23 मणिपुरी युवकों के अलकायदा में भर्ती होने का संदेह !
नई दिल्ली। एक अंग्रेजी अखबार ने खबर दी है कि मणिपुर के थोबल जिले के लिलोंग क्षेत्र से कम से कम 23 युवाओं ने हाल के महीनों में अल कायदा की भारतीय इकाई में शामिल होने के लिए घर छोड़ दिया है।
एक शीर्ष पुलिस अधिकारी के अपना नाम न छापने की शर्त के साथ बयान को एक अंग्रेजीअखबार ने प्रकाशित किया है जिसके मुताबिक “वे दो बैच में गए, उनमें से चार वापिस आ गए जबकि अन्य का कोई पता नहीं है।” पुलिस अधिकारी ने कहा कि इन रंगरूटों को अफगानिस्तान व इराक में युद्ध में उतारे जाने से पहले हथियारों का प्रशिक्षण दिया गया।
अखबार ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि हो सकता है इंडियन मुजाहिदीन का मिर्ज़ा शादाब बेग का धड़ा जिसका आधार अफगानिस्तान में है, ने भारत से नए रंगरूट के रूप में वैश्विक आतंकी संगठन को ज्वाइन किया हो।
बता दें, पहले भी आरोप लगते रहे हैं कि इंडियन मुजाहिदीन नामका कोई संगठन नहीं है और यह खुफिया एजेंसियों का अपना मनगढ़ंत संगठन है। वैसे भी मणिपुर में अलकायदा का ढांचा होने का आधार मालूम नहीं पड़ता है।
राज्य प्रायोजित आतंकवाद के विशेषज्ञ व रिहाई मंच के प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा कि जिस तरह से देश में सांप्रदायिक ताकतें मजबूत हुई हैं उससे हमारे समाज की कमजोरी बढ़ी है, जाहिर है ऐसे में इस तरह की बाहरी ताकतों का स्कोप बढ़ेगा। इससे मुकाबला करने का एक ही तरीका है कि हम एक समाज के रूप में एकजुट रहें और बाहरी ताकतों के मंसूबों का नाकाम कर दें।
उधर एक अन्य अंग्रेजी अखबार के एक विश्लेषण के अनुसार यह अलकायदा और आईएसआईएस के बीच वर्चस्व की लड़ाई का नतीजा हो सकता है। क्योंकि अलकायदा, आईएसआईएस से जमीनी जंग हार रहा है। एक इस्लामिक खलीफा राज्य का निर्माण अल कायदा का सपना रहा है। दुर्भाग्य से, इस प्रतियोगिता मे बाज़ी अबू बकर बगदादी ने मार ली। इसी वर्ष फरवरी महीने में अल कायदा ने आईएसआईएस को अपने संगठन से बाहर कर दिया था।
फाउण्डेशन फॉर डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसीज़ के सीनियर फैलो डेनिड गार्टेंसटाईन रॉस के हवाले से अखबार कहता है- अल कायदा, आसानी से नए सहयोगियों की घोषणा नहीं करता, न ही यह मक्खियों की तरह रात ही रात में संगठनों से बना होना प्रतीत होता है। जवाहिरी की यह घोषणा, भारत और अलकायदा के सांगठनिक ढांचे का विश्लेषण दोनों के लिहाज से महत्वपूर्ण प्रतीत होती है। यह संभावना है कि हूजी और एचयूएम की शाखाएं जिस तरह इस प्रयास में शामिल हैं, उसी तरह आईएम भी शामिल हो रहा हो।
अखबार कहता है- अब तक, अल कायदा और उसके सहयोगी संगठनों का वैश्विक जिहादी आंदोलन का एक ढीला फ्रेंचाइज़ी मॉडल रहा है. क्षेत्रीय संगठनों ने अपने स्थानीय हितों के अनुसार काम किया लेकिन ओसामा बिन लादेन और अल कायदा की विचारधार के प्रति निष्ठा की कसम खाई। उन्होंने अफगानी तालिबानी नेता मुल्ला उमर के प्रति बैत ( निष्ठा की कसम) किया। बगदादी को इससे परेशानी हुई और और, अल कायदा में और अधिक दरारें सतह पर दिखाई दीं। आईएसआईएस को एक वैकल्पिक जिहादी शक्ति केन्द्र बनाने के लिए इसने बगदादी को प्रेरित किया। अल कायदा में अरब प्रायद्वीप के एक मौलवी मामून हातेम ( Mamoun Hatem) ने आईएसआईएस को समर्थन दिया। पूर्ववर्ती जेम्माह इस्लामिया के इण्डेनेशियन नेता अबू बकर बशीर (Abu Bakar Bashir, Indonesian leader of former Jemaah Islamiyah) ने भी इसका समर्थन किया, इस तरह दक्षिण पूर्व एशिया, और मलेशिया आईएसआईएस के मजबूत भर्ती आधार बन गए।
बगदादी को अबू सय्याफ के सदस्यों का भी समर्थन मिला और मिस्र के अंसार-अल-मकदीस (Ansar Bayt al-Maqdis) ने भी पाला बदलकर बगदादी का साथ दिया।
आईएसआईएस अबू मुसाब अल ज़रकावी के जमात अल तवाहिद अल जिहाद का उत्तराधिकारी है। अखबार अमेरिकन एंटरप्राइज़ इंस्टीट्यूट स्थित अल कायदा विशेषज्ञ कैथरीन जिम्मेरमान के हवाले से कहता है कि रणनीति को लेकर बिन लादेन और जरकावी में मतभेद हो गया। बिन लादेन और बाद में जवाहिरी ने शिया-सुन्नी विवाद से ऊपर उठकर जिहाद उद्यम में मुस्लिम एकता के आग्रह को बल दिया, जबकि जरकावी ने खुलेआम शियाओं को निशाना बनाया। बाद में आईएसआईएस ने भी जरकावी की लीइन को ही पकड़ा।
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