सोमवार, 7 अप्रैल 2014

कम्युनिस्ट हारें या जीतें उनके विचारों को हर हालत में जीतना ही होता है

कम्युनिज्म माने जनता की जीत का विचार

जगदीश्वर चतुर्वेदी
आगामी लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा वाम उम्मीदवारों का जीतना इसलिये जरूरी नहीं है कि मोदी को हराना है या भाजपा को रोकना है। देश में सही नीतियाँ बनें और देश में गरीबों के हित में कानून और नीतियाँ बनें, इस पवित्र लक्ष्य के लिये वामदलों का संसद में बड़ी संख्या में रहना बेहद जरूरी है।
मजदूरों-किसानों ने पहली बार लोकतंत्र में सत्ता पाने का सपना देखा और 1957 में जनता ने उनको चुना, सत्ता दी। नेहरु-इंदिरा आदि सभी धाकड़ नेता थे, लेकिन मजदूरों के सपनों को साकार करने से कोई नहीं रोक पाया।
सारी दुनिया में पहली कम्युनिस्ट सरकार केरल में वोट से बनी। केरल कैसा था उस समय और आज कैसा है देख लें लोग।
कहने का आशय यह है कि मजदूर इस बार सपने देख रहा है दिल्ली के बारे में तो जरूर कुछ न कुछ करके रहेगा।
ध्यान रहे लोकतंत्र के मैदान में कम्युनिस्ट दो तरह से जीतते हैं, चुनाव प्रचार के दौरान वे अपने विचारों को करोड़ों जनता में ले जाते हैं। उनके विचार सामाजिक परिवर्तन के विचार होते हैं। क्रांतिकारी विचार होते हैं। चुनाव उनको मौका देता है प्रचारित-प्रसारित करने का। यह पहला मैदान है जिसे कम्युनिस्ट जीतते रहे हैं और उनके विचारों का समाज में व्यापक दबाव और असर होता है। दूसरा मैदान चुनाव जीतना है जिसे वे गौण मानते रहे हैं लेकिन इधर के सालों में रुझान बदला है, उनका जीतने में मन लगा है।
कम्युनिस्टों के विचार बुर्जुआ नेताओं पर अंकुश का काम करते हैं। अम्बानी की गैस लूट का खुलासा करके भाकपा नेता गुरुदास दास गुप्ता ने जो काम किया है वह भाजपा सांसदों की विशाल फौज नहीं कर पायी। जबकि संसद में भाकपा बहुत छोटा दल है।
कम्युनिस्टों के लिये सामाजिक परिवर्तन और देश हित का विचार महान विचार है और वे इसकी रोशनी में जनता को शिक्षित करते हैं। उनके प्रचार का असर चुनाव के बाद तक रहता है। जबकि अन्य दलों के विचार पोलिंग के बाद मर जाते हैं।
कम्युनिस्ट हारें या जीतें उनके विचारों को हर हालत में जीतना ही होता है। कम्युनिज्म माने जनता की जीत का विचार।

About The Author

जगदीश्वर चतुर्वेदी। लेखक प्रगतिशील चिंतक, आलोचक व मीडिया क्रिटिक हैं। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष रहे चतुर्वेदी जी आजकल कोलकाता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। वे हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।

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