जिस वक्त पाकिस्तान की हरकतों को लेकर समूचा देश गुस्से में है, उस वक्त भी सरहद पर पाकिस्तान के जवानों से हाथ मिलाना पड़े। जिस वक्त जवानों को पता चला कि सीमा पर तैनात लांसनायक के सिर को पाकिस्तानी सेना ने काट दिया और देश के जवानों को उस वक्त भी अपने गुस्से,आक्रोश को दबाकर पाकिस्तान के जवान से हाथ मिलाकर पड़ोसी और दोस्त का धर्म निभाना पड़े। जिस वक्त दिल्ली में नार्थ-साउथ ब्लाक में पाकिस्तान को खुले तौर पर कठघरे में खड़ा किया जा रहा हो उस वक्त सरहद पर जवानों को यही निर्देश हो कि हर बसंती शाम की तरह ही उन्हें सिर्फ पांव पटक कर गुस्से का इजहार करना है और महज नारों से देश की जय जयकार करनी है तो उस शाम को सरहद पर खड़े होकर डूबते देख किसी भी भारतीय का दिल कैसे डूबेगा। अगर इसे देखना है तो वाघा बॉर्डर पर कोई भी शाम गुजार कर महसूस कर लें। क्योंकि 9 जनवरी की शाम जब जम्मू से लेकर दिल्ली तक और मथुरा से लेकर सीधी [म.प्र.] तक सिर्फ और सिर्फ मातम पसरा था और न्यूज चैनलों के स्क्रीन पर दिल्ली से लेकर इस्लामाबाद तक जेनवा क्नवेंशन से लेकर संयुक्त राष्ट्र की जांच को लेकर सवाल जवाब हो रहे थे, उस शाम भी वाघा बार्डर पर तैनात जवान अपने संबंधों की परंपराओं को ही ढो रहे थे। और वहां मौजूद हजारों हजार लोगों की तादाद को सीमा पर मारे गये दो जवानों के ताबूत से भारी वह पूरी पंरपरा लग रही थी जिसे निभाना भी हर शाम जवानो को ही होता है और उन्हें देखने पहुंचने वालों में राष्ट्रप्रेम जागे यह हुनर भी पैदा करना होता है।
शाम चार बजते बजते वाघा पर नारे गूंजने लगे, हिन्दुस्तान जिन्दाबाद, पाकिस्तान जिन्दाबाद, भारत माता की जय, वंदे मातरम, जियो जियो... पाकिस्तान, जियो जियो...पाकिस्तान। यह वे नारे हैं, जो सरहद की लकीर खींचते भी है और सरहद पिघलाते भी हैं। गुस्से और जोश को हर मौजूद शख्स में भरते भी है और हर गुस्से और आक्रोश में वाघा बॉर्डर पहुंचे हर शख्स को ठंडा करते भी हैं। कमाल का हुनर या पाकिस्तान के साथ रिश्तो का अभूतपूर्व एहसास है वाधा बार्डर पर सात सात फुट के लंबे-तगडे जवानो का नाल लगे जूतों को जमीन पर पटकने से लेकर लोहे के दरवाजे को लहराते हुये हाथ के साथ खोलना। हाथ तान कर संभालना और माथे पर बंधे साफे को संभालने के अंदाज में छू कर अपनी हनक का एहसास कराना। फिर कदमताल करते हुये सरहद की लकीर को पार कर चार गज की जमीन पर खड़े होकर दोस्त ना होने के अंदाज में हाथ मिलाना। और इस माहौल को हवा में नहीं बल्कि वहां मौजूद हजारों हजार लोगों की शिराओ में घोल देना । यह तो हर सामान्य या बसंती शाम का किस्सा है। जब तीन से चार हजार लोग जमा होते हैं। लेकिन जैसे ही जम्मू के करीब मेंढर सीमा पर तैनात लांसनायक के सर कलम किये जाने की खबर ने देश में गुस्सा पैदा किया वैसे ही गुस्से का इजहार करने या अंदर के उबाल को एक एहसास देने वाघा बार्डर पहुंचने वाले लोगों की तादाद में बढोतरी हो गई। जो टैपों 100 रुपये प्रति व्यक्ति लेकर अमृतसर से वाघा बार्डर तक पहुंचा देता है, उसका किराया 125 रुपये हो गया। हजार रुपये वाली टैक्सी का किराया ढाई हजार हो गया। 20 सीटो वाली जो बस साढे तीन हजार रुपये लेती है, उसका किराया पांच हजार रुपये हो गया। देश के अलग अलग हिस्सो से अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पहुंचने वाले लोग दोपहर में बाहर निकलते तो वाघा बार्डर का ही सीधा रास्ता पकड़ते। 32 किलोमीटर के रास्ते पर टोल चुकाने के बाद आखिरी पांच किलोमीटर के रास्ते पर कतारों में खड़े सैकड़ों ट्रक को देखकर ही वाघा बार्डर जाने वाली हर भीड़ हिन्दुस्तान जिन्दाबाद और पाकिस्तान के विरोध के नारो से माहौल को और गरमा देती ।
ट्रकों में लदा माल पाकिस्तान जाता है और हर दिन एक हजार से ज्यादा ही ट्रक पर लदा माल अटारी स्टेशन पर मालगाडी में लादा जाता है। इन ट्रको में है क्या। चावल, गेंहू से लेकर खाने पीने की ही हर चीज होती
