मंगलवार, 26 अगस्त 2014

एक बच्‍चा एक लैम्‍प:

स्‍कूल के दिनों को रोशन करने की एक परियोजना

विशेष लेख    *मनीष देसाई**भावना गोखले

ग्रामीण परिदृश्‍य में बदलाव

पिछले दो दशकों के दौरान भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कई प्रकार के बदलाव आए हैं। वहां बेहतर सड़क संपर्क के साथ ही स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं में महत्‍वपूर्ण सुधार, साक्षरता में सुधार और हर किसी के लिए मोबाइल फोन की सुविधा देखने को मिलती हैं। किंतु बिजली की आपूर्ति में उतना सुधार देखने को नहीं मिलता है। देश के अधिकांश राज्‍यों में 12 से लेकर 14 घंटे तक बिजली नहीं मिलना एक सामान्‍य बात है। जब इतने लम्‍बे समय तक बिजली न मिले तो इससे स्‍कूल जाने वाले बच्‍चे सबसे अधिक प्रभावित होने वालों में शामिल हैं।
बिजली नहीं रहने के कारण छात्र या तो पढ़ाई नहीं कर पाते या फिर वे मिट्टी के तेल वाले लैम्‍प की रोशनी में पढ़ाई करते हैं। यह स्थिति अच्‍छी नहीं है। बिजली की आपूर्ति में कमी होने के कारण देश के 12 करोड़ से अधिक बच्‍चे अपनी पढ़ाई के लिए मिट्टी के तेल वाले लैम्‍प पर निर्भर करते हैं। मिट्टी के तेल वाले लैम्‍प से उतनी रोशनी नहीं होती, जिससे बच्‍चे आराम से पढ़ाई कर सकें। उससे कार्बन मोनोक्‍साइड गैस भी उत्‍सर्जित होती है, जो बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए नुकसानदायक है। मिट्टी का तेल लीक होने की स्थिति में आग लगने का भी खतरा रहता है। अंतत: इसका परिणाम यह होता है कि छात्र अपनी पढ़ाई के साथ तालमेल रखने में असफल रहते हैं और जब वे उतीर्ण होते हैं, तो उनमें रोजगार के अवसरों तक पहुंचने के लिए आत्‍मविश्‍वास में कमी होती है और उनका कौशल स्‍तर भी कम होता है। 
इसलिए बच्‍चों की पढ़ाई के दौरान रोशनी की उपलब्‍धता काफी महत्‍वपूर्ण है। इसलिए हम इस समस्‍या का किस प्रकार समाधान करें ?

लेड अध्‍ययन लैम्‍प – सर्वोत्‍तम समाधान

 सभी संभव समाधानों के बीच सौर ऊर्जा पर आधारित सौर लैम्‍प सबसे सस्‍ता और सबसे त्‍वरित समाधान के रूप में दिखाई पड़ता है।
Courtesy Photo
उभरती हुई लेड रोशनी की प्रौद्योगिकी, जो एक सेमीकंडक्‍टर पर आधारित है, वह रोशनी की समस्‍या से जुड़ा एक बेहतरीन और सरल समाधान है। श्‍वेत लेड क्रांति के बल पर अब पढ़ाई के उद्देश्‍य के लिए एक उपयुक्‍त और सरल समाधान प्रस्‍तुत हो रहा है, जो एक चौथाई वाट से भी कम बिजली लेकर एक लैम्‍प की तुलना में 10 से लेकर 50 गुना अधिक रोशनी देता है।

हैदराबाद स्थित स्‍वैच्छिक संगठन – थ्राइव एनर्जी टेक्‍नोलॉजिज ने एक सौर अध्‍ययन लैम्‍प वि‍कसित किया है, जो अध्‍ययन के उद्देश्‍य की पूर्ति के लिए पर्याप्‍त रोशनी प्रदान करता है। एक बार पूरा चार्ज करने पर इससे प्रतिदिन सात से आठ घंटे तक रोशनी मिलती है।

