रविवार, 8 दिसंबर 2013

दरकार : विषम संघवाद पर विवेकपूर्ण बहस की

भारत का विषम संघवाद केवल जम्मू- कश्मीर पर ही लागू नहीं होता और जम्मू- कश्मीर का मामला ही विशेष मामला नहीं है। और अनुच्छेद-370 ही केवल विषमता को परिभाषित नहीं करता। अनुच्छेद-371 पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों पर विषम संघवाद के आधार पर इसी तरह लागू होता है। विभिन्न मामलों में अनुच्छेद- 371 संसद की शक्तियों को नगालैंड तक सीमित करता है। यदि अनुच्छेद-370 में राज्य-केंद्र सम्बन्ध का प्रावधान है और उसका सम्प्रभुता और राष्ट्रवाद के मामले से कोई लेनादेना नहीं है तो राष्ट्रीय अखंडता के मुद्दे पर कोई भी बहस फालतू हो जाती है।

प्रो. रेखा चौधरी राजनीति संकाय, जम्मू विश्वविद्यालय

जम्मू में मोदी की ललकार रैली के बाद देश में अनुच्छेद-370 पर ताजा बहस शुरू हो गई है। रैली में अपने भाषण के दौरान उन्होंने इस अनुच्छेद की सार्थकता पर सवाल किया और यह दिखाया कि यह लोगों के विकास और अधिकारों में बाधा बन रहा है। हालांकि मोदी ने इसे समाप्त करने की मांग नहीं की और हमेशा की तरह केवल इस पर विवेकपूर्ण बहस की मांग की। इसके बाद से इसके समर्थकों और विरोधियों के बीच कटु संवाद शुरू हो गया है। अनुच्छेद-370 और विवेकपूर्ण बहस दो असत्य से शब्द हैं। शुरू से ही यह अनुच्छेद दोनों पक्षों में ऐसा जोश पैदा करता रहा है कि इस पर विवेकपूर्ण बहस कभी देखने को नहीं मिली। इसके समर्थकों के लिए यह विश्वास का अनुच्छेद रहा है और इसके विरोधियों के लिए इसका विरोध विश्वास का मुद्दा रहा है। दोनों पक्षों के लिए यह अनुच्छेद बहुत सारी भावनाएं पैदा करता है। यही कारण है कि इस अनुच्छेद के बारे में बहुत सारी गलत धारणाएं हैं। इनमें से कुछ पर र्चचा करना रोचक हो सकता है। स्थायी आवास प्रमाणपत्र को लेकर अनुच्छेद-370 के बारे में भ्रम है। सच्चाई यह है कि राज्य के स्थायी निवासियों को कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं। इन विशेषाधिकारों को राज्य के गैर निवासियों को इजाजत नहीं है। गैर निवासियों को अधिकारों से अनुच्छेद-370 की वजह से वंचित नहीं किया गया है बल्कि भारतीय संविधान में अनुच्छेद-370 को शामिल किए जाने से पहले एक कानून के शामिल किए जाने के कारण किया गया है। यह कानून वर्ष 1927 में बनाया गया था तथा उस समय इसे स्टेट सब्जेक्ट लॉ के नाम से जाना जाता था। यह राज्य से बाहर के लोगों को राज्य में संपत्ति खरीदने और रोजगार करने से रोकता था। इन दोनों पर केवल राज्य के लोगों का अधिकार था। अनुच्छेद-370 का स्टेट सब्जेक्ट लॉ या स्थायी निवासी कानून से कोई सम्बन्ध नहीं है।

