यह जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करता है, जिसका आशय है :-
रक्षा, विदेशी मामले, वित्त और संचार क्षेत्र को छोड़कर तमाम अन्य कानूनों, जिन्हें भारत की संसद पारित करती है, को राज्य में लागू किए जाने से पूर्व जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा उनकी पुष्टि किया जाना जरूरी है। यह व्यवस्था 1947में जम्मू-कश्मीर के पाकिस्तान के बजाय भारत में विलय के बाबत हुई थी। इसके लिए जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन महाराजा महाराजा हरि सिंह और भारत सरकार के बीच सहमति के बाद हुई थी। संधि पर महाराजा हरि सिंह ने दस्तखत किये थे। इसके परिणामस्वरूप जम्मू-कश्मीर के नागरिक शेष भारत में लागू कानूनों के बजाय जम्मू-कश्मीर के संविधान के तहत लागू कानून विशेष की जद में आते हैं। खासकर नागरिकता, सम्पत्ति और अन्य कुछ मूलभूत अधिकारों के मामले में यह व्यवस्था लागू होती है। जम्मू-कश्मीर के संविधान का पहला ही अनुच्छेद कहता है कि राज्य भारत का अभिन्न अंग है और अभिन्न अंग रहेगा। यह अनुच्छेद और इसके साथ ही अनुच्छेद-पांच, जिसके तहत राज्य के लिए कानून बनाने को लेकर भारत की संसद के अधिकार क्षेत्र को परिभाषित किया गया है, को संशोधित नहीं किया जा सकता। इस विशेष व्यवस्था की 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री (हरि सिंह द्वारा नियुक्त) शेख अब्दुल्ला के बीच हुई सहमति से भी पुष्टि हुई। 1952 में दिल्ली एग्रीमेंट में भी विशेष रूप से उल्लेख था कि राष्ट्रीय ध्वज के साथ ही जम्मू-कश्मीर का अपना ध्वज होना चाहिए और दोनों का दर्जा भी एक समान होना चाहिए। इस बात पर सहमति बनी थी कि राज्य का मुखिया, जिसे सदर- ए-रियासत (या प्रधानमंत्री) कहा गया, का चुनाव राज्य के विधायक करेंगे। इस एग्रीमेंट में राज्य में सामान्य आपातकाल घोषित करने के लिए राष्ट्रपति को अधिकार सम्पन्न करने वाले अनुच्छेद-352 का विरोध किया गया था। राज्य विधानसभा का कार्यकाल पांच के बजाय छह वर्ष का होता है जबकि अन्य निर्वाचित निकायों और संसद का कार्यकाल पांच वर्ष का होता है। अनुच्छेद-370 को लेकर सबसे हालिया विवाद उस समय छिड़ गया जब नरेन्द्र मोदी ने बयान दिया कि यह विशेष व्यवस्था महिलाओं के साथ भेदभाव करती है। मोदी ने कहा कि राज्य की कोई महिला यदि राज्य से बाहर किसी व्यक्ति से विवाह कर लेती है, तो वह राज्य में सम्पत्ति पर अपना अधिकार खो बैठती है। हालांकि ऐसा कहा जाना सही नहीं है। पहली बात तो यह कि इस बाबत अधिसूचना को राज्य के उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था। उसके बाद पीडीपी ने एक कानून का मसौदा प्रस्ताव (जिसे नेशनल कान्फ्रेंस ने भी समर्थन दिया था) पेश किया ताकि अदालत के फैसले को निष्प्रभावी किया जा सके लेकिन वह प्रस्ताव पारित ही नहीं हो सका।
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रविवार, 8 दिसंबर 2013
अनुच्छेद 370-एक विशेष व्यवस्था
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