गुरुवार, 12 जून 2014

अंततः उसी रास्ते से गया दलित दूल्हे का रथ

 भंवर मेघवंशी

अन्ततः भारी पुलिस बंदोबस्त के बीच अनुसूचित जाति के 21 वर्षीय युवक पवन नाथ कालबेलिया की बिन्दौली उसी गांव के उसी रास्ते से रोके गए रथ पर ही देर रात निकाली गई। दलितों ने बहुत ही निडरता का परिचय दिया, वे रात 9 बजे से 12 बजे तक, करीब 3 घंटे तक लट्ठ लिये खड़े देव सैनिकों के सामने दलित दूल्हे के रथ को आगे ले जाने पर अड़े रहे, इतना ही नहीं बल्कि गांव में जगह-जगह पर गाडि़यां खड़ी करके भी रास्ता अवरूद्ध करने की कुचेष्टा की गई तथा कुछ स्थानों पर अलाव तापने के बहाने आग जलाकर भी समूह में गुर्जर व रैबारी समुदाय के युवकों ने दलितों का रास्ता बंद किया, मगर पुलिस प्रशासन और जन प्रतिनिधियों व दलित सामाजिक कार्यकर्ताओं की सक्रियता ने दलितों के मानमर्दन के सपने को चकनाचूर कर दिया।

दलित दूल्हे के भाई तथा कालबेलिया अधिकार मंच के प्रदेश संयोजक रतननाथ कालबेलिया के अनुसार रात को उनके भाई पवन की बिन्दौली जैसे ही अम्बू गुर्जर के घर के बाहर पहुंची तो रतन गुर्जर, हरदेव गुर्जर, रतन रेबारी, नारायण रैबारी, काना गुर्जर, नारायण गुर्जर, बक्षु गुर्जर तथा गेहरू गुर्जर व उसके साथी रथ के सामने लाठियां लेकर खड़े हो गए तथा आगे जाने देने से स्पष्ट इंकार कर दिया। बिन्दौली में चल रहे दलित बरातियों के साथ भी जातिगत गाली गलौज की गई तथा कहा गया कि – ‘‘कालबेलड़ो तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई रथ पर बैठकर बिन्दौली निकालने की, यहीं से वापस चले जाओं, नहीं तो जिन्दा जला दिये जाओगे।’’

यह क्षेत्र दलितों के लिए अत्याचार परक क्षेत्र है,इसी क्षेत्र में हाल के वर्षों में दलित कलाकार नाथुराम ढोली को सरेआम, दिन दहाड़े चौराहें पर कटार से निर्मम तरीके से काट डाला गया था और हाल ही में दंतेड़ी गांव की एक दलित विवाहिता की इज्जत लूटने की शर्मनाक हरकत की गई थी, विफल रहने पर बलात्कार की कोशिश के आरोपियों ने पीडि़ता का पांव तोड़ डाला था। मारपीट, गाली गलौज और भेदभाव तो इस क्षेत्र की नियति है,गुर्जर बाहुल्य इस क्षेत्र के दलित सचमुच नारकीय जिन्दगी जीने को मजबूर है। एक तो वे संख्या में बहुत ही कम है,दूसरे राजनेता, प्रशासनिक अधिकारी और पुलिस तथा स्थानीय जनप्रतिनिधियों तक भी उनकी पहुंच बेहद कम है, फलस्वरूप् अत्याचार और उत्पीड़न का दर्दनाक दौर अब भी जारी है।

