गुरुवार, 22 मई 2014

स्तरहीन संवाद के लिए याद रखा जाएगा यह चुनाव


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चुनाव खत्म हो चुके है. परिणाम आने से पहले ही एक ओर जीत-हार की घोषणाएं की जा रही थी. इस सब के बीच नेताओं की भाषा की स्तर नीचे चली गई. बजाए इसके कि पार्टियां ये बताएं कि अगर वे सत्ता में आते हैं तो  क्या करेंगे, वे हमें केवल दूसरे पक्ष की गलतियां बता रहे थें. ऐसी-ऐसी बातें की जा रही थी, जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना तक नहीं था. यह बहुत दुख की बात है. इसके अलावा, भाजपा के कोषाध्यक्ष का एक बयान आया था. उनका कहना था कि रिजर्व बैंक के गवर्नर को बदला नहीं जाएगा. मैं इस बयान से हैरान हूं. सबसे पहले, इस वक्त किसी ने भी ये नहीं कहा है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर को बदला जाना चाहिए. सवाल है कि ये कोषाध्यक्ष महोदय ऐस बयान देने वाले कौन होते हैं. उनका काम पार्टी के पैसे के खातों का हिसाब-किताब रखना है. उन्हें ये काम करना चाहिए. वे इस तरह के बयान देने वाले कौन होते हैं? क्या वे एक वित्त मंत्री हैं? यह बहुत दुख की बात है. सत्ता में आने से पहले, वे ऐसा बयान देकर राजनीतिक अपरिपक्वता का संकेत दे रहे थें और वास्तव में एक संस्था को कमजोर बनाने का काम कर रहे थें. रिजर्व बैंक के गवर्नर को भाजपा के एक छोटे से कार्यकर्ता से प्रमाण पत्र हासिल करने की जरूरत नहीं है. यह बयान निश्चित तौर पर राजनीतिक अपरिपक्वता को दर्शाता है.

दूसरी ओर, कांग्रेस पार्टी निश्चित रूप से मुसीबत में है. वे चुनाव अभियान के बारे में सुनिश्चित और सक्षम नहीं रहे. बहुत देर से, उन्होंने चुनाव अभियान में प्रियंका गांधी को उतारा. इसमें कोई शक नहीं है, प्रियंका गांधी ने अपने तरीके से चुनाव अभियान को मज़बूत बना दिया और इसके बदले भाजपा ने प्रतिक्रियावादी रास्ता अपनाया. बयानबाजी से हड़कंप मच गया. बीजेपी के लोगों ने प्रियंका पर जुबानी हमले शुरू कर दिए.
सीबीआई आज यह बोल रही है कि कोयला घोटाला असल में एक घोटाला नहीं है, बल्कि इसे काफी बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया. इसका क्या मतलब है? क्या सीबीआई निदेशक अपने नए स्वामी के लिए पहले से ही ऐसे बयान दे कर अपने लिए सुगम रास्ता बनाने की तैयारी कर रहे थें. मुझे लगता है कि उन्हें ऐसे बयन नहीं देने चाहिए थें. अगर किसी मामले में केस है, तो है और अगर सीबीआई को लगता है कि केस नहीं है तो उसे सुप्रीम कोर्ट में अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश करनी चाहिए. लेकिन इस तरह के बयान का क्या अर्थ है? मुझे लगता है हम एक बेहद ख़राब दौर से गुजर रहे थें. चुनाव परिणाम के आने तक कई दल, कई लोग अपनी राग अलापते रहें. लेकिन, निश्चित रूप से यह चुनाव एक स्वस्थ व स्तरीय संवाद के गायब होने के लिए याद रखा जाएगा जो कि वास्तव में एक दुखद बात है. हमें आशा करनी चाहिए कि अब बेहतर भावना प्रबल होगी और लोग फिर से स्वस्थ व स्तरीय संवाद कायम करने की कोशिश करेंगे.
इस बीच, एक और हास्यास्पद टिप्पणी पाकिस्तान के गृह मंत्री की ओर से आई. उन्होंने कहा था कि मोदी को प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहिए. यह एक हास्यास्पद टिप्पणी है. यह स्वीकार्य नहीं है. पाकिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री यह तय करने वाले कौन होते हैं कि हमारा प्रधानमंत्री कौन होगा? यह तय करना भारत के लोगों का काम है. भारत के लोग यह तय कर चुके हैं. क्या कभी भारत के लोगों ने यह तय किया है कि पाकिस्तान में नवाज शरीफ की जीत होगी या इमरान खान जीतेंगे या कोई और जीतेगा. पाकिस्तान में चुनाव होते हैं, लेकिन हम ऐसी कोई टिप्पणी कभी नहीं करते. हमें तो उसी के साथ चलना है, जो जीतेगा. पाकिस्तान को भी ऐसा ही करना होगा. वे यह नहीं कर सकते कि अपनी पसंद हमें बताए और हम पर यह थोपे कि कौन क्या बनेगा. अगर वे सोच रहे थें कि वे भारत के किसी वर्ग विशेष को ऐसे बयान से कोई संकेत दे रहे हैं, तो फिर वे बहुत ही गलत थें. भारतीय मुसलमान पाकिस्तान से निर्देशित नहीं होते और न किए जा सकते हैं. भारतीय मुसलमान भी पाकिस्तान को उसी दृष्टि से देखते है, जैसे भारत के बाक़ी लोग. पाकिस्तान एक विफल राष्ट्र है. वे बजाय हमें उपदेश देने के खुद अपनी गिरेबां में झांके कि वे कहां खड़े हैं.

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