फीचर सामाजिक न्याय दीपक राजदा*
साभार सचित्र |
भारत में 2001 की जनगणना के अनुसार विभिन्न प्रकार के विशेष रूप से सक्षम (विकलांग) व्यक्तियों की संख्या 2.2 करोड़ है। सरकार ने इन्हें समाज के साथ पूरी तरह से एकीकृत करने के लिए कानून बनाने सहित अनेक प्रकार के उपाय किए हैं। इन उपायों का असर जीवन के हर क्षेत्र में दिखाई देता है और इनके अनुसार भले ही वह अपनी सामान्य ज़िम्मेदारियाँ निभाते जान पड़ें, लेकिन वह औरों से बेहतर करने की कोशिश करते हैं। सरकार लगातार जरूरी उपाय कर रही है। इनमें व्यापक मानव अधिकारों का समावेश शामिल है जिसे विकलांगता विधेयक कहा गया है और इस कानून का मसौदा संसद में पेश करने किए जाने के लिए विचाराधीन है।
जिन राज्यों में विशेष रूप से सक्षम (विकलांगों) की संख्या सबसे ज्यादा है उनमें सबसे पहला नाम है उत्तर प्रदेश का, जहां 34.53 लाख लोग इस वर्ग के हैं। दूसरे और तीसरे नम्बर पर बिहार और पश्चिम बंगाल का नाम है जहां इस वर्ग के 18-18 लाख लोग है। तमिलनाडु में 16 लाख, महाराष्ट्र में 15 लाख से ज्यादा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में 14-14 लाख से अधिक इस वर्ग के लोगों की संख्या है। 2001 की जनगणना के अनुसार इस वर्ग के 49 प्रतिशत लोग साक्षर हैं और 34 प्रतिशत लोगों को रोजगार मिला हुआ है। कुल मिलाकर 1 करोड़ से ज्यादा लोग दृष्टि संबंधी विकलांगता से पीड़ित हैं जबकि देश में 12.61 लाख लोग श्रवण शक्ति से और 61 लाख व्यक्ति हाथ-पैरों से विकलांग हैं। एनएसएसओ के 2002 के सर्वेक्षण के अनुसार विशेष रूप से सक्षम 75 प्रतिशत व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं।
इस वर्ग के लोगों की कल्याण योजनाओं का प्रभार सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्रालय के पास है। वही इन योजनाओं की जिम्मेदारी संभालते हैं। सरकार ऐसी योजना बना रही है कि इन सभी योजनाओं को एक केंद्र प्रायोजित राष्ट्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत लाया जा सके ताकि इन स्कीमों का बेहतर ढंग से प्रशासन हो सके। इनके लिए अधिक धन आवंटित करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
वर्ष 2011-12 में मंत्रालय के विकलांगता प्रभाग को रुपये 480 करोड़ आवंटित किए गए। इस प्रभाग द्वारा चलाई गई स्कीमों में शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक पुनर्वास तथा लाभार्थियों का विकास और उनका रहन-सहन बेहतर बनाना शामिल है। हालांकि 12वीं योजना अभी तैयार नहीं है, योजना आयोग ने योजना के पहले वर्ष (2012-13) के लिए कुछ धनराशि आवंटित की है। इसमें 33 करोड़ रूपये मैट्रिक बाद के छात्रों को छात्रवृत्ति देने के लिए और 12 करोड़ रूपये विकलांगों को एमफि ल और पीएचडी पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए राजीव गांधी राष्ट्रीय फेलोशिप योजना के तहत छात्रवृत्ति देने के लिए रखे गए हैं।
सरकार ने वर्ष 2006 में विकलांग व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय नीति घोषित की थी। इसमें ऐसे व्यक्तियों केा देश के लिए बहुमूल्य मानव संसाधन स्रोत के रूप में मान्यता दी गई जो अगर ठीक से प्रशिक्षित किए जा सकें, तो बेहतर जीवन बिता सकते हैं। इसके लिए मंत्रालय में है। विकलांगों के लिए मुख्य आयुक्त की नियुक्ति की गई है जो नियमों के और आदेशों के उल्लंघन की शिकायतें सुनते हैं। विकलांगता के क्षेत्र में काम करने के लिए 7 राष्ट्रीय स्तर के संस्थान खोले गए। ये संस्थान विकलांगता के विभिन्न क्षेत्रों के लिए काम करते है और अपने-अपने क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास का काम संभालते हैं। पिछले वित्त वर्ष के दौरान इन्हें 34 करोड़ रूपये की वित्तीय सहायता दी गई जबकि बजट परिव्यय पूरे वर्ष के लिए 60 करोड़ रूपये रखा गया था।