है। आलू प्याज भी। जी वह भी और चीनी, गुड भी। इसे तो रोक देना चाहिये । लड़ाई और खानपान साथ चल नहीं सकता। महाराष्ट्र से आये शिवकुमार ने जैसे ही ड्राइवर की जानकारी पर पाकिस्तान को लेकर अपने गुस्से का जैसे ही इजहार किया वैसे ही ड्राइवर बोल पड़ा, तुसी चाहे गुस्सा करो, लेकिन यही जोश तो साडा बिजनेस हैगा। क्या मतलब । वाउजी तुसी वाघा बार्डर पहुंचो त्वाउनू खुद समझ विच आ जावेगा। इधर,जैसे जैसे वाघा बॉर्डर नजदीक आ रहा था, वैसे वैसे ट्रकों की सिंगल लेन डबल में बदल गई और चौड़ी सड़क सिमटी सी दिखायी देने लगी। बस, टैपों, टैक्सी, कार, मोटरसाइकिल बड़ी तादाद में गाड़ियों पर नारे लगाते, जोश पैदा करता गाड़ियों का काफिला जब धीरे धीरे एक दूसरे के करीब हो कर चलने लगा तो नारे और तेज हो गये। माहौल ऐसा कि जैसे वाघा वार्डर पर ही आज दो दो हाथ हो जायेंगे। लेकिन ड्राइवर अपने धंधे में मस्त था। हर किसी को वाघा बॉर्डर पहुंचने की जल्दी थी। लेकिन ड्राइवर बायीं तरफ हाथ से दिखा कर बोला यह अटारी स्टेशन है। आखिरी स्टेशन । फिल्म वीरजारा की कुछ शूटिंग भी यहां हुई थी। आप चाहो तो यहां खड़े होकर तस्वीर निकाल लो। वैसे भी बस आगे जायेगी नहीं। बॉर्डर का तमाशा देख कर लौटोगे तो अंधेरा हो जायेगा। कोहरा हो जायेगा। फोटो ले नहीं पाओगे। कुछ जोड़े बस से उतरे अटारी के बोर्ड के आगे खडे होकर तस्वीर खींचने लगे । हर हाथ में मोबाइल कैमरा था तो हर कोई वाघा बॉर्डर को अपने कैमरे में कैद करने लगा। पंजाब पुलिस और बीएसएफ वालो के आपसी झगड़ों की वजह से आज स्थानीय गाड़ियां भी आगे नहीं जा सकती। तो कमोवेश हर कोई पैदल ही वाघा बार्डर चल पड़ा। एक किलोमीटर का रास्ता पैदल नापने में भी वीआईपी लोगों को मुश्किल पैदा हो रही थी। किसी को लंबी हिल परेशान कर रही थी तो किसी को गोद में बच्चा उठाना। कोई आम लोगों की भीड़ में साथ चलने से बचना चाहता था तो कोई अपनी देसी लाल बत्ती की गाडी को वाधा बार्डर तक कुछ भी करके लेना चाहता था। लेकिन आज किसी की नहीं चली तो आम जनता खुश भी थी। सभी पैदल तले तो रास्ते में सेना और जवानों की जो भी महक दिखायी देती उसे हर कोई कैमरे में बंद कर रहा था। लंबे-चौड़े जवानों के बीच खडे होकर गदगद महसूस करने वालों अलग अलग प्रांतों के लोग वाघा बॉर्डर से पाकिस्तान की तस्वीर लेकर ही खुद के भारतीय होने का धर्म निभा रहे थे। बच्चे नारे लगा रहे थे। बड़ों को यह अच्छा लग रहा था और साढे चार बजे जैसे ही नारे और कदमताल के बीच वाघा बॉर्डर अपनी परंपराओं को जीने लगा। एक साथ,एक जैसे होकर इस और उस पार सरहद के जोश को एक-दूसरे के खिलाफ बनाये रखने के आधे घंटे की कवायद के बाद जब दोनो देश के राष्ट्रीय ध्वज एक साथ उतारे गये और आज की कवायद खत्म किये जाने के ऐलान के साथ ही देश के जीरो माइल तक जाने की इजाजत मिली। तो फिर हर कोई जीरो माइल पत्थर के आगे-पीछे, दांये बायें खड़े होकर तस्वीर ही खींचाने लगा। और इसी एहसास में डूबा रहा कि वह पाकिस्तान और भारत की सीमा पर खड़ा है। हर किसी के लिये यह ताजी हवा के झोंके की तरह था कि वह पाकिस्तान के खेतों को अपनी नंगी आंखों से देख रहा था , कैमरे में कैद कर रहा था। गुस्सा,आक्रोश और नारों की गूंज यहां काफूर थी। खुशी थी। सरहद पर खड़े होकर खुद को कैमरे में कैद करने की कवायद ही नया जोश थी। बीस बीस रुपये में वाघा बार्डर पर होने वाली पूरी कवायद की सीडी हर कोई खरीद रहा था। पक्के अमरुद, गरम मूंगफली और छोले हर कोई खरीद रहा था। बेचने वाला यह कहने से नहीं चूक रहा था कि अमरुद लाहौर के हैं। और खाने वाला कह रहा था कैसे पता चलेगा। अपने जैसा ही तो है। और इसी उत्साह को लिये जब हर कोई वापस लौटने लगे तो रिक्शे वाले, ठेले वाले भी लौटने लगे। दुकाने बंद होने लगी। टैक्सी स्टैंड वाले को भी घर लौटने की जल्दबाजी थी। अटारी स्टेशन भी कोहरे में डूब चुका था। और बस का ड्राइवर भी गाडी स्टार्ट करते ही बोल पड़ा, बाउजी ठंड बढ़ गई है खिडकी बंद कर लो। लेकिन जोश बना रहे यह मनाओ क्योंकि जोश बना रहे तो अपना धंधा मंदा नहीं पड़ता। साड्डे नाल वाधा बार्डर द रिश्ता तो पेट द है। पाकिस्तान के साथ रिश्तों की सारा सच ड्राइवर कह चुका था।
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