जगदीश्वर चतुर्वेदी
सोशल मीडिया से लेकर मीडिया तक बर्बरता का महाख्यान चल रहा है। जिस तरह आईएसआईएस की पोस्ट अबाधित रूप में पेश की जा रही हैं, बर्बर संगठनों के पक्ष में निरंतर लिखा जा रहा है। उससे यह संकेत जा रहा है कि सोशल मीडिया के लिए बर्बरता सबसे बड़ी खबर है और राजनीतिक आंदोलन, प्रतिवाद और लोकतांत्रिक संघर्षों का कोई मूल्य नहीं है।
अधिकांश मीडिया, बर्बरता की प्रस्तुतियों में इस कदर व्यस्त है कि उनको जनांदोलनों की किसी खबर या समस्या के कवरेज की कोई चिंता ही नहीं है। यह भी कह सकते हैं कि मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक बर्बरता का नाटक चल रहा है और हम सब उसके मूकदर्शक बन गए हैं।
बर्बरता का जितने बड़े रुप में प्रसारण हो रहा है जनांदोलनों का उतने बड़े रूप में प्रसारण नहीं हो रहा। यानी मीडिया की नजर में बर्बरता प्रासंगिक है, मोहन भागवत के नॉनसेंस बयान, बत्रा पंडित का पोंगापंथ और भगवापंथ की इरेशनल खबरें प्रासंगिक हैं, लेकिन अन्य लोकतांत्रिक खबरें और लोकतांत्रिक-धर्मनिरपेक्ष विचार प्रासंगिक नहीं हैं।
मीडिया और सोशल मीडिया का यह बर्बरता प्रेम , बर्बरता का मित्र बना रहा है और लोकतंत्र से दूरी बढ़ा रहा है। बर्बरता प्रेम का ही परिणाम है कि अनंतमूर्ति से लेकर विपनचन्द्र तक की मौत पर बर्बरता प्रेमी खुशी का इजहार कर रहे हैं। इस तरह का बर्बरता प्रेम गुलाम युग में देखा गया था।
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