सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

लोक सभा चुनाव में असरदार रहेगी ‘आप’


आम आदमी पार्टी कई राज्यों में खासा मत-प्रतिशत हासिल करने में सफल रहेगी। लेकिन हो सकता है कि इतने मत सीटों में तब्दील होने के मद्देनजर पर्याप्त न रहें। हां, इतना जरूर होगा कि पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल हो जाए। ऐसा लगता है कि भारत में ऐसा चु नावी परिदृश्य उभरने जा रहा है, जब लोक सभा चुनाव-2014 के बाद कांग्रेस और भाजपा के अलावा ‘आप’ कई राज्यों में 4-6 प्रतिशत मत हासिल करते हुए एक तीसरी पार्टी के रूप में उभर सकती है

जिस तरह आम आदमी पार्टी (‘आप’) ने लोक सभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की पहली सूची की घोषणा की है, उससे मुझे पुरानी सुपर हिट फिल्म ‘शोले’ की याद हो आई। फिल्म में अमिताभ बच्चन (फिल्म में नाम जय) को गोली लगी तो धम्रेद्र (फिल्म में नाम वीरू) का डायलॉग था, एक-एक को चुन-चुन के मारूंगा। ‘आप’ ने जब अपने बीस प्रत्याशियों की सूची घोषित की तो इनकी योग्यताओं के स्थान पर उसका इस बात पर ज्यादा जोर था कि ये प्रत्याशी किन-किन नेताओं (मौजूदा सांसद जो संभवत: उनके सामने होंगे) को टक्कर देंगे। जहां रील लाइफ (फिल्म) में धम्रेद्र (वीरू) के लिए गब्बर सिंह (फिल्म में दुर्दान्त डाकू) और उसके साथियों को मार डालना संभव था, वहीं ‘आप’ के जांबाजों के लिए पक्का नहीं कहा जा सकता कि वे विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के ‘खलनायकों’ को मार ही सकेंगे। आखिर, रियल लाइफ (असली दुनिया) रील लाइफ (फिल्मी दुनिया) नहीं होती। अभी तो यह कयास भर जोरों पर है कि ‘आप’ के इन बीस नायकों में से कौन- कौन से नए-नवेले नेता मैदान मार लेंगे। यह बात नतीजों की घोषणा होने पर ही पता चल पाएगी। लेकिन सूची की इस प्रकार से घोषणा करके पार्टी ने दिलेरी दिखाई है। यह कि वह विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के इन बड़े/महत्त्वपूर्ण/दिग्गज नेताओं को टक्कर देने को तैयार है। यह कि वह इन बड़े नामों का मुकाबला करने से नहीं डरती। इस तरह दिलेर घोषणा किए जाने से ‘आप’ की आम मतदाताओं में उसी प्रकार से अच्छी छवि बनेगी जिस प्रकार दिल्ली में अरविंद केजरीवाल द्वारा शीला दीक्षित के मुकाबले चुनाव लड़ने की घोषणा से बनी थी। अभी तो इस बात का केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है कि क्या यह रणनीति पार्टी की राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता में इजाफा करेगी या नहीं। इस बाबत असली तस्वीर चुनाव के बाद ही साफ हो सकेगी। ‘आप’ को लेकर यही अकेली कयासबाजी नहीं है बल्कि इस बात के भी अंदाजे लगाए जा रहे हैं कि ‘आप’ लोक सभा की कितनी सीटें जीत पाने में सफल होगी? क्या ‘आप’ कांग्रेस से ज्यादा भाजपा को नुकसान पहुंचाएगी? क्या अरविंद केजरीवाल नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे? ‘आप’ कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी? इन कुछ सवालों के जवाब मिलने में ज्यादा देर नहीं है लेकिन कुछ महत्त्वपूर्ण सवालों के जवाब तो चुनावी नतीजों की घोषणा हो जाने के बाद ही मिल पाएंगे।

केजरीवाल सरकार को लेकर मिली-जुली राय दिल्ली के असेंबली चुनाव में ‘आप’ का प्रदर्शन बेहद अच्छा रहा। दिल्ली में 49 दिन चली ‘आप’ की सरकार को लेकर मिली-जुली राय है। कुछ सकारात्मक विचार हैं, तो केजरीवाल सरकार के इस छोटे से कार्यकाल को लेकर प्रशंसाएं भी हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो ‘आप’ सरकार के 49 दिनों में इसके कार्यकलाप पर टीका-टिप्पणी करने से नहीं चूकते। केजरीवाल के धरने, सोमनाथ भारती की आधी रात को छापेमारी वगैरह आदि ऐसी घटनाएं हैं, जो आम जनता के सामने ‘आप’ सरकार के नम्बर कम करती हैं। जहां इन घटनाओं ने ‘आप’ सरकार की इमेज को नुकसान पहुंचाया है, और जिनसे दिल्ली के मध्यम वर्गीय तबके में पार्टी की लोकप्रियता में कमी आने का अंदेशा है, वहीं मुझे लगता है कि निम्न और गरीब तबकों में पार्टी की अपील और मतदाताओं का समर्थन बरकरार है। जिस प्रकार पार्टी ने दिल्ली पुलिस के खिलाफ मोर्चा बांधा उसकी ज्यादातर मतदाताओं ने प्रशंसा की है। इसमें कोई अचरज भी नहीं है क्योंकि इनमें से ज्यादातर का, जिनका बीते समय में जब कभी दिल्ली पुलिस से वास्ता पड़ा, अनुभव कोई खास अच्छा नहीं था। दिल्ली में तमाम वगरे के मतदाताओं में ‘आप’ की लोकप्रियता में कोई ज्यादा कमी- बेशी नहीं हुई है बल्कि इसमें कुछ इजाफा भी हो सकता है बशत्रे केजरीवाल मतदाताओं को विास दिलाने में सफल हो जाएं कि भ्रष्टाचार से लड़ने में उन्हें लोकपाल बिल लाने से कांग्रेस और भाजपा ने रोका। असली सवाल यह है कि अन्य राज्यों में ‘आप’ किस प्रकार से असर डाल सकेगी?

