किताबों की अहमियत नहीं कमतर पंद्रह फरवरी के हस्तक्षेप अंक में ‘किताबों की दुनिया-पठनीयता के तकाजे’
विषयक आलेखों में विद्वान लेखकों द्वारा अभिव्यक्त विचारों को पढ़ने का अवसर मिला। इस संदर्भ में अनायास ही अंग्रेजी की कहावत ‘बुक्स आर आवर बेस्ट फ्रेंड्स’
याद आ जाती है। मानव जीवन में किताबों की अहमियत एवं उनकी यथार्थ लोकप्रियता को किसी भी दृष्टिकोण से कमतर नहीं आंका जा सकता। यह कोई प्रयोग अथवा प्रयोग आधारित विषय नहीं है। यह सत्य पर आधारित तथ्य है कि मनुष्यों की जिंदगी में किताबों की नजदीकियां उनके जीवन को संवारने में मदद करती है। मानव के अभ्युदय के साथ पुस्तकों का सफल आगमन मानव जीवन में हुआ। यह विश्व में राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना से पहले की खोज है। मनुष्यों द्वारा सफलतम जीवन जीना उनकी किताबों की दुनिया पर निर्भर करता है, जो अविवादित सत्य है। मनुष्य की मित्रता एवं सहानुभू ति अगर किताबों से हो जाए तो वह सफल नागरिक बन सकता है। प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर लोगों की निर्भरता बढ़ी है, जिससे किताबों को पढ़ने की अभिरुचि में कुछ कमी अवश्य आई है। अलबत्ता, विश्व के कई देशों में पुस्तक मेलों का आयोजन इस बात की पुष्टि अवश्य करता है कि किताबों की दुनिया जीवित है। पाठकों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है। इस संदर्भ में इस बात का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि नई दिल्ली में विश्व पुस्तक मेले का आयोजन संकेत व संदेश होगा कि देश की विविधता में एकता के सुर और स्वर भी एक साथ मिलते हैं। प्रो. धीरज, मनेर, पटना
प्रकाशन-बिक्री, तांत्रिक का मंत्र पंद्रह फरवरी के हस्तक्षेप अंक में आपने प्रकाशकों, लेखकों और प्रोफेसरों का करुण रुदन छापा है। पुस्तक का प्रकाशन और बिक्री, दोनों किसी तांत्रिक का मंत्र हैं। आज खासकर बिहार में पुस्तक खरीद कर पढ़ने वालों की संख्या बढ़ी है। प्रकाशन एवं प्रकाशकों की संख्या में इजाफा हुआ है। अलबत्ता, बुद्धिजीवियों में पुस्तक खरीद कर पढ़ने वालों की संख्या में कमी जरूर हुई है। प्रकाशकों को चाहिए कि पतली और कम कीमत की पुस्तकें भी छापें ताकि जन-सामान्य उन्हें पढ़ सकें। साथ ही, पठनीयता, सामग्री व शुद्धता का भी ध्यान प्रकाशकों को रखना होगा।
डॉ. रणजीत कुमार ‘दिनकर’
व्याख्याता,
हिंदी, आरपीसीइवि.
बेलवाघाट, वैशाली (बिहार)
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