बुधवार, 2 अप्रैल 2014

अनसुनी न्याय की गुहार और मानवाधिकार सिरे से लापता

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
बीरभूम के लाभपुर में आदिवासी कन्या से सामूहिक बलात्कार के मामले में पीड़िता की सुरक्षा बंदोबस्त में नाकामी के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने बंगाल की मां माटी मानुष सरकार की कठोर भर्त्सना की है और कहा है कि बंगाल में पुलिस और प्रशासन नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने में पूरी तरह नाकाम है। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को पीड़िता को महीने भर में पांच लाख रुपये के भुगतान का आदेश दिया है। स्त्री उत्पीड़न और मानवाधिकार हनन का यह बंगीय परिदृश्य है। यह कोई राजनीतिक बयान नहीं है जैसे कि वाममोर्चा चेयरमैन बंगाल में आपातकाल बताते रहते हैं। देश में न्यायिक प्रक्रिया बहाल करने की सर्वोच्च संस्था की यह टिप्पणी खतरे की घंटी है।
न्याय और कानून के राज के लिये नागरिकों को स्थानीय सत्ता-केंद्रों की मदद पर निर्भर रहना होगा, जैसा कि अभी पश्चिम बंगाल में देखने को मिलता है। अपहरण, बलात्कार, राहजनी, अपराध के कई चेहरे। राजनीतिक हिंसा, दमन, उत्पीड़न, कमजोर तबके पर और महिलाओं पर अत्याचार। हर किसी को हर वक्त राष्ट्र और राजनीति का उन्मुक्त आश्वासन कि न्याय अवश्य मिलेगा। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि न्याय की गुहार सिर्फ गुहार बनके रह जाती है अनसुनी और अपराधी छुट्टा घूमते रह जाते हैं। राजनीतिक संरक्षण से बाधित होती है न्यायिक प्रक्रिया। कानून के राज में सभी नागरिक समान हैं। लेकिन हालत यह है कि न्याय के रक्षक ही भक्षक बन जाते हैं। भारतीय लोक गणराज्य में न्याय नहीं, कानून का राज नही तो तो क्या क्या करेगा आम आदमी? आज फिर पुरुषतंत्र स्त्री उत्पीड़न के विरुद्ध फर्जी प्रतिवाद का जश्न मना रहा है। जबकि हमारी जेहन में गुवाहाटी की सड़क पर दिनदहाड़े नंगी कर दी गयी आदिवासी लड़की के लिये न्याय की आवाज बुलंद हो रही है। हमारी आँखों में इंफाल की उन नग्न माताओं का प्रदर्शन आज भी जिंदा है, जो सैन्य शक्ति के बलात्कार की चुनौती दे रही हैं तबसे लगातार। भारतीय लोक गणराज्य में फिलवक्त कोई स्त्री कहीं भी सुरक्षित नहीं है। हमने ऐसा मुक्त बाजार चुना है कि पुरुषतंत्र की नंगी तलवारें हर पल स्त्री के वजूद को कतरा-कतरा काट रहा है।
पश्चिम बंगाल सरकार के रवैये से नाराज राज्य के दुष्कर्म पीड़ितों के परिजनों ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से गुहार लगाकर भी देख लिया। ये परिजन अपने प्रियजनों के साथ हुये दुष्कर्म की जाँच सीबीआई से कराने का दबाव बनाते रहे हैं। लेकिन न्याय की गुहार अनसुनी ही रह गयी। 24 परगना जिले के कमदुनी गाँव और मुर्शिदाबाद जिले के खरजुना और रानीताला गाँवों के लोगों के दिल्ली पहुँचने का बंदोबस्त रेल राज्य मंत्री और कांग्रेस के नेता अधीर चौधरी ने किया था। जिनके विरुद्ध मुर्शिदाबाद में कई आपराधिक माले लंबित हैं। दुष्कर्म के अपराधों पर टालमटोल भरा रवैया अपनाने के लिये इन तीनों गाँवों के लोग मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार से खासा नाराज हैं।
बारासात के कामदुनी गाँव में सात जून, 2013 को परीक्षा से लौट रही एक 20 वर्षीय युवती के साथ दुष्कर्म किया गया और उसके बाद उसकी हत्या कर दी गयी। ममता बनर्जी 10 दिनों बाद पीड़िता के घर गयीं। कुछ महिलाओं ने जब उनके खिलाफ प्रदर्शन किया तो ममता आपा खो बैठीं। उन्होंने महिलाओं को चुप होने और माकपा की राजनीति न करने को कहा। बाद में उन्होंने दावा कि गाँव में उनकी हत्या की साजिश रची गयी थी। प्रदर्शन में माओवादी शामिल थे। राजनीतिक हस्तक्षेप से इस मामले को रफा दफा कर दिया गया। उल्टे ग्रामीणों के राष्ट्रपति से मिलने से तृणमूल कांग्रेस नाराज हो गयी। न्याय और कानून व्यवस्था बहालकरने के बजाय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहती रही कि कुछ लोग उनकी सरकार की बदनामी करने का प्रयास कर रहे हैं।
तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एसएफआई नेता सुदीप्तो गुप्ता की मौत पर संगठन की ओर से किये जा रहे विरोध प्रदर्शनों पर सवाल खड़ा करते हुये कहा कि यह एक दुर्घटना थी। वहीं छात्र नेता की हिरासत में पिटाई से मौत होने सम्बंधी आरोपों के बीच कोलकाता पुलिस ने मीडिया से संयम बरतने को कहा। बाद में हुआ यह तक कि दिल्ली मे एसएफआई की बदसलूकी के शिकार हो गयी ममता खुद और ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की होने वाली अहम मुलाकात रद्द हो गयी। योजना आयोग में वामपंथी कार्यकर्ताओं के विरोध पर ममता की नाराजगी की पृष्ठभूमि में बैठक रद्द हुयी। नतीजा यह निकला कि यह मामला महज राजनीतिक मुद्दा बनकर रह गया। न्याय की गुहार अनसुनी ही रह गयी।
सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून जिस कश्मीर में औरइरोम शर्मिला के अनंत आमरण अनशन के बावजूद जारी है, सलवा जुड़ुम की जद में देश का जो आदिलवासी भूगोल है। भूमि संघर्षों का बथानीटोला जिस मध्य बिहार में है और खैरांजलि जैसा परिदृश्य जहां हैं, उनकी चर्चा बहुत हो चुकी है। आगामी लोकसभा के मद्देनजर कोई कानून के राज की अनुपस्थिति नहीं करता, न्याय से वंचित बहुसंख्य जनगण जिन्हें राजकाज के लिये अपने मताधिकार का प्रयोग करना है, उनकी सुधि कोई नहीं ले रहा है। देश के अनेक हिस्सों में आज भी भारतीय कानून लागू नहीं है।
बंगाल में पार्टीबद्ध न्याय प्रक्रिया और पार्टीबद्ध कानून व्यवस्था की विरासत बेसक पैंतीस साल की वाम विरासत है। नंदीग्राम, सिंगुर, केशपुर, वानतला, मरीचझांपी, नेताई, मंगलकोट, जंगलमहल, आनंद मार्गियों को जिंदा जलाने की घटनाएं वाम मोर्चे के सत्ता में वापसी के रोड ब्रेकर बनी हुयी हैं। डायन बताकर स्त्री हत्या की जघन्य परंपरा बदस्तूर जारी है।
सवाल यह है कि परिवर्तन के बाद क्या इस परम्परा में कोई व्यवधान आया है या नहीं। जो नागरिक समाज और जो चमकीले चेहरे वामविरोधी भूमि आंदोलन के वक्त पार्टीबद्धता के दायरे को तोड़कर सड़कों पर थे, वे न सिर्फ नये सिरे से ज्यादा मुखरता के साथ पार्टीबद्ध हो गये हैं बल्कि मानवाधिकार और कानून के राज में उनके मोर्चे पर सन्नाटा छा गया है। वे तमाम आदरणीय व्यक्तित्व अपनी अपनी प्रतिबद्धता और सरोकार के नकदीकरण में निष्णात हैं।
सत्ता मलाई का जायका लेते लोगों को यह होश भी नहीं रहा कि परिवर्तन के बाद हालात सुधरने के बजाय बिगड़ ही रहे हैं। दिल्ली और मुंबई में स्त्री उत्पीड़न के तमाम मामलों में फैसले आ रहे हैं। उम्र कैद और फांसी तक की सजा हो रही है छह महीने के भीतर। इसके बावजूद पूरे पैंतीस साल के बाद भी मरीचझांपी प्रकरण की जाँच शुरु ही नहीं हुयी है। आनंदमार्गियों को जिंदा जलाने की घटना के बाद भी साढ़े तीन दशक बीत गये हैं और आज तक कोई सुनवाई नहीं हुयी है। राजनीतिक बंदियों की रिहाई का आन्दोलन थम सा गया है।
स्त्री उत्पीड़न तो मां माटी मानुष सरकार के राजकाज में अमावस्या की रात है जिसकी किसी सुबह का शायद ही किसी को इंतजार हो। वीभत्सतम बलात्कार कांड बंगाल का रोजनामचा है। राजनीतिक हिंसा का सिलसिला जारी है। बेदखली अभियान प्रोमोटर बिल्डर राज का अनिवार्य अंग है तो कानून व्यवस्था बहाल करने के लिये संबद्ध अफसरों के हाथ पांव अब भी बंधे हैं। वाम शासन के दौरान बिना लोकल कमिटी की इजाजत के थाने में एफआईआर तक दर्ज नहीं होता था। आज वह हालत बदल गयी है, कोई दावा नही कर सकता। कोयलांचल हो या महानगर या उपनगर या नया कोलकाता या सीमावर्ती इलाके सर्वत्र अपराधियों के हौसले बुलंद हैं जो र्जनीतिकदलों के रथी महारथी भी हैं।
घाटाल के सत्तादल प्रत्याशी बांग्ला फिल्म के स्टार नंबर वन जब बलात्कार का मजा लेने का फार्मूला बताते हैं तो पता चलता है कि कामदुनी से लेकर वीरभूम तक तमाम बलात्कारकांडों की जाँच का क्या हश्र होना है। मध्यमग्राम,बारासात से लेकर मध्य कोलकाता के पार्क सर्कस में उत्पीड़ित जीवित या मृत स्त्रियां सिंगुर में बलात्कार के बाद जिंदा जला दी गयी तापसी मलिक की नियति याद दिलाती है।

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