जम्मू-कश्मीर राज्य की कोई महिला राज्य या देश से बाहर रहने वाले पुरुष से विवाह कर लेती है तो उसके पति या संतानों को राज्य की नागरिकता का अधिकार नहीं मिलता है। इसी परिवार की बेटी सारा अब्दुल्ला ने केंद्रीय मंत्री और भारत के नागरिक सचिन पायलट से विवाह किया तो सचिन पायलट एवं उनके बच्चों को जम्मू-कश्मीर में सम्पत्ति खरीदने या शिक्षा लेने का अधिकार नहीं मिल पाया है। इन बच्चों को ब्रिटिश नागरिक श्रीमती मौली के बच्चों की तरह जम्मू-कश्मीर में न तो मतदाता बनने का अधिकार है और न ही चुनाव लड़ कर मुख्यमंत्री बनने का
हेमंत कुमार बिश्नोई उपाध्यक्ष, जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र, नई दिल्ली
नरेन्द्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर की धरती पर जाकर वहां महिलाओं को सामान अधिकार न दिए जाने का मुद्दा अपने भाषण में उठाया। उनका कहना था कि राज्य के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर से बाहर रहने वाली महिला से शादी करे तो स्थानीय नागरिक के तौर पर उनके अधिकार कायम रहते हैं। इसके विपरीत उनकी बहन ने राज्य के बाहर रहने वाले पुरुष से विवाह किया तो वह जम्मू-कश्मीर राज्य के नागरिक के तौर पर मिले अधिकार खो देती हैं। मोदी ने दावा किया कि जम्मू- कश्मीर राज्य की महिलाओं के साथ भेदभाव किया जा रहा है और उन्होंने राज्य के बेटियों के प्रति सौतेला व्यवहार किए जाने को समाप्त करने की मांग उठाई। जब देश में सभी राजनीतिक दलों और अन्य स्वयंसेवी संगठन महिला सशक्तिकरण का मुद्दा जोर-शोर से उठा रहे हैं; तब यह विषय निश्चित तौर पर महत्त्वपूर्ण हो जाता है। महिलाओं के साथ भेदभाव और उनकी कमजोर स्थिति का लाभ उठाने की प्रवृत्ति को लेकर देश के हर कोने में महिला संगठन पनपते और आंदोलन करते दिखाई देते हैं। लेकिन प्रश्न यह है कि जम्मू-कश्मीर राज्य में महिलाओं के साथ भेदभाव का मोदी का यह नारा देश की जनता को गुमराह करने के लिए है अथवा इसमें कोई सच्चाई भी है। यह बात देश में सभी जागरूक नागरिकों के मन में भी छाई हुई है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने मोदी के भाषण के तत्काल बाद इसका खंडन कर दिया। ट्वीट किए अपने बयान में अब्दुल्ला ने कहा कि भाषण में प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी की या तो जानकारी कम है अथवा यह जान-बूझकर देश की जनता को गुमराह करने का प्रयास है।
शेख परिवार से जानें असमानताओं को कानून के विशेषज्ञों का मानना है कि जम्मू-कश्मीर में महिलाओं के अधिकारों के मामले में दोनों तरफ से बयानों में स्पष्टता का अभाव है। इसके कानूनी पहलुओं को समझना हो तो जम्मू-कश्मीर के उस परिवार के उदाहरण से समझा जा सकता था; जिसकी तीन पीढ़ियों ने बारी-बारी यहां मुख्यमंत्री का पद सम्भाला। इस राज्य के पहले मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला के पुत्र डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने ब्रिटेन की महिला के साथ विवाह किया, विवाह करते ही वह जम्मू-कश्मीर राज्य की स्वाभाविक नागरिक बन गई। वह न केवल यहां के शिक्षा संस्थानों में मेडिकल या इंजीनियरिंग की शिक्षा लेने या कोई सरकारी नौकरी करने तथा राज्य में अपने नाम में सम्पत्ति खरीदने की वैध अधिकारी हो गई। इतना ही नहीं, उन्हें वोट डालने और चुनाव लड़ने का भी अधिकार प्राप्त हो जाता है। इसी तरह उनकी सभी संतानों को भी राज्य में शिक्षा प्राप्त करने या संपत्ति खरीदने और सरकारी नौकरी करने का अधिकार मिल गया। इसी तरह, इनके पुत्र उमर अब्दुल्ला ने भी जम्मू-कश्मीर राज्य से बाहर की रहने वाली महिला से विवाह किया और उनको को भी जम्मू-कश्मीर में अन्य नागरिकों की तरह सभी अधिकार प्राप्त हो गए। इनकी संतान को भी सभी अधिकार कानूनी दृष्टि से पूरे मिलते हैं। इन दो उदाहरणों से इस बात को स्पष्ट करने का प्रयास है कि जम्मू-कश्मीर का कोई भी पुरुष राज्य या देश से बाहर रहने वाली महिला से शादी करता है तो उस महिला और उनकी संतानों को राज्य में सभी नागरिक अधिकार मिल जाते हैं।
मुद्दा यह है कि इसके विपरीत, जम्मू-कश्मीर राज्य की कोई महिला राज्य या देश से बाहर रहने वाले पुरुष से विवाह कर लेती है तो उसके पति या संतानों को राज्य की नागरिकता का अधिकार नहीं मिलता है। इसी परिवार की बेटी सारा अब्दुल्ला ने केंद्रीय मंत्री और भारत के नागरिक सचिन पायलट से विवाह किया तो सचिन पायलट एवं उनके बच्चों को जम्मू-कश्मीर में सम्पत्ति खरीदने या शिक्षा लेने का अधिकार नहीं मिल पाया है। इन बच्चों को ब्रिटिश नागरिक श्रीमती मौली के बच्चों की तरह जम्मू-कश्मीर में न तो मतदाता बनने का अधिकार है और न ही चुनाव लड़ कर मुख्यमंत्री बनने का।
पुरुषों को मिले हुए हैं अधिकार एक ही परिवार के बेटे और बेटी के राज्य से बाहर के नागरिक से शादी कर लेने के कारण, उनकी संतानों के अधिकारों में इतना बड़ा अंतर स्पष्ट करता है कि जम्मू-कश्मीर में स्त्रियों एवं पुरुषों को सामान अधिकार प्राप्त नहीं है। जम्मू कश्मीर के पुरुषों को यह अधिकार मिला हुआ है कि किसी भी विदेशी महिला से विवाह करके उसे राज्य के अन्य नागरिकों के समान सभी अधिकार दिलवा दें लेकिन इसी राज्य में लाखों की संख्या में ऐसे नागरिक भी हैं; जो भारत के बंटवारे के समय पाकिस्तान से यहां चले आये थे लेकिन उन्हें आज तक राज्य कि नागरिकता के अधिकार नहीं मिले। ये नागरिक लोक सभा में अपने प्रतिनिधि चुनने के लिए तो मतदान करते हैं और चुनाव लड़ भी सकते हैं लेकिन राज्य की विधानसभा सदस्यों को चुनने का या चुनाव लड़ने का अधिकार इन्हें प्राप्त नहीं है। इनमें प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के परिवार के अनेक पूर्व पड़ोसी भी है; जो पंजाब या देश के अन्य राज्यों में जाने के स्थान पर, बंटवारे के दौरान इस राज्य में बस गए थे। डा. मनमोहन सिंह भी पंजाब के स्थान पर जम्मू- कश्मीर में चले गए होते उन्हीं लोगों में अपने को पाते जिन्हें न तो मेडिकल या इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिला मिल सकता है और न ही सम्पत्ति खरीदने का हक़ होता।
वह तो विधान परिषद ने रोका वरना.. जहां तक सवाल मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की पार्टी और पीडीपी का महिलाओं के अधिकारों को संरक्षण देने की नीति का है। वह तो ‘जम्मू-कश्मीर स्थायी निवासी ( डिसकवालीफिकेशन) अधिनियम-2004’ को विधान सभा में पारित कराने के ढंग से पता चल जाता है। इस विधेयक को केवल छह मिनट में इन दोनों पार्टयिों में पारित कर दिया था। किस्सा यह था कि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने सात अक्टूबर 2002 को दिए अपने निर्णय में स्पष्ट कर दिया था कि जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासी की बेटी के बाहर रहने वाले व्यक्ति से विवाह करने पर नागरिक अधिकार समाप्त नहीं किये जा सकते। मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार ने उच्च न्यायालय के इस आदेश को रद्द करने के लिए मार्च 2004 में यह विधेयक सदन में पेश किया। इसमें कहा गया था कि राज्य की किसी भी लड़की के बाहर के पुरुष से विवाह करने पर उसके राज्य के नागरिकता के अधिकार समाप्त हो जायेगी। उमर अब्दुल्ला की पार्टी ने इस विधेयक का समर्थन किया और केवल छह मिनट में इसे पारित भी कर दिया गया। लेकिन विधेयक को विधान परिषद् ने पास नहीं किया और इस कारण यह कानून नहीं बन पाया। इसी स्थिति में नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के बयानों की सच्चाई आसानी से समझी जा सकती है।
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रविवार, 8 दिसंबर 2013
महिलाओं के हक पर राजनीति
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