मिलेंगी 8-12 सीटें? यदि सव्रेक्षणों को ‘आप’ की लोकप्रियता मापने का पैमाना माना जाए तो पार्टी के राष्ट्रीय स्तर पर असर डालने का अंदाजा लगा पाना मुश्किल है। हाल में किए गए विभिन्न सव्रेक्षणों से संकेत मिलते हैं कि ‘आप’ को राष्ट्रीय स्तर पर करीब 6-8 प्रतिशत मत मिल सकते हैं। और यह पार्टी 8-12 सीटें भी जीत सकती है। सव्रेक्षणों के ये भी संकेत हैं कि पार्टी के मतों की ज्यादा सघनता दिल्ली में है। दिल्ली के मतदाताओं का अभी जो मूड है, उसे देखते हुए दिल्ली में कुल सात लोक सभा सीटों में से ‘आप’ को 5 या 6 सीटें जीत लेने पर मुझे अचंभा नहीं होगा। पार्टी की लोकप्रियता पड़ोसी राज्यों हरियाणा और पंजाब में भी बढ़ने पर है। हरियाणा में पार्टी सत्ताधारी कांग्रेस को असेंबली चुनाव, जो इस साल के आखिर में होने हैं, और लोक सभा चुनाव में गंभीर चुनौती दे सकती है। चूंकि हरियाणा में भाजपा कोई ज्यादा मजबूत स्थिति में नहीं है और चौटाला की इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो) की स्थिति खासी गड़बड़ हो चुकी है, इसलिए ‘आप’ को हरियाणा में अन्य राज्यों की तुलना में अपना जनाधार बढ़ाने में ज्यादा आसान रहेगी। राज्य में विधानसभा क्षेत्र भौगोलिक और मतदाताओं के लिहाज से छोटे आकार के होने से ‘आप’ को असेंबली सीटें जीतने में सहूलियत रहेगी। लेकिन अभी पार्टी को वहां खासा जमीनी काम करना है। ऐसा करके ही वह हरियाणा में लोक सभा चुनाव में उल्लेखनीय सफलता हासिल कर पाएगी। बहरहाल, ‘आप’ हरियाणा में लोक सभा की कुछ सीटें अपनी झोली में डाल पाने में सफल हो सकती है। पंजाब में भी ‘आप’ की लोकप्रियता बढ़ने पर है। लेकिन यह संभवत: उतनी न रहे कि लोक सभा चुनाव में पार्टी को कुछ सीटें जीतने में कामयाबी मिल सके।

कुछेक राज्यों में रहेगा बेहतर प्रदर्शन यदि सव्रेक्षण ‘आप’ के लिए 10-12 सीटें जीतने के संकेत दे रहे हैं, तो किन राज्यों में ‘आप’ बेहतर प्रदर्शन करके यह सफलता हासिल कर सकती है? मुझे नहीं लगता कि दिल्ली और कुछ हद तक हरियाणा को छोड़ कर एक पार्टी के रूप में किसी अन्य राज्य में ‘आप’ अच्छा प्रदर्शन कर पाएगी। महाराष्ट्र, कर्नाटक या यहां तक कि पंजाब में भी कुछ शहरी सीटों पर पार्टी जीत हासिल कर सकती है, लेकिन इन सीटों को जीतने में पार्टी के बजाय प्रत्याशी की भूमिका ज्यादा होगी। किसी पार्टी के लिए सीटें जीतना महत्त्वपूर्ण है, लेकिन कई दफा ऐसा होता है कि कोई पार्टी खासी संख्या में अपने समर्थक मतदाता होने के बावजूद सीटें नहीं जीत पाती। निर्वाचन पण्रालीगत दिक्कतों के चलते ऐसा हो सकता है। यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि क्या ‘आप’ लोक सभा की 10 या 15 या 20 या इससे भी ज्यादा सीटें जीतने में सफल रहेगी। लेकिन इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह जानना होगा कि पार्टी कितने मत हासिल करती है। मुझे पक्का भरोसा है कि पार्टी कई राज्यों में खासा मत-प्रतिशत हासिल करने में सफल रहेगी। लेकिन हो सकता है कि इतने मत सीटों में तब्दील होने के मद्देनजर पर्याप्त न रहें। हां, इतना जरूर होगा कि पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में सफल हो जाए। मुझे लगता है कि भारत में ऐसा चुनावी परिदृश्य उभरने जा रहा है, जब लोक सभा चुनाव-2014 के बाद कांग्रेस और भाजपा के अलावा ‘आप’ कई राज्यों में 4-6 प्रतिशत मत हासिल करते हुए एक तीसरी पार्टी के रूप में उभर सकती है।

प्रो. संजय कुमार निदेशक, सीएसडीएस, दिल्ली

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