लखनऊ। लखनऊ में एक छोटा सा पर पढ़े लिखे लोगों का चुनाव हुआ। यह चुनाव विधान परिषद् की स्नातक सीट का था। गुरूवार की देर रात जो दूसरी वरीयता का अंतिम नतीजा आया उसमें भाजपा तीसरे नंबर पर थी इसमें निर्दलीय चुनाव लड़ रही एमएलसी एसपी सिंह की पत्नी कांति सिंह को अन्तिम जानकारी मिलने तक 24613 वोट मिले थे और दूसरे नंबर पर चल रही समाजवादी पार्टी की ज्योत्स्ना श्रीवास्तव को 15654। भाजपा के कारोबारी उम्मीदवार सुधीर एस हलवासिया 7916 वोट मिले थे। बसपा के अचल मेहरोत्रा और पीछे है। इसकी मतगणना कई चक्र की है पर जो बढ़त दिख रही है उसके अंतर को पाटना बहुत मुश्किल है।
बहरहाल अंतिम नतीजे वोटों के हेर फेर और तकनीकी गणना के बाद जो भी आए इसके संकेत तो मिल ही गये हैं। यह कोई बहुत बड़ा चुनाव नहीं है जिससे लोकसभा चुनाव का कोई आकलन किया जाए पर माहौल का जरुर समझा जा सकता है। खासकर यह शिक्षकों यानी पढ़े-लिखे तबके का चुनाव है जिसमें भाजपा के कारोबारी उम्मीदवार का तीसरे नंबर पर पहुँच जाना हैरान करता है। इन शिक्षकों में नौजवानों का बड़ा वर्ग भी है जिसमें इस बार निजी इंजीनियरिंग और डिग्री कालेज के शिक्षक भी वोट के अधिकारी हो गये हैं। इसमें तिकड़म भी बहुत होती है। पर तिकड़म के महारथी भी पिछड़ जायें तो आगे का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसलिए कि इस बार लखनऊ से भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राजपूत चेहरे राजनाथ सिंह लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। वे राजनैतिक समीकरण को अपने पक्ष में करने में माहिर है। वे एक बार जहाँ से चुनाव लड़ते हैं दोबारा उधर झाँकते नहीं। ऐसे में उन्होंने भाजपा के जीते हुये सांसद लालजी टंडन की सीट हथियाई है। राजनाथ के आने के बाद समाजवादी पार्टी ने अपना ईमानदार और भला उम्मीदवार अशोक वाजपेयी को हटाकर अभिषेक मिश्र को मैदान में उतारा है जिनकी प्रतिभा के बारे में सब कुछ सार्वजनिक है। आम लोग पूछ रहे है कि समाजवादी पार्टी ने राजनाथ सिंह की मदद की है या रीता बहुगुणा जोशी की यह साफ़ नही हो पा रहा है। पर इस तरह की मदद से बहुत ज्यादा फर्क पड़ता नजर नहीं आ रहा है। समाजवादी पार्टी चाहे बनारस में ‘चौरसिया’ को खड़ा करे या फिर लखनऊ में अभिषेक मिश्र को, इसे रस्म अदायगी या राजनैतिक जोड़-तोड़ के अलावा कुछ नहीं माना जा सकता।
लखनऊ का मिजाज इस छोटे से चुनाव में भी दिखा। समूचे देश में मोदी की लहर चल रही हो और खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनाव में हों और भाजपा का मास्टर कोटे वाला उम्मीदवार तीसरे नंबर पर पहुँच जाये तो पार्टी के लिये मंथन जरूरी है। यह टंडन का लोकसभा चुनाव क्षेत्र है। उनके पुत्र को विधानसभा चुनाव में भाजपा ने ही हराया था। अब लोकसभा में वे हिसाब बराबर कर दें हैरान नहीं होना चाहिए। राजनाथ विपक्ष से जोड़तोड़ तो कर लेंगे पर अपनी पार्टी में तो वे पहले से ही घिरे हुये हैं। एक तरफ से ब्राह्मण नेताओं को ठिकाने लगाया है। कुर्मी से लेकर भूमिहार नेताओं तक को निपटाया है। पार्टी के एक नेता ने कहा- गाजीपुर से गाजियाबाद तक ऐसा रायता राजनाथ सिंह ने फैलाया है कि मोदी को भी उत्तर प्रदेश इस बार समझ में आ जायेगा। देवरिया में सूर्य प्रताप शाही के समर्थकों का नारा है- कमल नहीं, हाथी चुनाव चिन्ह हमारा है। ऐसे में पार्टी के बाहर से ज्यादा खतरा उन्हें भीतर से है। ऐसे में कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी से उनका मुकाबला काँटे का नजर आ रहा है। खासकर इस छोटे से चुनाव के रुझान को देखते हुये।
नोट- वोटों की अन्तिम गणना में अभी समय लग सकता है
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