब बारी आई कुकिंग गैस की। इसे चुल्हे के ईंधन का सबसे सस्ता विकल्प बता कर खुब कनेक्शन बांटे गये। जब देशवासीयों के चुल्हे, गैस पर निर्भर हो गये तो यही सरकार सबसीडी एवम घाटा होने का रोना रो रही है।गैस कम्पनियां कह रही हैं कि उन्हें घाटा अवैध कनेक्शन वाले गैस सिलीण्डरों पर ही सबसे ज्यादा हो रहा है। गैस सिलिण्डरो के अवैध प्रयोग रोकने हित जो नियम शर्तें थोपने का प्रयास हो रहा है वह जमीनी स्तर पर पुरी तरह से अव्यवहारिक है। एक शर्त है एक पते पर एक ही कनेक्शन दिये जाने की। देश के समाजिक परिवेश मे एक ही घर मे घर के सदस्य अलग अलग अपने चुल्हे चौके के साथ रहा करते हैं। एक पिता के चार बेटे एक ही घर मे अगर अलग अलग रह रहे हैं तो गैस कनेक्शन के लिये उनका पता अलग अलग कैसे हो सकता है। कस्बाई क्षेत्र मे एक ही मकान मे कई किराएदार एक साथ रहा करते हैं तो गैस कनेक्सन के लिये उनके आवासीय पते अलग-अलग कैसे हो सकते हैं। ऐसे मे इसका समाधान क्या होगा।

गैस कम्पनियों के दबाव मे एक साल मे केवल सब्सीडी युक्त 06 सिलिण्डर देने का सरकारी फर्मान चौपट राजशाही का ही तो प्रतिक है। चार सदस्यों वाले परिवार मे एक सिलिण्डर भी एक महीने नहीं चल पाता फिर 06 या 09 सिलिण्डर से साल भर चुल्हा कैसे जल सकता है।सरकारी आंकडो के अनुसार शहरी क्षेत्र मे 66 रूपया व ग्रामीण क्षेत्र मे 35रूपया प्रति व्यक्ति खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है। अगर बीना सबसीडी वाला गैस सिलिण्डर वह लेता है और एक महीने चुल्हा जला भी लेता है तो उसे गैस ईंधन पर प्रतिदिन लगभग 34 रूपया खर्च करना पडेगा। अगर यह तथ्य सच है तो ऐसे आमदनी वालों को केवल चुल्हे की गरमी से ही पेट भरना पडेगा क्योंकि तब उसके पास चावल आंटा दाल व सब्जी के लिए पैसा ही कहॉं होगा। तो क्या ऐसी होगी विश्व विख्यात अर्थशास्त्री मनमेहन सरकार की अंधेर नगरीयक व्यव्स्था।

सत्य यह है कि चाहे कनेक्शन वैध हो या अवैध, चुल्हा तो जलेगा भारतीयों का ही, तय है कि खाना पकेगा और पेट भी भरेगा देशवासयिों का ही,नौकरशाह से राजनेता बने व "आम अदमी पार्टी". 'आप' बना कर राजनीति मे उतरे केजरीवाल का यह आरोप सच ही लगता है कि सरकार मनमोहन नहीं बल्कि कार्पोरेट घराने चला रहे हैं और बेसिन से गैस का उत्पादन अपनी ही शर्ता पर और अपने व्यवसायिक फायदे के लिये कर रहे हैं। वैसे तो लोकतांत्रिक संविधान मे यह आम लोगों द्वारा चुनी गई आम लोगों की अपनी सरकार है परन्तु यहां तो चौपट राज व्यवस्था है और हर जगह अंधेर ही अंधेर है।

All Right Reserved aawaz-e-hind.in.|Online News Channel

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें