मंगलवार, 11 नवंबर 2014

हमला नेहरू की विरासत पर?

राम पुनियानी
भारत का विभाजन, महात्मा गाँधी की हत्या और नेहरू की नीतियां, पिछले कई दशकों से अनवरत बहस का विषय बनी हुई हैं। हर राजनैतिक दल व विचारधारा के लोग, इन तीनों की व्याख्या अपने-अपने ढंग से करते रहे हैं। एक तरह से, ये तीनों, आधुनिक भारतीय इतिहास में मील के पत्थर हैं। भारत का विभाजन और गाँधी की हत्या, इस अर्थ में आपस में जुड़े हुए हैं कि गोडसे ने गाँधी पर मुसलमानों का तुष्टीकरण करने का आरोप लगाया था। गोडसे के विचार, तत्कालीन घटनाक्रम की उसकी अधकचरी समझ पर आधारित थे और उसने उसी समझ को गाँधीजी की हत्या का औचित्य बना लिया। गोडसे के विचारों से आज के कई हिंदू राष्ट्रवादीसहमत हैं। इनमें से अधिकांश या तो भाजपा-आरएसएस से जुड़े हुए हैं या उनके आसपास हैं। भाजपा के दिल्ली में सत्ता में आने के बाद से उसके कई नेता, अधिक खुलकर इन मुद्दों की हिंदू राष्ट्रवादी व्याख्या को स्वर दे रहे हैं। परन्तु इसमें भी अब एक नया पेंच जोड़ दिया गया है। यह पेंच केरल के एक भाजपा नेता द्वारा आरएसएस के मुखपत्र केसरी’ में लिखे गए एक लेख से जाहिर है। यह लेख, अप्रत्यक्ष रूप से, कहता है कि नाथूराम गोडसे को महात्मा गाँधी की जगह जवाहरलाल नेहरू की हत्या करनी थी क्योंकि लेखक के विचार में, असली दोषी नेहरू थे, गाँधी नहीं।
जिन भाजपा नेता ने इस लेख को लिखा है, उनका नाम है बी. गोपालकृष्णन। वे लिखते हैं, ‘‘यदि इतिहास के विद्यार्थी यह महसूस करते हैं कि गोडसे ने गलत व्यक्ति पर निशाना साधा तो उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता। देश के विभाजन के लिए केवल और केवल नेहरू जिम्मेदार थे।’’ इस लेख से हम क्या समझें? क्या यह आरएसएस की आधिकारिक राय है? हमेशा की तरह, आरएसएस प्रवक्ता मनमोहन वैद्य ने अपने ही नेता की राय से संघ को अलग कर लिया है। परन्तु यह समझना मुश्किल नहीं हैं कि आरएसएस के कुछ लोग नेहरू को गाँधी से भी बड़ा खलनायक क्यों मानते हैं। ‘केसरी’ में छपा लेख इसी विचार की अभिव्यक्ति है। इससे पहले कि हम देखें कि देश के विभाजन के लिए कौन जिम्मेदार था, आइए हम समझने की कोशिश करें कि महात्मा की जगह नेहरू को दोषी ठहराए जाने का उद्देश्य क्या है।
हाल में, नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को श्रद्धांजलि स्वरूप, उनके जन्मदिवस 2 अक्टूबर को ‘स्वच्छ भारत अभियान’ शुरू किया। इसके पीछे दो धूर्ततापूर्ण लक्ष्य थे। पहला,  हिंदू राष्ट्रवाद की राजनीति के लिए गाँधी का इस्तेमाल करना और दूसरा, गाँधी के योगदान को मात्र साफ-सफाई तक सीमित कर देना।गाँधीजी निःसंदेह साफ-सफाई पर जोर देते थे परन्तु वे हिंदू-मुस्लिम एकताराष्ट्रीय एकीकरण, अहिंसा और सत्य के पैरोकार भी थे। साफ-सफाई के बारे में गाँधीजी की सोच को जरूरत से अधिक महत्व देने का उद्देश्य, उनके अन्य सिद्धांतों का महत्व कम करना है।
उसी तरह, नेहरू की भारतीय राष्ट्रवाद, बहुवाद, धर्मनिरपेक्षता व वैज्ञानिक सोच के प्रति जबरदस्त प्रतिबद्धता के कारण वे हिंदू राष्ट्रवादियों को पूरी तरह अस्वीकार्य हैं। हिंदू राष्ट्रवाद, इन सभी मूल्यों का धुर विरोधी है। इस लेख का उद्देश्य, नेहरू को विभाजन का दोषी बताकर, उस पर आम जनता और बुद्धिजीवियों की प्रतिक्रिया जानना है।
भारत के साम्राज्यवाद-विरोधी स्वाधीनता संग्राम के तीन स्तंभ थे- गाँधी, नेहरू और पटेल। गाँधी का कद इनमें सबसे ऊँचा था। उन्होंने ही ब्रिटिश विरोधी, भारतीय राष्ट्रवादी जनांदोलन को खड़ा किया, उसे ठोस जमीन दी और उसके नैतिक पथप्रदर्षक बने। उन्होंने अपनी विरासत, नेहरू और पटेल को सौंपी। हिंदू राष्ट्रवादी, जिनमें हिंदू महासभा और आरएसएस शामिल हैं, हिंदू-मुस्लिम एकता स्थापित करने के गाँधी के प्रयास के कटु आलोचक थे। मुस्लिम साम्प्रदायिक धारा की प्रतिनिधि मुस्लिम लीग, कांग्रेस को एक ऐसी पार्टी के रूप में देखती थी जो कि केवल हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करती है। सत्य यह है कि सभी धर्मों के बहुसंख्यक लोग, गाँधीजी के नेतृत्व में चल रहे भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के साथ थे। हां, सन् 1940 के बाद सांप्रदायिकता में आए उछाल के कारण मुसलमान शनैः-शनैः मुस्लिम लीग की ओर झुकने लगे।
दोनों सांप्रदायिक धाराएं गाँधी की आलोचक थीं। हिंदू सांप्रदायिक तत्व उन्हें मुसलमानों के तुष्टीकरण का दोषी बतलाते थे तो मुस्लिम संप्रदायवादी उन्हें हिंदुओं का प्रतिनिधि कहते थे। विभाजन के पीछे कई कारक थे, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण था अंग्रेजों की ‘‘फूट डालो और राज करो’’ की नीति, जिसने हिंदू और मुस्लिम, दोनों सांप्रदायिक धाराओं को मजबूती दी। ब्रिटेन का अपना साम्राज्यवादी एजेण्डा था। उसे मालूम था कि अगर भारत एक रहा तो वह एक बहुत बड़ा और शक्तिशाली देश होगा। ब्रिटेन को यह भी अंदाजा था कि आने वाली द्विधुर्वीय दुनिया में, भारत, सोवियत संघ के शिविर में रहेगा। उनकी इस सोच के पीछे कारण यह था कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में एक शक्तिशाली वामपंथी गुट था, जिसका नेतृत्व स्वयं नेहरू करते थे।
विभाजन एक बहुस्तरीय त्रासदी था और उसे केवल एक घटना मानना भूल होगी। वह कई घटनाओं का मिला-जुला नतीजा थी। इसे समझने के लिए हमें एक ओर भारतीय और धार्मिक (मुस्लिम लीग-हिंदू महासभा) राष्ट्रवादियों के बीच के अंतर को समझना होगा तो दूसरी ओर हमें यह भी देखना होगा कि अंग्रेजों का कुटिल खेल क्या था। तभी हम इस प्रक्रिया को समझ सकेंगे। विभाजन के लिए केवल किसी व्यक्ति विशेष को दोषी ठहराने से काम चलने वाला नहीं है।
अब तक हिंदू सांप्रदायिक तत्व चिल्ला-चिल्लाकर यह कहते आए हैं कि भारत के विभाजन और मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिए गाँधी जिम्मेदार थे। अब वे नेहरू को खलनायक बनाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें गाँधी की जरूरत है- परन्तु वह भी केवल ‘सफाई पसंद नेता के रूप में’ न कि सत्य और अहिंसा में अटूट विश्वास रखने वाले महान राष्ट्रपिता बतौर। हिंदू संप्रदायवादी चाहे कितनी ही कोशिश क्यों न करें वे नेहरू पर कब्जा नहीं कर सकते क्योंकि नेहरू ने स्वाधीनता के बाद लंबे समय तक भारतीय राष्ट्रवाद, बहुवाद, उदारवाद और विविधता के मूल्यों को मजबूती देने का काम किया। यही वे मूल्य हैं जो दुनिया के सबसे बड़े जनांदोलन, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन, का आधार थे। आश्चर्य नहीं कि आरएसएस अपने ही मुखपत्र में प्रकाशित लेख से कन्नी काट रहा है। वैसे भी, यह लेख एक मुखौटा है, जिसका उद्देश्य संघ परिवार के असली इरादों और सोच को छुपाना है। (मूल अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)
(लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)

About The Author

Ram Puniyani was a professor in biomedical engineering at the Indian Institute of Technology Bombay, and took voluntary retirement in December 2004 to work full time for communal harmony in India. He is involved with human rights activities from last two decades.He is associated with various secular and democratic initiatives like All India Secular Forum, Center for Study of Society and Secularism and ANHAD.

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