मंगलवार, 17 जून 2014

हनीमून के दौरान पत्‍नी का सेक्‍स से इंकार, अत्‍याचार नहीं


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बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि हनीमून के दौरान जीवन साथी का शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना किसी प्रकार का अत्याचार नहीं है। कोर्ट ने इसके साथ ही इस आधार पर एक दंपती की शादी को खत्म करने के संबंध में पारिवारिक न्यायालय के फैसले को भी खारिज कर दिया।
अदालत ने यह भी कहा कि यदि एक पत्नी शादी के तुरंत बाद कभी-कभार कमीज और पैंट पहनकर ऑफिस जाती है और ऑफिस के काम के संबंध में शहर जाती है तो यह उसके पति के प्रति उसका अत्याचार नहीं है।

जज वी. के. ताहिलरमानी और पी. एन. देशमुख ने दिए गए अपने फैसले में कहा, ‘शादीशुदा जिंदगी का संपूर्णता में आकलन किया जाना चाहिए। एक खास अवधि में इक्का-दुक्का घटनाएं अत्याचार नहीं मानी जाएंगी।’ बेंच ने कहा कि बुरे व्यवहार को लंबी अवधि में देखा जाना चाहिए जहां किसी दंपत्ति में से एक के व्यवहार और गतिविधियों के कारण रिश्ते इस सीमा तक खराब हो गए हों कि दूसरे पक्ष को उसके साथ जिंदगी बिताना बेहद मुश्किल लगे और यह मानसिक क्रूरता के बराबर हो।

बेंच ने आगे कहा, ‘केवल चिड़चिड़ाहट, झगड़ा और सभी परिवारों में आए दिन होने वाली सामान्य छोटी मोटी घटनाएं शादीशुदा जिंदगी में होने मात्र से अत्याचार के आधार को तलाक देने के लिए पर्याप्त नहीं माना जा सकता ।’

अदालत 29 साल की विवाहिता द्वारा दाखिल अपील पर सुनवाई कर रही थी जो दिसंबर 2012 के पारिवारिक न्यायालय के आदेश से परेशान थी। पारिवारिक न्यायालय ने क्रूरता के आधार पर उसके पति द्वारा की गई अपील पर तलाक का आदेश दिया था।

मामले के मुताबिक, ‘साल 2009 में विवाह के बाद यह दंपती हनीमून के लिए महाबालेश्वर हिल स्टेशन गया था। पति ने शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश की लेकिन पत्नी ने उसे ऐसा नहीं करने दिया। पति के मुताबिक, ‘यह अत्याचार के समान है।’ उसके वकील हेमंत घडीगांवकर ने तर्क दिया कि एक पक्ष द्वारा वैवाहिक जीवन के जरूरी दायित्वों का निर्वहन करने में विफल रहना दूसरे पक्ष के लिए अत्याचार के समान है.
वैवाहिक जीवन में एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष की यौन इच्छाओं को संतुष्ट करना जरुरी और सैद्धांतिक दायित्व है जो कि एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है। उधर पत्नी के वकील पंकज शिंदे ने कहा कि पत्नी के सबूत साफ दर्शाते हैं कि उस समय वह माहवारी से गुजर रही थी और इसलिए उसने अपने पति को सेक्स की अनुमति नहीं दी। शिंदे ने आगे कहा कि उन चार दिनों के अलावा, ‘जब वे महाबलेश्वर हनीमून के लिए गए थे, उसके पति ने यह आरोप नहीं लगाए कि उसकी पत्नी ने उसके बाद भी उसके साथ सेक्स से इनकार करना जारी रखा।

अत्याचार के अपने आरोपों को सही साबित करने के लिए पति ने यह भी आरोप लगाया कि उसकी पत्नी का उसके और उसके माता-पिता के साथ झगडा होता रहता था। उसने कभी उसके माता पिता की इज्जत नहीं की। बेंच ने कहा कि अभी तक जो भी आरोप लगाए गए हैं उनमें कोई तथ्य नहीं है और वे अस्पष्ट और सामान्य से आरोप हैं। इसलिए अदालत की नजर में पत्नी द्वारा पति पर अत्याचार किए जाने की बात साबित नहीं होती।

पति ने यह भी आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी शादी के 45 दिन बाद ऑफिस के काम से नासिक गई जबकि उसने उससे नहीं जाने की अपील की थी। अदालत ने हालांकि कहा कि यदि पत्नी कामकाजी है तो ऑफिस के काम से जाना उसके लिए जरुरी है। उसके नासिक जाने में कुछ गलत नही है। इसलिए इसे अत्याचार नहीं कहा जा सकता।

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