सोमवार, 7 अप्रैल 2014

भ्रष्ट और ख़तरनाक है भारत

अमेरिका ने भारत में सुरसा की तरह मुंह बाए जा रहे भ्रष्टाचार पर भारत को आईना दिखाया है, दूसरी ओर आंक़डे बताते हैं कि भारत खतरनाक देश है, लेकिन भारत ने भ्रष्टाचार और बम ब्लास्ट के हालातों से बिग़डे अपने विद्रूप चेहरे को संवारने का कभी बी़डा नहीं उठाया. यही कारण है कि एक तरफ जहां दिन-प्रतिदिन भारत में भ्रष्टाचार की स्थिति भयावह होती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ आए दिन होने वाले बम विस्फोटों के कारण अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर भारत की छवि खतरनाक देश की बन गई है.

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हाल ही में एक अमेरिकी रिपोर्ट ने भारत सरकार को भ्रष्टाचार और भारत के ही नेशनल बॉम्ब डाटा सेंटर ने बम विस्फोटों को लेकर आईना दिखाया है. अमेरिकी रिपोर्ट का कहना है कि भारत में सरकार के सभी स्तर पर भ्रष्टाचार व्याप्त है. अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी द्वारा 2013 के लिए जारी वार्षिक कंट्री रिपोर्ट्स ऑन ह्यूमन राइट्स प्रैक्टिसेस में कहा गया है कि भारत में भ्रष्टाचार दूर-दूर तक फैला हुआ है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भ्रष्टाचार के लिए कानून में दंड का प्रावधान है, लेकिन भारत सरकार कानून को प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पाई है. रिपोर्ट कहती है कि भारतीय अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं और उन्हें दंड नहीं मिल पाता है. जनवरी से नवंबर के बीच सीबीआई ने भ्रष्टाचार के 583 मामले दर्ज किए. केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के पास 2012 में भ्रष्टाचार के 7,224 मामले आए. इनमें 5528 मामले वर्ष 2012 में सामने आए थे, जबकि 1696 मामले उसके पास वर्ष 2011 से ही थे. आयोग ने 5720 मामलों को लेकर कार्रवाई की अनुशंसा की. गैर सरकारी संगठनों ने पुलिस सुरक्षा, स्कूलों में दाखिले, जलापूर्ति या सरकारी सहायता को लेकर काम में तेजी लाए जाने के लिए विशिष्ट रूप से रिश्‍वत दिए जाने की ओर ध्यान दिलाया है. इसके मुताबिक नागरिक संगठनों ने साल भर प्रदर्शनों और वेबसाइट के माध्यम से भ्रष्टाचार की ओर लोगों का ध्यान खींचा. विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि गरीबी दूर करने और रोजगार प्रदान करने के लिए चलाए गए बहुत से सरकारी कार्यक्रमों का ठीक से क्रियान्वयन नहीं हो सका और वे भ्रष्टाचार का शिकार हो गए.

भ्रष्टाचार की निगरानी से जुड़ी प्रतिष्ठित संस्था ट्रांसपेरेसी इंटरनेशनल भी समय-समय पर भारत को आईना दिखाता रहता है, लेकिन इसके बावजूद भारत में भ्रष्टाचार को लेकर अब तक बहुत सुधार देखने को नहीं मिला है. ट्रांसपेरेसी इंटरनेशनल भ्रष्ट देशों की जो सूचि जारी करता है, हाल के वर्षों में भारत की स्थिति भ्रष्टाचार को लेकर गिरती जा रही है. वर्ष 2013 में 177 भ्रष्ट देशों पर इस संस्था ने सर्वेक्षण किया है, जिसमें भारत को 94वां स्थान दिया गया है. संस्था के इस सर्वेक्षण में सबसे ऊपर स्थान पाने वाले देश को सबसे ज्यादा भ्रष्ट माना जाता है और जो देश जितना ही नीचे होता है, उसकी छवि उतनी ही ज्यादा अच्छी होती है. इस तरह भारत में भ्रष्टता की बदतर स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है. इस संस्था में भारत को कुल 100 में मात्र 36 प्वॉइंट दिया है. देश में भ्रष्टाचार को लेकर व्याप्त माहौल के कारण के विश्‍व हलकों में जिस तरह से हाल के वर्षों में भारत की किरकिरी हुई है, वह बेहद चिंताजनक है.

26 जनवरी 1950 को गणतन्त्र की स्थापना के समय देश के संविधान निर्माताओं को भी यह कल्पना नहीं होगी कि उनके द्वारा बनाई जा रही व्यवस्था 60 वर्ष के अन्दर ही इतनी नैतिक विहीन हो जाएगी. देश को चलाने के लिए बनाई जा रही संवैधानिक व्यवस्थाओं पर भी भ्रष्ट लोगों का कब्जा हो गया है. इन घोटालों की परतें खुलने के बाद अब भारत भ्रष्टाचार में सुपर पावर बन गया है. इन घोटालों के कारण सारी दुनिया भारत की और हैरानी से देख रही है.



खतरनाक देश है भारत
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि शांति और अहिंसा का पूरी दुनिया को संदेश देनेवाला भारत अब सबसे खतरनाक देशों में शुमार होता है. हम यह बात यूं ही नहीं कह रहे हैं, बल्कि इसका अपना आधार है. एक साल में होने वाले बम धमाकों की बात करें तो इराक और अफगानिस्तान के बाद भारत में बम विस्फोट का सबसे ज्यादा खतरा है. इस तरह से भारत दुनिया का तीसरा सबसे खतरनाक देश है. ये चौंकाने वाले आंकड़े सरकार के नेशनल बॉम्ब डाटा सेंटर ने जारी किए हैं. हालांकि इन आंक़डों के जारी होने से पहले आप यही सोच रहे होंगे कि बम ब्लास्ट से मारे जाने का सबसे ज्यादा खतरा अफगानिस्तान और सीरिया जैसे देशों में होता है.
नेशनल बॉम्ब डाटा सेंटर के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2013 में भारत में 212 बम धमाके हुए. इस दौरान अफगानिस्तान में 108 बम ब्लास्ट हुए, जबकि बांग्लादेश में 75 और सीरिया में सिर्फ 36 बम धमाके हुए. भारत में 2013 में 2012 के मुकाबले कम बम धमाके हुए. 2012 में 241 बम ब्लास्ट हुए थे, लेकिन 2013 में 2012 की तुलना में कम विस्फोट हुए. 2012 में यह आंकड़ा 241 था. 2012 में कुल 113 लोग मरे और 419 घायल हुए थे, जबकि 2013 में मरने वालों की संख्या बढ़कर 130 और घायलों की संख्या 466 हो गई.
इन आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि दुनिया भर में होने वाले 75 फीसद बम ब्लास्ट इराक, पाकिस्तान और भारत में होते हैं. पिछले 10 साल में भारत में हुए आईईडी धमाकों के विश्‍लेषण से पता चला कि 2004 से 2013 के बीच भारत में औसतन 298 बम धमाके हुए, जिसमें 1,337 लोग मारे गए. यह अफगानिस्तान से काफी ज्यादा है. अफगानिस्तान में पिछले पांच साल में 2010 तक अधिकतम 209 बम धमाके हुए. भारत के अलावा पूरी दुनिया में 69 प्रतिशत हमले सीधे जनता को निशाना बनाकर किए गए, जबकि भारत में सिर्फ 58 प्रतिशत ही ऐसे हमलों को अंजाम दिया गया. बाकी बम विस्फोटों में सुरक्षाबलों और सरकारी संपत्तियों को निशाना बनाया गया.

 
हर तरफ लोगों मे भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रोश दिखाई दे रहा है. अक्सर भारत की सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी कहती है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ईमानदार हैं. यूपीए-1 ने जब शासन शुरू किया था, तो शुरू में भारत की जनता का भी यही मानना था, लेकिन जल्द ही लोगों का भ्रम टूट गया. आज लोगों के मुंह से यह सुना जा सकता है कि इतनी भ्रष्ट सरकार के प्रधानमंत्री स्वयं ईमानदार कैसे हो सकते हैं? कहना गलत नहीं होगा कि मनमोहन सिंह भ्रष्टाचार के प्रमोटर प्रधानमंत्री हैं.
भारत दक्षिण एशिया के सबसे भ्रष्ट देशों में है. वहीं यह देश विश्‍वस्तरीय भ्रष्ट देशों की सूचि में भी अग्रणी देशों में शामिल है. भारत में भ्रष्टाचार की विभत्सता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है की विश्‍व में ज्ञात कुल काले धन का 56 फिसद भारतियों का है, जो लगभग 1800 बिलियन डॉलर का है. ज्ञात-अज्ञात स्रोत पर कुल अनुमानित भारतीय काला धन लगभग 400 लाख करो़ड का अनुमानित है. स्विटजरलैंड बैंकिंग एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार, स्विस बैंकों में जमा धन में भारत का नाम सबसे ऊपर है. 65-223 अरब रुपये का काला धन इन बैंकों में जमा है. यह राशि भारत के वर्तमान विदेशी मुद्रा भंडार से पांच गुणा अधिक है. 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला, कॉमनवैल्थ खेल घोटाला और आदर्श हाऊसिंग सोसायटी घोटाला में पैसों के घपले को जो़ड दिया जाए तो सिर्फ इन तीन घोटालों का पैसा ही 3 लाख करो़ड रुपये का बैठता है. इससे भारत में ब़डे पैमाने पर भ्रष्टाचार की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है.
भारत की भ्रष्टाचार निरोधक संस्थाओं को एक हाथ से अधिकार देकर दूसरे हाथ से छिन लिया गया है. इन खामियों को दूर करने का कभी प्रयास नहीं किया गया है. केन्द्रीय सतर्कता आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति के लिए कोई स्पष्ट मानक न होने के कारण सरकार अपने स्वार्थ के लिए पी. जे. थॉमस जैसे भ्रष्ट अधिकारी को भी अध्यक्ष बना देती है, जिससे इस संस्था की स्थापना का मूल उद्देश्य ही धूमिल हो जाता है. केन्द्रीय सतर्कता आयोग को आपराधिक मामले दर्ज करने की शक्ति नहीं है और न ही छानबिन के लिए अपना कोई तन्त्र है. दूसरा सशक्त विभाग है विभागीय सतर्कता विंग्स. इस संस्था के अधिकांश सदस्य अस्थायी आधार पर विभाग के लोग ही होते है. प्रत्येक विंग विभागाध्यक्ष के सीधे नियंत्रण में होने के कारन यह बमुश्किल ही किसी वरिष्ठ अधिकारी के विरुद्ध जांच करने में सक्षम है. इसका कारण यह है कि यह बिल्कुल संभव है कि बाद के दिनों में वह कभी उसी व्यक्ति के मातहत काम करने को बाध्य हो सकता है. भ्रष्ट राजनीतिज्ञों पर इसका कोई क्षेत्राधिकार नहीं है और न ही किसी के विरुद्ध एफ.आई.आर. दर्ज करने की शक्ति है. यह सिर्फ अनुशासनात्मक कार्यवाही की प्रक्रिया प्रारंभ कर सकती है. खुफिया विभाग सीबीआई की हाल के वर्षों में छवि बद से बदतर हो चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल ही में कहा है कि सीबीआई पिंजरे में बंद तोते की तरह है. कुल मिलाकर देखा जाए तो सीबीआई सत्ताधीन पार्टी के नियंत्रण में काम करने को बाध्य है. परिणामतः यह अधिकांशतः राजनीति से प्रेरित मामलों में उलझी रहती है. भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक को जनता के धन का संरक्षक कहा जाता है, लेकिन जनता के धन के दुरुपयोग और लूट के विरुद्ध इसकी शक्ति बहुत ही सिमित है, जिससे भ्रष्टाचार एवं अनियमितता पर प्रभावी नियंत्रण में यह सक्षम नहीं है. ये जनता के धन के वाच डॉग कहे जाते हैं, लेकिन ये डॉग्स दंतहीन और नखहीन है तथा भ्रष्टाचार अथवा भ्रष्टाचारी के विरुद्ध कुछ भी कार्यवाही करने में सक्षम नहीं है.