सौर लेड की विशेषताएं

*एक लैम्‍प द्वारा दो से तीन लक्‍स रोशनी की तुलना में यह लगभग 150 लक्‍स रोशनी प्रदान करता है।
*इसमें निकेल धातु वाली हाइड्राइड की बैट्री का इस्‍तेमाल होता है, जिसे 0.5 वाट वाले सोलर पैनल के जरिए अथवा ए.सी मोबाइल चार्जर या फिर सौर ऊर्जा आधारित चार्जिंग प्रणाली के जरिए चार्ज किया जा सकता है।
*इसमें विश्‍व के सर्वोत्‍तम लेड और एक उन्‍नत आईसी का इस्‍तेमाल होता है, जो कई वर्षों के इस्‍तेमाल के बाद भी निरंतर और बढि़या रोशनी देता है।
इस परियोजना से जुड़े आई.आई.टी बम्‍बई के रवि तेजवानी का कहना है – ‘सामान्‍यत: जो लैम्‍प तैयार किए जाते हैं, वे ग्रामीण पर्यावरण के लिए उतना उपयुक्‍त साबित नहीं होते। प्रौद्योगिकी और प्रक्रियाओं में नवीनता के माध्‍यम से ये लैम्‍प व्‍यापारिक तौर पर बाजार में उपलब्‍ध समकक्ष गुणवत्‍ता वाले लैम्‍पों की तुलना में 40 प्रतिशत तक किफायती हैं।’

खरगौन का प्रयोग : एक बच्‍चा एक लैम्‍प  

‘एक बच्‍चा एक लैम्‍प’ नामक परियोजना दक्षिण-पश्चिम मध्‍य प्रदेश के खरगौन जिले में शुरू की गई। इसका उद्देश्‍य जिले के प्रत्‍येक 100 स्‍कूलों के सौ-सौ बच्‍चों - कुल मिलाकर 10,000 बच्‍चों, को सोलर लैम्‍प प्रदान करना है। झिरन्‍या और भगवानपुरा तहसील के 100 स्‍कूलों को भी इस योजना में शामिल किए जाने का प्रस्‍ताव है, जो सबसे अधिक पिछड़े क्षेत्रों में शामिल हैं। मुख्‍य योजना जिले में 1,00,000 लैम्‍पों का वितरण करना है।

  मध्‍य प्रदेश के खरगौन जिले को एक शीर्ष जिले के रूप में चुना गया है, क्‍योंकि 84 प्रतिशत से अधिक जनसंख्‍या गांव में निवास करती है और इसमें से 40 प्रतिशत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति श्रेणी की है। रोशनी के लिए 40 प्रतिशत से अधिक लोग मिट्टी के तेल का इस्‍तेमाल करते हैं। मध्‍य प्रदेश में प्रति व्‍यक्ति बिजली का उपभोग मात्र लगभग 330 यूनिट प्रतिवर्ष है, जबकि भारत के लिए यह 750 यूनिट है और विश्‍वभर के लिए यह औसत 2000 यूनिट है। खरगौन जिले में स्थित एजुकेशन पार्क की ओर से इस परियोजना को कार्यान्वित किया जा रहा है, जिसमें थ्राइव एनर्जी टेक्‍नोलॉजिज, हैदराबाद सहयोग कर रहा है। अब तक 4500 से भी अधिक सौर लेड लैम्‍प वितरित किए गए हैं।  इसका उद्देश्‍य सिर्फ वितरण करना है।

