भविष्य की शीर्ष अर्थव्यवस्था होने का जो दमखम पिछले कुछ समय से हमारे नीति-निर्धारक और कर्णधार भरते रहे हैं, बेशक देश की मौजूदा आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को देखते हुए फिलहाल वह दूर की कौड़ी नजर आता हो लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में भारतीय मूल की प्रतिभाओं का बहुत ही सम्मानजनक संस्थानों में शीर्ष पदों पर काबिज होना देशवासियों का सिर गर्व से ऊंचा कर देता है। यह स्थिति कहीं न कहीं उनके मन में इस आशा का संचार करती दिखती है कि आगामी दस-बीस सालों में विविध क्षेत्रों में भारतवंशी प्रतिभाओं के आधार पर हम विकसित देशों की शीर्ष पंक्ति में विराजमान होने का सपना साकार कर सकते हैं। प्रवासी भारतीय दिवस के मौके पर शिरकत कर रही एक से बढ़कर एक प्रतिभाओं से यह उम्मीद बंधती दिख रही है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में इनके अमूल्य योगदान से कहीं न कहीं भारत की स्थिति मजबूत हो रही है। इस मामले में सबसे अनुकरणीय और रोमांचक वह स्थिति होती है जब सम्मानजनक ओहदा पाने वाली शख्सियत भारत के बहुत ही सामान्य परिवेश और जीवन शैली का हिस्सा होने के बावजूद विदेश में अपना करियर लगभग शून्य से शुरू करते हुए चोटी पर पहुंच जाती है। वह स्थिति तो और भी सोने में सुहागे वाली मानी जाएगी, जब शख्सियत पिछड़े माने जाने वाले किसी हिंदी भाषी राज्य से ताल्लुक रखती हो, साथ ही वह लिंग भेद के मारे भारतीय समाज की कोई विवाहित महिला हो जो अपना करियर दांव पर लगा विवाह बंधन में बंधकर पति के साथ विदेश चली जाए। अमेरिका के जाने-माने ह्यूस्टन विश्वविद्यालय की चांसलर रेणु खटोड़ ऐसी ही शख्सियत हैं। 2008 में इस गौरवपूर्ण पद पर काबिज होने वाली 1955 में जन्मी रेणु ने उत्तर प्रदेश के फरुखाबाद जिले के हिंदी माध्यम के स्कूल में शुरुआती पढ़ाई के बाद 1973 में कानपुर विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की। विवाह के बाद पति के साथ अमेरिका चले जाने के बाद रेणु ने 1975 में वहां पुर्डू विश्वविद्यालय से राजनीतिशास्त्र में एमए और 1985 में लोक प्रशासन में पीएचडी की उपाधि ली। तब से लेकर अब तक करियर की ऊंचाइयां छूने वाली रेणु के नाम कई रिकॉर्ड दर्ज हैं। जैसे वह ह्यूस्टन विश्वविद्यालय में चांसलर का पद सुशोभित करने वाली पहली विदेशी और दूसरी महिला हैं। हमारे लिए इससे बड़े गर्व की बात और कुछ नहीं हो सकती है कि वह विदेशी महिला भारत की बेटी है। नववर्ष पर ब्रिटेन में सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजी गई भारतीय मूल की शिक्षाविद आशा खेमका ने भी रेणु जैसे परिवेश में रहते हुए सफलता की बुलंदियां छुई हैं। रेणु और आशा जैसी शख्सियतें हमारी उन लड़कियों का संबल और प्रेरणा हैं जो परिस्थितियों के चलते करियर बीच में छोड़ घर-गृहस्थी का जिम्मा थाम लेती हैं।
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