बांबे हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि यदि दूसरे ठोस सुबूत न हों तो सिर्फ मरते समय दिया गया बयान किसी भी आरोपी को दोषी सिद्ध करने का एकमात्र मापदंड नहीं हो सकता है। ऐसे में आरोपी को संदेह का लाभ मिलना चाहिए।
अदालत ने कहा है कि किसी मामले में अगर दो परस्पर विरोधी बातें सामने आ रही हों तो आरोपी के अनुकूल बयान को ही स्वीकार किया जाना चाहिए। जस्टिस प्रताप हरदास और अशोक भंगाले की खंड पीठ ने कहा, ‘आपराधिक अदालत को ध्यान रखना चाहिए कि सुबूत अगर एक तरफ आरोपी को दोषी सिद्ध कर रहे हों और दूसरी तरफ उसे बेगुनाह भी ठहरा रहे हों, तो आरोपी के अनुकूल सुबूत को ही स्वीकार किया जाना चाहिए। इस तरह किसी निर्दोष को सजा देने से बचा जा सकता है।’ इसी आधार पर बांबे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने एक महिला को हत्या के आरोप में रिहा कर दिया है। इस महिला पर एक अन्य महिला को जला कर मार डालने का आरोप था।
पिछले साल 14 अक्टूबर को अमरावती की रहने वाली 66 वर्षीय शरीफाबी को एक सत्र अदालत ने शैदाबी नाम की महिला को आग के हवाले करने का दोषी पाया था। शैदाबी की बाद में मौत हो गई थी। इसके बाद शरीफाबी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। शरीफाबी ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी।
उनके वकील ने दावा किया कि इस घटना की पुष्टि के लिए कोई गवाह या सुबूत मौजूद नहीं होने की सूरत में ट्रायल कोर्ट ने शैदाबी द्वारा मौत से पहले दिए बयान को ही एकमात्र सुबूत मान लिया था। शरीफाबी के वकील ने कहा, ‘यह घटना दोपहर दो बजे की थी और महिला का बयान रात सवा आठ बजे लिया गया। इस दौरान शैदाबी के बयान को आसानी से प्रभावित किया जा सकता था।’
पीठ का यह भी मानना है कि शरीफाबी के गलत इरादे के संबंध में कोई गवाह या सुबूत मौजूद नहीं था, इसलिए शैदाबी के बयान को सच नहीं माना जा सकता। न्यायाधीश ने कहा, ‘अदालत को सुनिश्चित करना चाहिए कि मौत से पहले बयान ऐसी स्थिति में दिया गया हो, जब मानसिक संतुलन ठीक हो। या फिर बयान डरा धमकाकर न लिया गया हो।
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