शुक्रवार, 13 जून 2014

वैशाली-विश्व का पहला गणतंत्र

अब्दुल रशीद 
बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए भले ही नीतिश कुमार द्वारा अधिकार रैली करने के पीछे कौन सा राजनैतिक खेल खेला जा रहा है यह तो बेहतर वे ही जानते होंगे। लेकिन बिहार के बदहाली के लिए जिम्मेदार भी राजनेता ही हैं। कुदरत ने बिहार को ऐसे-ऐसे अनमोल धरोहरों से नवाज़ा है जिसका उपयोग ठीक से किया जाता तो शायद विशेष राज्य का दर्जा मांगने की नौबत ही न आती। बिहार के बदहाली पर फिर कभी चर्चा करेंगे फिलहाल मैं आपको बिहार के एक ऐसे जिले के विषय में बताने जा रहा हूँ, जो विश्वविख्यात है। जिसकी ऐतिहासिक धरोहर पर न केवल बिहार को बल्कि पूरे देश को नाज़ है। जी हां मैं बात कर रहा हूं वैशाली की। आपको जानकर हैरत होगा कि वैशाली में ही विश्व का पहला गणतंत्र कायम हुआ था। लिच्‍छवियों के संघ ;अष्टकुलद्ध द्वारा गणतांत्रिक शासन व्यवस्था की शुरूआत वैशाली से की गई थी। लगभग छठी शताब्दि ईसा पूर्व में यहाँ का शासक जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाने लगा और गणतंत्र की स्थापना हुई। अत: दुनियाँ को सर्वप्रथम गणतंत्र का ज्ञान कराने वाला स्थान वैशाली ही है। आज वैश्विक स्तर पर जिस लोकतंत्र को अपनाया जा रहा है वह यहाँ के लिच्छवी शासकों की ही देन है। भगवान महावीर की जन्म स्थली होने के कारण जैन धर्म के माननेवालों के लिये वैशाली एक पवित्र स्थल है। भगवान बुद्ध का तीन बार इस पवित्र स्थल पर आगमन हुआ। महात्मा बुद्ध के समय 16महाजनपदों में वैशाली का स्थान मगध के समान महत्वपूर्ण था। बौद्ध तथा जैन धर्मों के अनुयायियों के अलावा ऐतिहासिक पर्यटन में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए भी वैशाली महत्‍वपूर्ण है। वैशाली की भूमि न केवल ऐतिहासिक रूप से समृद्ध है वरन कला और संस्‍कृति के दृष्टिकोण से भी काफी धनी है। वैशाली जिला के चेचर ;श्वेतपुरद्ध से प्राप्त मूर्तियाँ तथा सिक्के पुरातात्विक महत्व के हैं।
बौद्ध स्तूप
बौद्ध स्तूपों का पता 1958की खुदाई के बाद चला। भगवान बुद्ध के राख पाए जाने के कारण यह स्थान बौद्ध अनुयायियों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। भगवान बुद्ध के पार्थिव अवशेष पर बने आठ मौलिक स्तूपों में से यह एक है । बौद्ध मान्यता के अनुसार भगवान बुद्ध के महा परिनिर्वाण के पश्चात कुशीनगर के मल्लों द्वारा उनके शरीर का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया तथा अस्थि अवशेष को आठ भागों में बांटा गया जिसमें से एक भाग वैशाली के लिच्छवियों को भी मिला था। शेष सात भाग मगध नरेश अजातशत्रु कपिलवस्तु के शाक्यए अलकप्प के बुलीए रामग्राम के कोलिय बेटद्वीप के एक ब्राह्मण तथा पावा एवं कुशीनगर के मल्लों को प्राप्त हुए थे। 
अशोक स्तंभ

महात्मा बुद्ध के अंतिम उपदेश की याद में सम्राट अशोक ने वैशाली में सिंह स्तंभ की स्थापना की थी। पर्यटकों के बीच सिंह स्तंभ बेहद लोकप्रिय है। अशोक स्तंभ को स्थानीय लोग भीमसेन की लाठी कहकर भी पुकारते हैं। यहीं पर एक छोटा सा कुंड है जिसको रामकुंड के नाम से जाना जाता है। पुरातत्व विभाग ने इस कुण्ड की पहचान मर्कक.हद के रूप में की है। कुण्ड के एक ओर बुद्ध का मुख्य स्तूप है और दूसरी ओर कुटागारशाला है। संभवत: कभी यह भिक्षुणियों का प्रवास स्थल रहा है।

विश्व शांति स्तूप
जापान के विश्व शांति के प्रवर्तक और निप्पोनजी म्योहेजी के अध्यक्ष परम पूज्य निचिदात्सु फुजीई गुरु जी के 66वें जन्म दिवस समारोह के अवसर पर बिहार के महामहिम राज्यपाल डाँ ए. आर. कीदवई द्वारा 20 अक्टूबर 1886 को विश्व शांति स्तूप का शिलान्यास किया गया। विश्व शांति स्तूप का उदघाटन भारत के महामहिम राष्ट्रपति डाँ शंकर दयाल शर्मा के कर कमलो द्वारा 23 अक्टूबर 1996 को किया गया। बौद्ध समुदाय द्वारा बनवाया गया विश्व शांति स्तूप गोल घुमावदार गुम्बद अलंकृत सीढियां और उनके दोनों ओर स्वर्ण रंग के बड़े सिंह जैसे पहरेदार शांति स्तूप की रखवाली कर रहे प्रतीत होते हैं। सीढियों के सामने ही ध्यानमग्न बुद्ध की स्वर्ण प्रतिमा दिखायी देती है । शांति स्तूप के चारों ओर बुद्ध की भिन्न.भिन्न मुद्राओं की अत्यन्त सुन्दर मूर्तियां ओजस्विता की चमक से भरी दिखाई देती हैं।

राजा विशाल का गढ़

महाभारत काल के राजा ईक्ष्वाकु वंशज राजा विशाल के नाम पर वैशाली का नाम रखा गया हुआ है। राजा विशाल का गढ एक छोटा टीला के रुप में दिखाई देता है जिसकी परिधि एक किलोमीटर है। इसके चारों तरफ दो मीटर ऊंची दीवार है जिसके चारों तरफ 43 मीटर चौड़ी खाई है। कहा जाता है कि यह प्राचीनतम संसद है। इस संसद में 7,777संघीय सदस्य इकट्ठा होकर समस्याओं को सुनते और उस पर बहस भी किया करते थे। यह स्थान आज भी पर्यटकों को भारत के लोकतांत्रिक प्रथा की याद दिलाता है।
और अंत में रामधारी सिंह दिनकर की पंक्तियां 

वैशाली जन का प्रतिपालक, विश्व का आदि विधाता,
जिसे ढूंढता विश्व आज, उस प्रजातंत्र की माता॥
रुको एक क्षण पथिक, इस मिट्टी पे शीश नवाओ,
राज सिद्धियों की समाधि पर फूल चढ़ाते जाओ||

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