रविवार, 8 दिसंबर 2013

भाजपा का रुख नहीं बदला

अरुण जेटली राज्य सभा सांसद, भाजपा

नरेन्द्र मोदी ने जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में एक-एक हरफ अनुच्छेद-370 को बनाए जाने की पृष्ठभूमि को लेकर कहा। पं. जवाहरलाल नेहरू के इससे खुद को अलग कर लेने संबंधी आश्वासन का जिक्र किया। अनुच्छेद-370 की इसके पृथक दज्रे से शुरू हुई भारत को पृथकतावाद की तरफ धकेलने तक की यात्रा का उल्लेख करने के साथ लोगों से इस पर र्चचा का आह्वान किया। इस बात के लिए कि इसके फायदे और नुकसान को लेकर क्यों न र्चचा कर ली जाए। हमारे मीडिया के कुछ विद्वतज्जनों ने उनके कहे पहले वाक्यों को भुलाते हुए केवल आखिरी वाक्य उठाया और कह दिया कि यह भाजपा का अपने पूर्व के स्टैंड से हट जाना हुआ। हम यह साफ कर देना चाहते हैं कि हमारी पार्टी का इस पर पहले जैसा रुख है और वह टस से मस नहीं हुई है। सच तो यह है कि अनुच्छेद-370 खुद अपने ही नागरिकों को दबाने या उनके साथ भेदभाव करने का हथियार बन सकता है। यह कहना भी गलत है कि इस अनुच्छेद के जरिये राज्य को धर्मनिरपेक्ष रखा जा सका है। मेरा निजी अध्ययन तो यह कहता है कि कैसे यह अनुच्छेद लोगों को सताने और उनके साथ ऊंच-नीच करने में वहां की सरकार का साधन बन गया है। अनुच्छेद 370 की तरह अनुच्छेद 35 अ भी ऐसा ही है, जो विभिन्न अनुच्छेदों; अनुच्छेद 14 (समानता), अनुच्छेद- 15 (धर्म जाति, समुदाय या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव न करने), अनुच्छेद- 16 (सरकारी संस्थानों में रोजगार के समान अवसर और आरक्षण), अनुच्छेद - 19 के तहत मिले मौलिक अधिकार समेत बोलने की आजादी, जीने का हक और अनुच्छेद-21 के तहत स्वतंत्रता के अधिकार को खारिज करता है। मुझे लगता है कि जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का ही इस भेदभावकारी कानून से कुछ लेना-देना है, जो राज्य से बाहर विवाह करने वाली बेटियों से भेदभाव करने की बात कहता है। बेशक, राज्य में ऐसा प्रावधान रहा है। यह 2002 में खत्म कर दिया गया था। यह सच है कि नेशनल कान्फ्रेंस सरकार, जो उमर अब्दुल्ला की पार्टी की सरकार है, ने यह बात जोरदार ढंग से कही है कि राज्य से बाहर शादी करने वाली बेटियों को राज्य में विरासत में कोई संपत्ति नहीं मिलनी चाहिए। इस विचार से घबराई युवतियों ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। और उसके बाद 2004 से ही दोनों पार्टियां, पीडीपी और नेशनल कान्फ्रेंस, पुत्री-विरोधी इस कानून को फिर से लाए जाने को लेकर तमाम कोशिशें करती रही हैं। चूंकि उमर अब्दुल्ला के बात कहने का अंदाज ही इस प्रकार का रहा है, सो तमाम तथ्यों की तह में न जाते हुए हम बस इतना ही कहना चाहेंगे कि वह इतिहास नहीं बदल सकते।

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