सोमवार, 1 सितंबर 2014

आईएसआईएस और भारतीय मुसलमान

जावेद अनीस
दुनिया के सब से प्राचीन सभ्यताओं में से एक इराक आज अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है, पुराने समय मेंमेसोपोटामिया सभ्यता के नाम से विख्यात यह मुल्क शिक्षा, व्यापार, तकनीक, सामाजिक विकास, संस्कृति को लेकर काफी समृद्ध रहा है लेकिन पिछली सदी के आखिरी दशक में इस प्राचीन सभ्यता को आधुनिक महाशक्तियों की नज़र लग गयी, जिसकी वजह बना “इराक धरती में दफन तेल”।

अमरीका और उसके साथी देशों द्वारा इराक के तत्कालीन सद्दाम सरकार के पास खतरनाक जैविक हथियारों के होने का बहाना बना कर हमला किया गया था, इराक में खतरनाक जैविक हथियार तो मिले नहीं स्थिर इराक आईएस जैसे बर्बर और घोर अतिवादी संगठन के चंगुल में फंस कर बर्बर मध्ययुग के दौर में पहुँच गया दिखाई पड़ता है।

गौरतलब है कि अपने आप को दुनिया भर में लोकतंत्र के सबसे बड़े रखवाले के तौर पर पेश करने वाले पश्चिमी मुल्कों ने अपने हितों के खातिर सिलसिलेवार तरीके से एक के बाद एक इराक में सद्दाम हुसैन, इजिप्ट में हुस्नी मुबारक और लीबिया में कर्नल गद्दाफी आदि को उनकी सत्ता से बेदखल किया है, इन हुक्मरानों का आचरण परम्परागत तौर पर सेक्यूलर रहा है। आज यह सभी मुल्क भयानक खून- खराबे और अस्थिरता के दौर से गुजर रहे हैं और अब वहां धार्मिक चरमपंथियों का बोल बाला है, “इस्लामिक स्टेट” भी इसी की देन है।

इस्लामिक स्टेट इराक़ और सीरिया के एक बड़े हिस्से पर अपना कब्ज़ा जमा चूका है, उनका मकसद चौदहवी सदी के सामाजिक-राजनीतिक प्रारुप को फिर से लागू करना हैं, जहाँ असहमतियों की कोई जगह नहीं है, उनकी सोच है कि या तो आप उनकी तरह बन जाओ नहीं तो आप का सफाया कर दिया जायेगा।

धर्म के नाम पर अपनी गतिविधियाँ चलने वाले इस्लामिक स्टेट ने इन्टरनेट पर पांच मिनट का दिल दहला देने वाला वीडियो जारी किया, इस वीडियो में एक नकाबपोश आतंकी अमेरिकी पत्रकार जेम्स राइट फोलेय की गर्दन चाकू से काटकर उनकी बेरहमी से हत्या कर रहा है।

इससे पहले भी पूरी दुनिया इराक में आईएस आतंकियों द्वारा जातीय अल्पसंख्यक यजीदी समुदाय का बड़े पैमाने पर किये जा रहे जनसंहार को देख और सुन रही थी, बर्बरता की दास्तानें रोंगटे खड़ी कर देने वाली हैं, यजीदी समुदाय की महिलाओं और बच्चों को जिंदा दफन किया जा रहा है, महिलाओं को गुलाम बनाया गया है।

ग़ैर-सुन्नी मुसलमानों के ख़िलाफ़ भी यही बर्ताव किया जा रहा है, एकांगी इस्लाम में विश्वास करने वाले इस्लामिक स्टेट के चरमपंथी कब्रों और मक़बरों को इस्लाम के ख़िलाफ़ मानते हैं। इसलिए वे पागलपन की हद को पार करते हुए ग़ैर-सुन्नी मुसलामनों के एतिहासिक धार्मिक स्थलों को तबाह कर रहे हैं। उनकी सोच कितनी छोटी है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने एक आदेश जारी किया है कि दुकानों पर लगे हुए सभी बुतों के चेहरे ढंके हुए होने चाहिए। यही नहीं उन्होंने सीरिया के एक शहर में रसायन शास्त्र व दर्शन शास्त्र की पढ़ाई पर रोक लगाते हुए इन्हें ‘ग़ैर- इस्लामिक’ घोषित कर दिया है।

इस बीच आईएसआईएस के गठन में सीआईए और मोसाद जैसी खुफिया एजेंसियों की सक्रिय भूमिका की ख़बरें भी आयी हैं। अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के पूर्व अधिकारी एडवर्ड इस्नोडन ने खुलासा किया है कि इस्लामिक स्टेट का मुखिया अबू बकर अलबगदादी अमेरिका और इसराइल का एजेंट है और उसे इसराइल में प्रशिक्षण प्रदान किया गया। एडवर्ड के अनुसार सीआईए ने ब्रिटेन और इजरायल के खुफिया एजेंसियों के साथ मिल कर इस्लामिक स्टेट जैसा जिहादी संगठन बनाया है जो दुनिया भर के चरमपंथियों को आकर्षित कर सके,इस नीति को ‘द हारनीटज़ नीसट’ का नाम दिया गया, अमरीका के पुराने इतिहास को देखते हुए एडवर्ड इस्नोडन के इस खुलासे को झुठलाया भी नहीं जा सकता है, आखिरकार यह अमरीका ही तो था जिसने अफ़ग़ानिस्तान में मुजाहिदीनों की मदद की थी, जिससे आगे चल कर अल-क़ायदा का जन्म हुआ था। अमरीका के सहयोगी खाड़ी देशों पर आईएस की मदद करने के आरोप हैं, साथ ही इस संगठन के पास इतने आधुनिक हथियार कहां से आये इसको लेकर भी सवाल है ?

इस्लामिक स्टेट का मंसूबा है कि 15वीं सदी में दुनिया के जितने हिस्से पर मुसलमानों का राज था, वह दोबारा वहाबी हुकूमत कायम हो, शायद इसी वजह से इस्लामिक स्टेट ने खिलाफत का ऐलान करते हुए अपने नेता अबु अल बगदादी को पूरी दुनिया के मुसलमानों का खलीफा घोषित कर दिया है और स्वयम्भू खलीफा ने दुनिया भर के मुसलमानों से एकजुट हो कर कई देशों के खिलाफ जिहाद छेड़ने की अपील जारी की है, जिसमें भारत भी शामिल है। शायद इसका असर भी हो रहा है ।


“उठो ! अहमद शाह अब्दाली, मुहम्मद बिन कासिम, शहीद सईद अहमद और पैगम्बर और उनके साथियों की तरह… एक हाथ में कुरआन और दूसरे हाथ में तलवार लो और जिहाद के क्षेत्र की ओर निकलो।” ..इराक़ और सीरिया की रेगिस्तान की मिट्टी से उठनेवाली पुकार सुनो, ढाँढस बाँधो और जिहाद की मातृभूमि अफगानिस्तान की ओर निकलो।” यह पुकार अंसार-उल-तौहीद द्वारा अपने ट्विटर अकाउंट जारी किये गये वीडियो में है, अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के अनुसार विडियो में दिखाई दे रहा नकाबपोश है 39 वर्ष का सुलतान अब्दुल कादिर आरमार है जो कर्नाटक के भटकल गाँव के छोटे व्यापारी का है बेटा। अगर यह खबर सही है तो यह पहली बार है जब एक भारतीय द्वारा सार्वजनिक रूप से देश के मुसलमानों को वैश्विक जिहाद के लिए आह्वान किया गया है।

भारत के सम्बन्ध में ही बात करें तो यहाँ इस तरह की कुछ और चौकाने वाली घटनायें हुई हैं, पिछले दिनों नदवा जैसी विश्वविख्यत इस्लामी शिक्षा केंद्र के एक अध्यापक सलमान नदवी द्वारा आई एस आई एस के सरग़ना अबूबकर बग़दादी को एक ख़त लिख कर उसकी हुकूमत को बधाई देने की बात सामने आई है, उन्होंने लिखा है कि आप जो भूमिका निभा रहे हैं उसको सभी ने स्वीकार किया है और आप को अमीर उल मोमेनीन (खलीफा) मान लिया है, सलमान नदवी विश्वविख्यत इस्लामी विद्वान् स्वर्गीय मौलाना अबुल हसन नदवी उर्फ़ अली मियां के नाती हैं।

इसी तरह से महाराष्ट्र के चार युवा जो की पढ़े लिखे प्रोफेशनल हैं, जिहादियीं का साथ देने इराक चले गये हैं, तमिलनाडु में मुस्लिम युवाओं द्वारा जो इस्लामिक स्टेट के चिन्हों वाली टीशर्ट बांटे जाने की खबर भी सामने आई है, इस्लामिक स्टेट द्वारा बंधक बनायी गयी नर्सों के सकुशल वापस लौटने के बाद सोशल मीडिया पर इस्लामिक स्टेट के तारीफ में पोस्ट और फोटो शेयर किये जा रहे थे जो नर्सों के इन बयानों पर आधारित थे कि जिहादियों द्वारा उनके साथ बहन जैसा सलूक किया गया है। कुछ मुस्लिम समूहों ने इस्लामिक स्टेट के गतिविधियों का सावर्जनिक विरोध भी किया है, लेकिन जिहादियों का साथ देने के लिए इराक जाना और अबूबकर बग़दादी को ख़त लिखना चिंता के सबब है ।

भारत का इस्लाम उदार है, और इसमें भारत के स्थानीयता (लोकेलिटी ) समाहित है, भारत में सूफी संतों की वजह से इस्लाम की एक रहस्यमयी और सहनशील धारा सामने आई जो एकांकी नहीं है। सूफियों संतों ने दोनों धर्मों की कट्टरता को नकारा और सभी मतों, पंथों से परम्पराओं और विचारों को ग्रहण किया। उन्होंने हिन्दू और मुसलमानों को सहनशीलता, एक दूसरे के धर्म का आदर करना और साथ रहना सिखाया, और यही असली भारतीयता है ।

दोनों तरफ से लाख कोशिशों के बावजूद यहाँ की हिन्दू –मुस्लिम जनता एक साथ अपने सूफी– संतों की दरगाहों पर बड़े अकीदत से जाती है और उनके सम्मोहित कर देने वाले गीतों को पसंद करती है, लेकिन पिछले कुछ दशकों से भारत में इस्लाम के “अरबीकरण” और सनातन धर्म का “हिन्दुत्वकरण” करने का प्रयास किया जा रहा है।

नयी सरकार बनने के बाद से संघ परिवार लगातार यह सुरसुरी छोड़ रहा है कि भारत हिन्दू राष्ट्र है, यहाँ के रहने वाले सभी लोग हिन्दू है और अकेली हिन्दुत्व ही हमारी पहचान है। दरअसल दोनों ही धारायें अतिवादी हैं और इनके विचार देश के भविष्य के लिए मुफीद नहीं है यह विचार न केवल हमारे संविधान का उलंघन है बल्कि हमारे देश की बहुलतावादी स्वरूप और मिली जुली भारतीय संस्कृति से भी मेल नहीं खाते हैं।

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जावेद अनीस, 
लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं।

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