सम्प्रभु ता कानून लागू है यहां अनुच्छेद-370 के बारे में इस अनुच्छेद की वजह से ही एक और गलत धारणा यह है कि भारत की सम्प्रभुता जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती। इस अनुच्छेद के समर्थकों और विरोधियों ने इस तर्क का अपने अपने लाभ के लिए इस्तेमाल किया है। इसके विरोधी कहते रहे हैं कि भारत की सम्प्रभुता इस राज्य पर अधूरी है क्योंकि इस राज्य पर भारतीय संविधान लागू नहीं होता। इस अनुच्छेद के समर्थकों का तर्क है कि इसके बावजूद राज्य भारत में शामिल है लेकिन इसका भारत के साथ विलय नहीं हुआ है और इस तरह राज्य की अपनी कु छ सम्प्रभुता है। जबकि कानूनी स्थिति बिल्कुल अलग है। सम्प्रभुता का मुद्दा तब ही तय हो गया था, जब राज्य ने भारत में शामिल होने के कागजात पर हस्ताक्षर किए थे। सच्चाई यह है कि जम्मू-कश्मीर भारत की सम्प्रभुता के तहत आता है। अन्य शाही राज्यों की तरह, जो भारत का हिस्सा बन गए थे, जम्मू-कश्मीर भी भारत का हिस्सा बन गया था। सम्प्रभुता के मामले में इस राज्य को कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है। राज्य पर भारतीय सम्प्रभुता पहले दिन से ही पूरी तरह है। असल में अनुच्छेद-370 इस बात की पुष्टि करता है कि राज्य पर भारतीय सम्प्रभुता है। अनुच्छेद-370 के प्रावधानों के अनुसार केवल दो अनुच्छेद राज्य पर सीधे लागू होते हैं। एक तो स्वयं अनुच्छेद-370 और दूसरा अनुच्छेद-एक। अनुच्छेद-370 में यह परिभाषित किया गया है कि राज्य भारत गणतंत्र का एक हिस्सा है।

तो क्या हुआ अगर अनुच्छेद सम्प्रभुता के बारे में कार्य नहीं करता है। यह मुख्य रूप से राज्य और केंद्र के संबंधों के बारे में बात करता है। राजनीति शास्त्र की शब्दावली में अनुच्छेद-370 को विषम संघवाद के रूप में परिभाषित किया गया है। इसका मतलब यह है कि भारतीय संघ में स्थिति के मामले में जम्मू-कश्मीर अन्य राज्यों के बराबर है लेकिन अन्य राज्यों की तुलना में इसका केंद्र के साथ अलग सम्बन्ध है। इस अनुच्छेद के कारण भारतीय संविधान और संसद के कानून राज्य पर उसकी सहमति से ही लागू हो सकते हैं। जिन मामलों में राज्य पर भारत का संविधान लागू नहीं होता, उन मामलों में राज्य का अपना संविधान होगा। तीन सूचियों में बताई गई शक्तियों का विभाजन राज्य पर लागू नहीं होता है। बाकी शक्तियों में उसे विशेषाधिकार प्राप्त है। ये सभी प्रावधान विषय संघवाद की विशेषताओं के बारे में बताते हैं।

पूर्वोत्तर में भी है यह प्रावधान भारत का विषम संघवाद केवल जम्मू-कश्मीर पर ही लागू नहीं होता और जम्मू-कश्मीर का मामला ही विशेष मामला नहीं है। और अनुच्छेद-370 ही केवल विषमता को परिभाषित नहीं करता। अनुच्छेद-371 पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों पर विषम संघवाद के आधार पर इसी तरह लागू होता है। विभिन्न मामलों में अनुच्छेद-371 संसद की शक्तियों को नगालैंड पर सीमित करता है। यदि अनुच्छेद-370 में राज्य-केंद्र सम्बन्ध का प्रावधान है और उसका सम्प्रभुता और राष्ट्रवाद के मामले से कोई लेना-देना नहीं है तो राष्ट्रीय अखंडता के मुद्दे पर कोई भी बहस फालतू हो जाती है। रोचक बात यह है कि मोदी ने राष्ट्रवाद के परिप्रेक्ष्य में अनुच्छेद- 370 का मामला नहीं उठाया। इसके विपरीत उन्होंने अधिकारों की भाषा का इस्तेमाल किया। यह राज्य के नागरिकों और उनके अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में है और उन्होंने अनुच्छेद- 370 की समीक्षा पेश की। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद-370 की प्रकृति के कारण संसद द्वारा पास किए गए कानूनों का लाभ राज्य के लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में मोदी ने जम्मू की रैली में निश्चित रूप से भाजपा के पारम्परिक रुख से दूरी बनाकर रखी। भारतीय जनसंघ के अस्तित्व के शुरुआती दिनों से ही राष्ट्रवादी परिप्रेक्ष्य में भाजपा अनुच्छेद-370 का विरोध करती रही है। इसके पक्ष में इसका यह तर्क रहा है कि इस अनुच्छेद के कारण ही राज्य पूरी तरह भारत के साथ नहीं जुड़ पाया है। मोदी ने जिस संदर्भ में यह बात कही है, इसका परिणाम आने वाले दिनों में क्या दिखाई देगा, यह कहना मुश्किल है। हालांकि इसका भावनात्मक परिणाम दिखाई दे रहा है।

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