नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की अब तक की सबसे बुरी हार के तीन महीने बाद पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह ने चुप्पी तोड़ते हुए है कि अहम मुद्दों पर राहुल की चुप्पी ही ‘धारणाओं की लड़ाई’ में कांग्रेस की हार की वजह बनी। दिग्विजय ने कहा कि पार्टी को पुर्नजीवित करने के लिए जरूरी है, उपाध्यक्ष राहुल ज्यादा दिखें और उन्हें ज्यादा सुना जाए।
इंडियन एक्सप्रेस में लिज़ मैथ्यू (Liz Mathew) और मनोज सी जी ( Manoj CG) की बाईलाइन से प्रकाशित खबर के मुताबिक दिग्विजय ने कहा, ‘धारणाओं की लड़ाई में हमारी हार हुई। हम अपनी उपलब्धियों का बाजार नहीं बना सके लेकिन उन्होंने (भाजपा) हमारी नाकामियों का बाजार बना दिया। हालांकि हर मोर्चे पर हमारा शासन 6 साल के राजग शासन से बेहतर था लेकिन फिर भी हम जनता का समर्थन हासिल नहीं कर सके।
क्या राहुल का ज्यादा बोलना कांग्रेस की मदद कर सकता था? इस सवाल पर दिग्विजय ने कहा, ‘हाँ, क्योंकि देश के लोग राहुल का पक्ष जानना चाहते हैं। वह जानना चाहते हैं कि ब्राण्ड राहुल है क्या?’ दिग्विजय ने कहा, ‘दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि एक 63 साल के नेता ने युवाओं को आकर्षित कर लिया लेकिन एक 44 साल का नेता ऐसा नहीं कर सका।’
राहुल के ज्यादा दिखने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, ‘आज का दौर मीडिया और ब्रेकिंग न्यूज का है। मीडिया के इस दौर में जरूरी है कि राहुल ज्यादा दिखें और उन्हें ज्यादा सुना जाए… मोदी चालाकी से, मीडिया में अपनी छवि बनाकर खुद को राष्ट्रीय स्तर पर ले आए… इसलिए जरूरी है कि राहुल ज्यादा दिखें और उन्हें ज्यादा सुना जाए।’
दिग्विजय ने इन अटकलों “क्या राहुल ने लोकसभा चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करने से इनकार कर दिया था क्योंकि वह चुनाव अभियान के दौरान कुछ वरिष्ठ नेताओं के समर्थन न मिलने से नाखुश थे?” को खारिज करते हुए कहा, ‘यह सही नहीं है… निचले स्तर से लेकर वरिष्ठ स्तर तक एक भी ऐसा कांग्रेसी नहीं है, जो राहुल का समर्थन न करता हो।’
वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने ‘हर किसी का काम करने का अपना तरीका होता है’, पर जोर देते हुए कि राहुल की तुलना अन्य नेताओं से नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में पार्टी के नेतृत्व का फैसला लेकर राहुल उस मंच से ऐसे मुद्दों को उठा सकते थे जिन्हें वह देश के लिए जरूरी समझते थे। उन्हें फोरम तय करना था। जनता को जानना चाहिए कि आखिर राहुल का पक्ष क्या है?
क्या बिहार में राजद-जदयू-कांग्रेस वाले फॉर्म्युले पर चलते हुए पार्टी को सभी गैर-भाजपा दलों को एक साथ लाने के लिए कोशिश करनी चाहिए? इस सवाल को दिग्विजय ने ‘वैचारिक एकीकरण’ बताया।
दिग्विजय ने कहा, ‘सैद्धांतिक आधार पर हां लेकिन शख्सियत के आधार पर नहीं… दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि शख्सियतों ने सिद्धांत को पीछे कर दिया है, जिसके लिए हमें सजग रहना होगा। आज हम दक्षिणपंथी विचारधारा के साथ ही एक सैद्धांतिक लड़ाई लड़ रहे हैं। मोदी दक्षिणपंथी विचारधारा के प्रतीक हैं। हमारी चुनौती संघ की विचारधाराहै जो हर मुद्दे को सांप्रदायिक नजर से बांटना चाहता है।’
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