घोटाले के अंबार पर भारत
जीप घोटाला (1948), साइकिल आयात घोटाला (1951), मुंध्रा मैस (1957-58), तेजा लोन (1960), पटनायक मामला (1965), नागरावाला घोटाला (1971), मारुति घोटाला (1976), कुओ ऑयल डील (1976), अंतुले ट्रस्ट (1981), एचडीडब्ल्यू सबमरीन घोटाला (1987), बिटुमेन घोटाला, तांसी भूमि घोटाला, सेंट किट्स केस (1989), अनंतनाग ट्रांसपोर्ट सब्सिडी स्कैम, चुरहट लॉटरी स्कैम, बोफोर्स घोटाला (1986), एयरबस स्कैंडल (1990), इंडियन बैंक घोटाला (1992), हर्षद मेहता घोटाला (1992), सिक्योरिटी स्कैम (1992), सिक्योरिटी स्कैम (1992), जैन (हवाला) डायरी कांड (1993), चीनी आयात (1994), बैंगलोर-मैसूर इंफ्रास्ट्रक्चर (1995), जेएमएम संासद घूसकांड (1995 ), यूरिया घोटाला (1996), संचार घोटाला (1996), चारा घोटाला (1996), यूरिया (1996), लखुभाई पाठक पेपर स्कैम (1996), ताबूत घोटाला (1999) मैच फिक्सिंग (2000), यूटीआई घोटाला, केतन पारेख कांड (2001) यूटीआई घोटाला, केतन पारेख कांड (2001), बराक मिसाइल डील, तहलका स्कैंडल (2001), होम ट्रेड घोटाला (2002), तेलगी स्टाम्प स्कैंडल (2003), तेल के बदले अनाज कार्यक्रम ( 2005), कैश फॉर वोट स्कैंडल (2008), सत्यम घोटाला (2008), मधुकोड़ा मामला (2008), आदर्श सोसाइटी मामला (2010), कॉमनवेल्थ घोटाला (2010), 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला(2010), नेशनल रूरल हेल्थ मिशन घोटाला (2011), एयर इंडिया एंड इंडियन एयरलाइन्स घोटाला (2011), कावेरी बेसिन डी ब्लॉक घोटाला (2011), एंट्रिक्स देवास घोटाला (2011), पावर प्रोजेक्ट घोटाला (2012), इंदिरा गांधी एअरपोर्ट घोटाला (2012), कोयला घोटाला (2012), लौह अयस्क घोटाला (2012).



भारत में भ्रष्टाचार की समस्या जहां संस्थागत खामियों से जुड़ा है, वहीं यह हमारी विकृत मानसिकता का भी परिणाम है. इन दोनों कारणों ने भारत में भ्रष्टाचार की समस्या को गहन बना दिया है. परिणामतः आज का भारत भ्रष्टाचार के ऐसे दल दल में धंसा नजर आता है, जहां से वापस निकल पाना बहुत मुश्किल है. मुख्य रूप से भ्रष्टाचार बढ़ने का कारण वैश्‍वीकरण के दौर में समाज में पैसे का सम्मान बढ़ना, नैतिक मूल्यों का अवमूल्यन होना, समाज का भय कम होना, कठोर कानून की कमी व दोषी व्यक्तियों पर कार्रवाई नहीं होना है. आम आदमी चाहता है कि इस भ्रष्टाचार रूपी रावण का अंत होना चाहिए. हालांकि वर्षों से जमी हुई इस काई को हटाना आसान नहीं है.

जो रोग समाज के अन्दर महारोग बन गया हो और जिसका अहसास खत्म हो गया हो, उसका निदान भी उसी प्रकार ढूंढना पड़ेगा. जो भ्रष्टाचार बढ़ने के कारण हैं, उन्हीं में उसका समाधान भी है. कुछ उपाय अल्पकालीन होंगे व कुछ दीर्घकालीन, लेकिन दोनों उपायों पर एक साथ ही काम करना होगा. तभी जाकर भ्रष्टाचार पर लगाम लगा पाना संभव होगा. हमारी सरकार को विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने की प्रक्रिया प्रारम्भ करनी होगी व भविष्य में कालाधन बाहर न जाए, इसके प्रावधान करने होगें. भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले राजनेताओं व नौकरशाहों को सत्ता के तंत्र से बाहर किए बिना कोई भी पहल सार्थक नहीं होगी. व्यवस्था तंत्र में भी बदलाव लाना होगा. अन्यथा आज अमेरिकी विदेश मंत्री रिपोर्ट जारी करता है, कल किसी और देश का विभाग जारी करेगा और इस तरह से भारत ट्रांसपेरेसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट में भी भ्रष्ट होता जाएगा. इन सबका सबसे भयावह परिणाम यह होगा कि आनेवाले दिनों में भारत में कोई देश निवेश नहीं करना चाहेगा. आखिरकार भारत की स्थिति दयनीय हो जाएगी.

चौथी दुनिया
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