मानव समाज में कई ऐसी समस्याएँ हैं जिनका हल अब तक नहीं ढूँढा जा सका है। वेश्यावृत्ति ऐसी ही एक समस्या है जिसकी व्याप्ति सदियों से ही पूरे विश्व में है। किन्तु इसे मानवता का एक विराट कलंक मानने के बावजूद, इसके खात्मे का सटीक सूत्र अब तक सामने नहीं आया है। संभवतः इस आदिमतम पेशे के खात्मे को असंभव मानते हुए ही भारतीय महिला आयोग देह व्यापार को वैध बनाने के लिए आगामी 8 नवम्बर को एक प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट के पैनल के समक्ष प्रस्तुत करने जा रहा है। इस बात की भनक लगते ही महिला संगठनों और उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाली नारीवादिनों में उबाल गया है। वे बहुत ही आक्रामक अंदाज में ललिता कुमारमंगलम की अध्यक्षता में लिए गए आयोग के इस निर्णय के खिलाफ मुखर हो उठी हैं।
आइप्वा की राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन ने कहा है कि पुख्ता होमवर्क किये बिना इस गंभीर मसले को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष नहीं रखना चाहिए। सबसे आवश्यक है कि उन कारकों को ही ख़त्म किया जाय,जो कि वेश्यावृत्ति को बढ़ाने के लिए जिम्मेवार हैं। इनमें आर्थिक मज़बूरी का समाधान निकालने और उसका मजबूत विकल्प तैयार करने की सख्त जरूरत है। देश में हुए तमाम अध्ययन इस बात को पुख्ता करते हैं कि आर्थिक दबाव, घरेलू काम का बोझ और प्रताड़ना सहने की बजाय महिलाएँ वेश्यावृत्ति को मज़बूरी में चुनती हैं। इसलिए राष्ट्रीय महिला आयोग को उन महिलाओं के समक्ष बेहतर विकल्प पेश करने होंगे ताकि वेश्यावृत्ति के रास्ते जाना ही न पड़े।
महिला आयोग द्वारा वेश्यावृत्ति को वैध करने की वकालत करने से ऐसा लगता है मानो उन शोषित महिलाओं को रोजगार का रास्ता प्रदान किया जा रहा है। यह शर्म की बात है। क्या सेक्स वर्कर होने से ही बेरोजगारी की भरपाई हो जाएगी? यह यक्ष प्रश्न है जिस पर विचार किया जाना चाहिए। वेश्यावृत्ति को विकल्प नहीं बनने देना चाहिए। मशहूर फेमिनिस्ट मधु किश्वर ने कहा है कि भारत जैसे गरीब देश में अधिकांश महिलाएँ वेश्यावृत्ति के पेशे में अपनी इच्छा से नहीं आतीं। कोई गरीबी के कारण आती है, किसी का अपहरण कर लिया जाता है तो किसी को बेच दिया जाता है। ऐसी स्थिति में यह कहना कि वेश्यावृत्ति के पेशे को ही कानूनी रूप देना इसका हल है, तो मैं तो यह उचित नहीं समझती। भारत क्या दुनिया के किसी भी देश में कानूनों से वेश्यावृत्ति को रोका नहीं जा सकता। इसीलिए जब हम वेश्यावृत्ति को कानूनी रूप देने की बात करते हैं तो इसका रूप स्पष्ट होना चाहिए कि आखिर इसका आशय क्या है। अगर इसका आशय यह है कि हर गली-मोहल्ले में किसी को भी यह विज्ञापान करने की छूट हो कि यहाँ देह व्यापार होता है,तो इससे तो किसी का भला नहीं होने वाला है। न औरतों का और न समाज का। बात तो इस पर होनी चाहिए कि वेश्यावृत्ति के धंधे में फँसी महिलाओं को कैसे बाहर निकालकर समाज की मुख्यधारा में लाया जाय। वेश्यावृत्ति को कानूनी रूप देना तो एक सरलीकृत नारा भर है,यह समस्या का कोई हल नहीं।
वेश्यावृत्ति के पेशे को वैध बनाये जाने के मुद्दे पर सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की निदेशक रंजना कुमारी ने भी आयोग के भावी प्रस्ताव की तीव्र भर्त्सना करते हुए कहा है- ‘राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा वेश्यावृत्ति को वैध करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के समक्ष प्रस्ताव लाना बेवकूफी भरा कदम है। इसकी वैधता के तरफ बढ़ना समझ से परे है। अहम बात यह है कि यह महिला की गरिमा के सरासर खिलाफ जाता है। महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने की बजाय यह रास्ता क्यों अख्तियार किया जा रहा है? वेश्यावृत्ति के पेशे में ज्यादातर महिलाओं को 18 साल की नीचे की आयु में ही धकेल दिया जाता है। गरीबी, शोषण और बेरोजगारी जैसे जिम्मेदार कारकों को थामने के रास्ते तलाशे जाने चाहिए। जब रोजगार का विकल्प बढ़िया होगा तो महिलायें इस पेशे में क्यों आना चाहेंगी। इस वक्त जरूरत है कि हमारी महिलाओं को सुविधाएँ, पुरुषों के समान अवसर और सुरक्षा दी जाय न कि वेश्यावृत्ति को वैध बनाकर इसके लिए रास्ते खोले जांय।
तो भारत विख्यात नारीवादिनों की राय बताती है कि भारतीय महिला आयोग के तरफ से जो प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट के विचारार्थ जा रहा है, वह देह व्यापर जैसे कलंकित पेशे पर अंकुश लगाने में प्रभावी साबित नहीं होगा। इससे जगह-जगह आसानी से नए-नए वेश्यालय खुलने के रास्ते साफ़ हो जायेंगे। उनके अनुसार चिंता इस बात के लिए होनी चाहिए कि कैसे वेश्यावृत्ति के लिए जिम्मेवार गरीबी, शोषण, बेरोजगारी इत्यादि जैसे कारकों का दूरीकरण हो। इसके लिए उनका सुझाव है हमारी महिलाओं को पुरुषों के समान अवसर और सुरक्षा मिले। अब जहाँ तक पुरुषों के सामान महिलाओं को भी अवसर देने की बात है, ऐसा नहीं कि महिला आयोग के हालिया निर्णय से ही ऐसा सुझाव आया है। ऐसा महिला सशक्तिकरण के तमाम पैरोकार वर्षों से सुझाव देते रहे हैं, बावजूद इसके पुरुषों के सामान महिलाओं को अवसर नहीं मिल रहा है। कुछ दिन पूर्व ही वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम ने भी इस मामले में भारतीय महिलाओं की दयनीय स्थिति पर गहरी चिंता जाहिर किया है। बहरहाल भारतीय महिलाओं को पुरुषों के सामान अवसर नहीं मिल रहा है तो उसका एक प्रधान कारण यह है कि देश के महिला सशक्तिकरणकामी संगठनों और नारिवादिनों के तरफ से इस दिशा में कोई सटीक सूत्र ही प्रस्तुत नहीं किया गया है।
इस दिशा में राष्ट्र चाहे तो दलित ,पिछड़े समाज के लेखकों द्वारा संचालित संगठन ‘बहुजन डाइवर्सिटी मिशन’ से आइडिया उधार ले सकता है। मुख्यतः मानव जाति की सबसे बड़ी समस्या, ’आर्थिक और सामाजिक विषमता के खात्मे’ के एक सूत्रीय एजेंडे पर कार्यरत इस संगठन से जुड़े लोग मुकम्मल महिला सशक्तिकरण के लिए वर्षों से शक्ति के स्रोतों में सामाजिक के साथ लैंगिक विविधता लागू करने की मांग उठाये जा रहे हैं, पर महिला सशक्तिकरण के लिए कार्यरत शक्तियों ने इसके प्रति कोई नोटिस नहीं लिया। अब जबकि वेश्यावृत्ति को वैध पेशा बनाने की खतरनाक कवायद शुरू हो रही है, राष्ट्र को एक बार शक्ति के स्रोतों में लैंगिक विविधता लागू करने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। इससे महिलाओं को आय के समस्त स्रोतों (निजी और सरकारी क्षेत्र की सभी प्रकार की नौकरयों, सप्लाई, डीलर शिप, ठेकों, पार्किंग, परिवहन … ) सहित राजनीतिक, धार्मिक-सांस्कृतिक सभी संस्थाओं में 50 प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित होगी। ऐसा होने पर यह दावा तो नहीं किया जा सकता कि देह व्यापार का खात्मा हो ही जायेगा, किन्तु इतना तय है कि अर्थाभाव के कारण इस पेशे में जाने वाली महिलाओं की संख्या में भारी कमी आएगी। यही नहीं हर क्षेत्र में आधा हिस्सा मिलने पर देश की आधी आबादी की गरिमा और सुरक्षा में भारी इजाफा हो जायेगा। मानव सभ्यता की दौड़ में शताधिक साल पीछे चल रहे पुरुष प्रधान भारतीय समाज में हर क्षेत्र में लैंगिक विविधता लागू करवाना निश्चय ही लोहे के चने चबाने जैसा काम है। किन्तु देश की नारिवादिनें यदि देह-मुक्ति की जगत आर्थिक-मुक्ति को प्राथमिकता देते हुए इस दिशा में प्रयास करें तो संभव है एक-डेढ़ दशक में ही वे लैंगिक विविधता लागू करवाने की लड़ाई जीत लें। बहरहाल वेश्यावृत्ति के पेशे को वैध करवाने की दिशा में आगे बढ़ रहा भारतीय माहिला आयोग क्या शक्ति के स्रोतों में लैगिक विविधता (जेंडर डाइवर्सिटी) लागू करवाने की दिशा में कुछ करेगा?
लेखक बहुजन चितक, स्वतंत्र टिप्पणीकार एवं बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।About The Author
एच एल दुसाध,
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