व्यक्ति को जीने, स्वतंत्रता का उपभोग करने तथा खुद को निरापद बनाने का अधिकार है। किसी व्यक्ति को दास बनाकर नहीं रखा जा सकता। साथ ही, दासता और दासों की खरीद-फरोख्त पर कानूनी रूप से मनाही भी है। किसी व्यक्ति को शारीरिक यंतण्रा नहीं दी जा सकती और न क्रूरतापूर्ण तथा अमानवीय बर्ताव ही किया जाएगा। उसका न तो अपमान किया जाएगा और न उसे अपमानजनक दंड ही दिया जाए। कानून की दृष्टि में सभी मनुष्य समान हैं और बिना किसी भेदभाव के उन्हें कानून का समान संरक्षण पाने का अधिकार है। इस घोषणापत्र का उल्लंघन होने और भेदभाव किए जाने पर प्रत्येक व्यक्ति को कानूनी संरक्षण प्रदान किया जाए। किसी व्यक्ति को मनमाने ढंग से गिरफ्तार और नजरबंद न किया जाए, न ही उसको निष्कासित किया जाए। खुली अदालत में मुकदमा चलाकर सजा मिले बिना, जिसमें उसे अपने बचाव की सभी आवश्यक सुविधाएं दी गई हों, प्रत्येक व्यक्ति निर्दोषसमझा जाए। किसी के एकांत जीवन, परिवार, घर या पत्र व्यवहार के मामले में अनुचित हस्तक्षेप न किया जाए और न उसके सम्मान और प्रतिष्ठा पर किसी प्रकार का आघात किया जाए। साथ ही, उसे अनु चित दखल के विरुद्ध कानूनी संरक्षण का हम रहेगा। हर व्यक्ति को अपने राज्य की सीमा के अं दर स्वेच्छापूर्वक आने-जाने और मनचाहे स्थान पर बसने का अधिकार है। प्रत्येक व्यक्ति को अपने देश को छोड़कर दूसरे देश जाने और वहां से लौटने का अधिकार है। प्रत्येक स्त्री और पुरुष को राष्ट्र, राष्ट्रीयता और धर्म के प्रतिबंध के बिना विवाह करने और परिवार बनाने का अधिकार है। प्रत्येक पुरुष और स्त्री को विवाह करने, वैवाहिक जीवन में और संबंध-विच्छेद के मामलों में समान अधिकार हैं। परिवार को समान और राज्य संरक्षण प्राप्त होगा। हरेक को विचार, अंत:करण, धर्मोपासना को स्वतंत्रता का अधिकार है। इसमें धर्म परिवर्तन, धर्मोपदेश, व्यवहार, पूजा और अनुष्ठान की स्वतंत्रता सम्मिलित है। प्रत्येक व्यक्ति को शांतिपूर्ण सभा करने और संगठन बनाने का अधिकार है। शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार भी मानव के मूलभूत अधिकारों में है। बच्चों को किस प्रकार की शिक्षा दी जाए, इसका अधिकार उनके माता-पिता को है। वैज्ञानिक, साहित्यिक अथवा कलाकृति से मिलने वाली ख्याति तथा उसके भौतिक लाभ की रक्षा का भी उसे अधिकार है (27)। कुल मिलाकर, 30 धाराएं मानवाधिकार प्रपत्र में शामिल की गई हैं। भारत में मानवाधिकार रक्षा के प्रयास भारत शुरू से ही मानव और मानवता का सम्मान करनेवाला देश रहा है। मानवाधिकारों के लिए यहां 1829 में ही राजा राममोहन राय द्वारा चलाए गए हिन्दू सुधार आंदोलन के बाद भारत में सती प्रथा को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया। इसी साल नाबालिगों को शादी से बचाने के लिए बाल विवाह निरोधक कानून पारित हुआ। 1955 में भारतीय परिवार कानून में सुधार हुआ और हिन्दू महिलाओं को ज्यादा अधिकार मिले, जबकि 1973 में केशवानंद भारती केस में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि संविधान संशोधन द्वारा संविधान द्वारा प्रदत्त कई मूल अधिकार को हटाया नहीं जा सकता। यही नहीं, 1989 अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति (अत्याचारों से सुरक्षा) एक्ट 1989 पारित हुआ और 1992 में संविधान में संशोधन के जरिए पंचायत राज की स्थापना में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण लागू हुआ। 1993 में ‘प्रोटेक्शन ऑफ ह्यूमन राइट्स एक्ट’ के तहत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना हुई तो 2001 में खाद्य अधिकारों को लागू करने के लिए आदेश पारित किया गया। 2005 में सूचना का अधिकार कानून आया तो 2005 में रोजगार की समस्या हल करने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट पारित किया गया और भारतीय पुलिस के कमजोर मानवाधिकारों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस सुधार के निर्देश दिए। पर मानवाधिकार प्रपत्र पर हस्ताक्षर करने वाला हमारा देश आज मानवाधिकारों के उल्लंघनों का एक गढ़ भी है। यहां करोड़ों लोग बहुत गरीबी में रहते हैं जो साफ-सफाई, बिजली, स्वास्थ्य व शिक्षा-संबंधी सुविधाओं के साथ रोटी, कपड़ा, मकान और पेय जल जैसी जीवन की आवश्यक वस्तुओं से भी वंचित हैं। संकट में आमजन और महिलाएं आम आदमी रोज पुलिस प्रशासन तथा अपराधियों के अत्याचारों को सहने को विवश है। आतंकवाद को रोकने के नाम पर मानवाधिकारों का अतिक्रमण और हनन हो रहा है तो आदिवासी इलाकों में गरीबों और बेघरों को भी बर्बर व्यवहार सहना पड़ता है। महिलाएं घरेलू हिंसा, यौन शोषण, बलात्कार जैसे बर्बर शोषण और दमन की शिकार बन रही हैं। नामी और शक्तिशाली लोग मनमानी करने से बाज नहीं आते। बच्चे भी शिकार आज बड़ी संख्या में बच्चों का शोषण किया जा रहा है। वे मजदूरी कर रहे हैं, परिवार से दूर अकेले इस शोषण का शिकार हो रहे हैं। उनसे जबर्दस्ती काम करवाया जा रहा है। उनके साथ बुरा व्यवहार तो बहुत आम बात है। दुनिया के कई देशों में आज भी बच्चों को बचपन नसीब नहीं है। हालांकि 1992 में भारत में बाल मजदूरी हटाने का लक्ष्य तय किया गया और कहा गया कि यह काम रोक दिया जाएगा पर दुख की बात यह है कि आज 21 साल बाद भी हम बाल मजदूरी खत्म नहीं कर पाए हैं। आज करीब पांच करोड़ बच्चे बालश्रमिक के रूप में कार्य करने को विवश हैं। इनमें से 50 फीसद लड़कियां हैं। क्यों नहीं हटता बालश्रम हालांकि चाइल्ड लेबर एक्ट में 14 साल से कम उम्र के बच्चे को काम पर रखना गैरकानूनी है, जबकि होटलों, ढाबों, कारखानों में खुले तौर पर छोटे-छोटे बच्चों को मजदूरी करते देखा जा सकता है। दूसरे मां-बाप अभिभावकों की अज्ञानता और गरीबी भी इसका बड़ा कारण है क्योंकि बच्चों की कमाई से इनका परिवार आसानी से चल जाता है। अशिक्षा तथा अज्ञानता का लाभ चालाक किस्म के लोग उठा रहे हैं। आशा की एक किरण इतना होने पर भी मानवाधिकार संरक्षण आयोग, महिला आयोग, बाल सुरक्षा व संरक्षण, आदिवासी तथा अनुसूचित जाति व जनजाति के हितैषी कुछ संगठन व्यक्ति बुनियादी मानवाधिकारों की रक्षा के संघर्ष में जुटे हैं। इस बढ़ती धारा के दबाव में सरकार ने बड़े अभियान भी चलाये हैं। केवल कानूनी रूप से ही सही, पर ‘शिक्षा, भोजन, रोजगार के अधिकार उन्हें मिले भी हैं पर अब भी उन्हें अमलीजामा पहनाने के लिए काफी कुछ किया जाना शेष है।
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रविवार, 8 दिसंबर 2013
संकट में मानवाधिकार
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