परियोजना की कार्य प्रणाली

 छात्रों के लिए सौर लैम्‍प की रियायती लागत केवल 200 रूपये है, हालांकि बाजार में इसकी कीमत 580 रूपये है। श्री तेजवानी का कहना है कि इन सौर लैम्‍पों को स्‍कूल के एक ही स्‍थान पर चार्ज किया जाएगा, जबकि छात्रों की पढ़ाई स्‍कूल के टैरेस में स्‍थापित एक साझा सौर पीवी मॉड्यूल के जरिए कराई जाएगी। दिन में इन लैम्‍पों को चार्ज किया जाएगा और 4 से 5 घंटे के चार्ज होने के बाद ये 2-3 दिनों तक रात के दौरान 2-3 घंटे तक रोशन प्रदान करने में सक्षम होंगे। जिन छात्रों के पास ये लैम्‍प होंगे, वे इसे घर ले जाकर रात में अपनी पढ़ाई करेंगे। जरूरत होने पर वे स्‍कूल ले जाकर इसे फिर से चार्ज कर सकेंगे।
परियोजना के लाभ    एक बार सफलतापूर्वक कार्यान्वित होने पर समाज के लिए यह परियोजना प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष रूप से लाभकारी होगी।

*10,000 छात्रों को सौर लैम्‍प मिल जाने पर इसके परिणामस्‍वरूप अध्‍ययन के लिए प्रतिवर्ष लगभग 30,00,000 अतिरिक्‍त घंटे उपलब्‍ध होंगे।

*इससे माता-पिता, शिक्षकों और प्रशासकों के बीच जागरूकता आएगी और लोग अपना-अपना सौर लैम्‍प प्राप्‍त करने के लिए प्रोत्‍साहित होंगे। घर में इस्‍तेमाल के लिए एक अन्‍य घरेलू लैम्‍प का मॉडल भी उपलब्‍ध है।*इससे मिट्टी के तेल की मांग में कमी होगी, जिसकी आपूर्ति पहले से ही कम हो रही है और इसके बदले देश के लिए बहुमूल्‍य विदेशी मुद्रा की बचत होगी।

*इससे मिट्टी के तेल वाले लैम्‍पों के इस्‍तेमाल से बच्‍चों को होने वाले स्‍वास्‍थ्‍य के खतरे में भी कमी आएगी।
*इस परियोजना के क्रियान्‍वयन के परिणामस्‍वरूप प्रतिवर्ष 15,00,000 टन कार्बनडाईऑक्‍साइड के उत्‍सर्जन में भी कमी आएगी।

इस परियोजना का उद्देश्‍य मध्‍य प्रदेश के सामाजिक जीवन पर होने वाले प्रभाव को दर्शाना और सरकार को रोशनी के लिए सौर लैम्‍पों को अपनाने हेतु प्रोत्‍साहित करना है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में रोशनी के लिए सबसे अधिक किफायती समाधान है।सौर ऊर्जा पर भारत का जोर    सरकार ने सौर ऊर्जा के महत्‍व को स्‍वीकार किया है और जवाहरलाल नेहरू राष्‍ट्रीय सौर मिशन नामक कार्यक्रम शुरू किया है। इस मिशन का तात्‍कालिक लक्ष्‍य देश में केंद्रित और विकेंद्रित - दोनों स्‍तरों पर सौर प्रौद्योगिकी को पहुंचाने के लिए एक वातावरण तैयार करने पर जोर देना है। इस क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से आई.आई.टी. बम्‍बई में राष्‍ट्रीय फोटोवोल्‍टाइक अनुसंधान और शिक्षा केंद्र (एनसीपीआरई) स्‍थापित किया गया है, ताकि आधारभूत और उन्‍नत अनुसंधान संबंधी गतिविधियां संचालित हो सके। एनसीपीआरई का उद्देश्‍य सौर पीवी को एक किफायती और प्रासंगिक प्रौद्योगिकी विकल्‍प बनाना है।  (PIB) (पसूका विशेष लेख)
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*निदेशक (मीडिया), पत्र सूचना कार्यालय, मुंबई
**मीडिया और संचार अधिकारी (मीडिया), पत्र सूचना कार्यालय, मुंबई

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