दीनदयाल विकलांग पुनर्वास स्कीम के अंतर्गत स्वयं सेवी संगठन श्रवण और नेत्रबाधित विकलांगों के लिए विशेष विद्यालय चला रहे है। वर्ष के दौरान 2.50 लाख व्यक्तियों को लाभ पहुंचाने का लक्ष्य था। जिला स्तर पर इस काम के लिए मूल सुविधाएं जुटाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार नौंवी योजना से भी राज्यों को जिला विकलांगाता पुनर्वास केंद्र खोलने को प्रोत्साहित करती रही है। पिछले 2 वर्षों में 100 ऐसे केंद्र खोले जाने का प्रस्ताव था। इस समय देशभर में 215 जिला विकलांग पुनर्वास केंद्र चल रहे हैं। 2009-10 में सरकार ने दूसरे चरण में समावेशी विकलांग शिक्षा की शुरूआत की। ऐसे बच्चों को प्राथमिक स्तर पर सर्वशिक्षा अभियान के अंतर्गत समावेशी शिक्षा दी जाती है लेकिन इस स्कीम में कक्षा 9 से 12 तक सरकारी, स्थानीय निकायों और सरकार से सहायता पाने वाले विद्यालयों में समावेशी शिक्षा के लिए 100 प्रतिशत केंद्रीय सहायता दी जाती है।
विकलांग कल्याण की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए सरकार ने विकलांग मामलों का एक अलग विभाग सृजित करने का सिद्धांत रूप में फैसला किया है। संसद को सूचना देते हुए सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्री श्री मुकुल वासनिक ने कहा कि यह विभाग मंत्रालय के अंतर्गत काम करेगा और इसके लिए नियमों को संशोधित करने की प्रक्रिया चल रही है। विकलांग व्यक्तियों को विमान यात्रा की सुविधा देने के लिए सरकार ने एक समिति गठित की है। यह कहने की जरूरत नहीं कि विशेष रूप से सक्षम इन व्यक्तियों को रेलवे स्टेशनों और बस टर्मिनलों पर कुछ खास सुविधाओं की जरूरत पड़ती है। रेलवे बोर्ड ने इन व्यक्तियों के लिए एक अलग योजना तैयार की है जिसके अंतर्गत विशेष रूप से सक्षम ऐसे व्यक्ति रियायती दरों पर ऑनलाइन टिकट बुक करा सकेंगे। उन्हें खास प्रकार का एक नंबर देकर पहचान पत्र जारी करने का भी प्रस्ताव है जिससे उन्हें कम्पयूटर के जरिए रेल रिज़र्वेशन में सुविधा होगी। दिन-प्रतिदिन का जीवन आसान बनाने के लिए सामाजिक न्याय मंत्रालय इन व्यक्तियों के उपयुक्त टेक्नॉलोजी के विकास को प्रोत्साहन दे रहा है। इसके लिए मंत्रालय ने अपनी खुद की वेब् साइट तैयार की है जो सभी के लिए खुली होगी। इस वर्ष जनवरी में देहरादून में एक ऑनलाइन ब्रेल लाइब्रेरी खोली गई है। इसमें उपलब्ध पुस्तकें देश में कहीं भी पढ़ी जा सकेंगी।
विशेष रूप से सक्षम इन व्यक्तियों की रोजगार पाने में सहायता देने के उद्देश्य से 1995 में बनाये गये अधिनियम की धारा 33 में प्रावधान किया गया है कि सरकारी नौकरियों में ऐसे व्यक्तियों को 3 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। इसमें से एक प्रतिशत उन लोगों के लिए होगा जो दृष्टि/श्रवणबाधित विकलांग हैं अथवा हाथ-पैर से विकल हैं। इन लोगों का चुनाव करके रिक्तियों को भरने का एक विशेष भर्ती अभियान चलाया गया है। 69 मंत्रालयों और विभागों से मिली सूचनाओं के अनुसार केंद्र सरकार के अंतर्गत 1 जनवरी, 2008 को ऐसी 11,134 रिक्तियां थी।
विकलांग जनसंख्या के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ने के बावजूद वर्ष 2012-13 में सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्रालय के लिए रूपये 5,915 का योजना परिव्यय रखा गया जो भारत सरकार के सारे मंत्रालयों और विभागों के बजट के मात्र 1.512 प्रतिशत के बराबर है। मंत्रालय की विभिन्न ज़िम्मेदारियों को देखते हुए योजना आयोग ने 12वीं योजना के दौरान ऐसे व्यक्तियों के कल्याण के लिए 1 लाख करोड़ के परिव्यय की सिफारिश की है। इसमें से रुपये 24,000 करोड़ सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्रालय के जरिए खर्च किया जाएगा और बाकी राशि अन्य मंत्रालयों द्वारा इस्तेमाल की जायेगी।
मई 2008 से लागू विकलांगों के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा किए गए प्रावधानों के अंतर्गत इन व्यक्तियों को समानता का अधिकार दिया गया है और इनके साथ किसी प्रकार का भेदभाव करना मना है। इसके लिए एक कानून का मसौदा तैयार किया गया है जिसमें विकलांगों को पक्षपात रहित समानता की गारंटी मिलेगी। भारत के संविधान में सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त है भले ही इनमें विकलांगों की अलग से चर्चा न की गई हो। संविधान में जिस अधिकार की गारंटी दी गई है उसे ऐसे व्यक्तियों के लिए आत्मार्पित किए जाने की जरूरत है। (पीआईबी फीचर्स)
***
*लेखक वरिष्ठ पत्रकार है
दावाअस्वीकरण- इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और यह जरूरी नहीं कि पीआईबी उनसे
17-मई-2012 15:06 IST
सहमत हो।
पूरी सूची- 17/05/2012
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें