रविवार, 8 दिसंबर 2013

पितृसत्ता की प्रतीक महिलाओं की ‘हाई हील’ जूतियां

आधी बात पूरी बात डॉ. कुमुदिनी पति

हाई हील की वजह से पंजे का पैर की हड्डियों के साथ बनने वाला कोण 90 डिग्री नहीं रह जाता और पैर की हरकत 60 डिग्री नहीं होती। यानी चाल ही बदल जाती है, जिसके कारण बाद में बिना एड़ी वाले जूतों को पहनना भी संभव नहीं रह जाता

अगर आप समझती हैं कि आपकी जूती आपको लंबाई देती है और मर्दो के बराबर खड़ा कर देती है तो यह गलतफहमी है। ऊंची एड़ी के जूते या सैंडल्स महिलाओं के लिए ‘फैशन स्टेटमेंट’ जरूर हैं पर आधुनिक शोध के अनुसार, यह स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं। अमेरिका और ब्रिटेन के अस्थि विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे जूतों को लगातार पहनने से रीढ़, एड़ियों, पैर और उंगलियों की हड्डियों पर पूरे शरीर का भार पड़ता है, जिससे उनके आकार स्थायी रूप से प्रभावित होते हैं यानी उनका आकार हमेशा के लिए बदल जाता है। रीढ़ के मनकों के बीच की जगह कम हो जाती है, मनके बाहर को खिसक जाते हैं और उनके बीच से गुजरने वाले तंत्रिकाओं पर दबाव पड़ता है। कभी-कभी घुटनों में ऑस्टियोपोरोसिस जल्द पैदा हो जाती है या फिर पुरानी ऑस्टियोपोरोसिस गंभीर रूप धारण कर लेती है। बताया जाता है कि ऑस्टियोपोरोसिस 26 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। महिलाओं का अंग-विन्यास भी गड़बड़ा जाता है और उन्हें चलने में दिक्कत होती है तथा पैरों और पीठ में भयानक दर्द होने लगता है। फैशन उद्योग के सलाहकार बताते हैं कि दर्द कम करने के लिए मरहम लगाए जा सकते हैं, सुई लगाई जा सकती है, पैरों की सिकाई की जा सकती है, कमर सीधी करने के लिए व्यायाम किये जा सकते हैं, रात को सोने से पूर्व पैरों की मालिश की जा सकती है और पैरों को बीच-बीच में आराम दिया जा सकता है। कैटवॉक करने से पहले हील वाली जूतियों को पहनकर अभ्यास किया जा सकता है, यह मॉडलों के लिए हिदायत रहती है। पर कोई यह नहीं बताता कि ऊंची एड़ी वाली जूतियां पहनकर रैम्प पर मॉडल गिर चुकी हैं और उनके पैर में फ्रैक्चर भी हुए हैं। हो सकती है अपू रणीय क्षति यह भी छिपाया जाता है कि ऐसे जूतों से शरीर को जो हानि पहुंचती है वह अपूरणीय होती है। यहां तक कि एक्स-रे और अल्ट्रासाउंड के बाद भी पता चलता है कि मांसपेशियों पर बल पड़ने के कारण उनका आकार बदल जाता है, पिंडलियां सूज जाती हैं, पैर मुड़ जाते हैं और पैर का पिंड काम करना बंद कर देता है। इसकी वजह से पंजे का पैर की हड्डियों के साथ बनने वाला कोण 90 डिग्री नहीं रह जाता और पैर की हरकत 60 डिग्री नहीं होती। यानी चाल ही बदल जाती है और इसके कारण बाद में बिना एड़ी वाले जूतों को पहनना भी संभव नहीं रह जाता। इसलिए हम देखते हैं कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को दोगुना अधिक घुटनों के जोड़ की ‘रिप्लेसमेंट सर्जरी’ करानी पड़ती है। जूतों की प्राचीन परंपरा प्राचीन काल में लोग अधिकतर नंगे पांव चलते थे और उच्च वर्ग के लोग ही पैरों को बचाने के लिए चमड़ा, कपड़ा, काष्ठ या पत्तों का प्रयोग करते थे। महिलाओं के बारे में धारणा थी कि उनके पैरों का बंधा होना इस बात का संकेत था कि उनकी यौनिकता जाग चुकी है। आखिर इसके क्या मायने हो सकते हैं? यही न कि यदि लड़की यौन रूप से सक्रिय हो गई है तो उसको यहां- वहां भागने और भटकने से रोका जाना अनिवार्य है। ईसा-पूर्व ग्रीस में वेश्याएं ऐसे जूते पहनती थीं जिनके तल्लों पर उभरे हुए अक्षरों में कुछ लिखा होता था।

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