अत्याचार और अन्याय,उत्पीड़न की इस प्रयोगशाला में कुछ वर्ष पूर्व रतननाथ की शादी हुई थी, उसने घोड़ी पर बैठकर तोरण के लिए जाना तय किया,इस गांव को यह कैसे बदौश्त होता सो लाठियां खिंच गई, मगर हिम्मती रतन नाथ ने आततायियों को तगड़ा जवाब दिया, घोड़े पर नहीं बैठने दिया तो वह हाथी ले आया और दूसरे दिन इसी गांव में हाथी पर बैठकर बरात लेकर गया, शादी के मौके पर राजस्थान के प्रसिद्ध कलाकार रामनिवास राव का गायन तथा लोक सनसनी राणी रंगीली का नृत्य आयोजित किया। गांव के शूद्र (पिछड़े) तो जल भुन गए कि एक अछूत कालबेलिया की यह हिम्मत ! मगर कर कुछ भी नहीं पाए, तब से ही मन में रंजिश पाले बैठे है, बाद में यह युवक दलित व मानवाधिकार संगठनों के सम्पर्क में आ गया और उसने दलित अधिकार के संघर्ष की राह पकड़ ली, कई सारे मुद्दे उठाये, आन्दोलन किए, इस तरह क्षेत्र के मूक दलित मुखर हुए . . इससे गांव के ये शूद्र सुधरे नहीं बल्कि और अधिक कूढ़ मगज होकर दुश्मनी पालने लगे।

इस बीच बरावलों का खेड़ा गांव के दलित कालबेलिया परिवारों ने अपनी मेहनत के बूते अच्छे घर बनाए, बड़े-बड़े विशाल घर, गाड़ी घोड़े लाये और समृद्धि, खुशहाली, जागृति का इतिहास रचा, जिन लोगों को कोई छूना भी पसन्द नहीं करता था, उन तक जाना शुरू हुआ, जातिगत भेदभाव की दीवारें टूटने लगी, रतन नाथ का निवास क्षेत्र के दलितों के लिये उम्मीद का आशियाना बनने लगा तो पिछड़े वर्ग के ये गुर्जर और भी नाराज हुये। धमकियां देने लगे, घात लगाने लगे और सबक सिखाने की ताक में रहने लगे। अन्ततः उनकी बरसों से छिपी हुई घृणित मानसिकता कल रात (16 नवम्बर 2012) को उजागर हो ही गई, वे रतन नाथ के भाई पवन नाथ की बिन्दौली के सामने खड़े हो गये, लाठियां लेकर, रास्ते रोककर, आग जलाकर, गालियां देकर, धमकियां देते हुए, उन्होंने सोचा कि वे संख्या में बहुत है, धनबल, बाहुबल सब उनके पास है।
रात में अद्भूत नजारा था,एक तरफ देव सेना के सवर्ण हिन्दू खड़े थे,दूसरी ओर रक्ष संस्कृति की दलित सेना खड़ी थी अगर प्रशासन व पुलिस इसकी गंभीरता को नहीं समझ पाते तो टकराव निश्चित ही था,दलितों ने शान से जीने का प्रण कर लिया था,अपमानित होकर जीने से तो मर जाना ही बेहतर का संकल्प लिये दलित दूल्हे का रथ कंपकंपाती ठण्ड़ी रात में भी रास्ते पर अड़ा रहा और अन्ततः उसी रास्ते से गया,तमाम अवरोधों और विरोधों को पार करके,कायर देव सैनिक पुलिस के समक्ष टिक नहीं पाये, शुरूआती विरोध के बाद अपनी मोटर बाइकों पर भाग खड़े हुए, डरपोक कहीं के, अब तक गांव में नहीं लौटे है, दलित शेरों ने पूरे गांव में शान से बिन्दौली निकाली और अब दलितों का रास्ता रोकने वाले उत्पीड़नकारियों के खिलाफ दलित अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज करवाने निकटवर्ती पुलिस स्टेशन में जमा है। बहरहाल उन्होंने पुलिस को लिखित रिपोर्ट दे दी है, दलितों के हौसलें बुलन्द है, मोर्चे पर लड़ रहे इन कॅामरेड्स को जय भीम, जय जय भीम!

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1 टिप्पणी:

  1. I am gurjar and feeling very bad on this shameful act, Gurjars have no rivalry with dalits but our rivals are capitalists baniya, brahman. Unfortunately gurjar because of ignorance and in the influence of Brahminsm are following the path of feudal castes otherwise gurjars naturally are good people and they respect every caste/religion.

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