पुण्य प्रसून बाजपेयी
नरेन्द्र मोदी गुजरात के बाहर यूपी में चुनाव लड़ेंगे कहां से। इस पर फैसला बीजेपी या मोदी नहीं बल्कि संघ परिवार करेगा। यानी यूपी में जिन दो लोकसभा सीटों को लेकर लगातार कयास भी लगाये जा रहे हैं कि मोदी बनारस या लखनऊ से। तो इस पर आखिरी मुहर अगले दो दिनों में संघ लगायेगा। और एलान दिल्ली में 8 मार्च को संसदीय बोर्ड में होगा।
जानकारी के मुताबिक बेंगलूरु में आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा कल से शुरु हो रही है। लेकिन बीते तीन दिनो से संघ के सभी प्रमुख बेगलूर पहुंच चुके हैं। और बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह को भी बुलाया गया है। जानकारी के मुताबिक राजनाथ के साथ बैठक में ही संघ मोदी के चुनाव लड़ने वाली सीट पर मुहर लगायेगा। क्योंकि बनारस या लखनऊ को लेकर बीजेपी के सामने उलझन यह है कि बीजेपी के लिये सेफ और प्रतिष्ठित सीट दो है लेकिन इसपर चुनाव लड़ने वाले तीन उम्मीदवार हैं।
मुश्किल यह है कि राजनाथ खुद लखनऊ से लड़ना चाहते हैं। और मुरली मनमोहर जोशी बनारस की सीट छोड़ना नहीं चाहते है। ऐसे में मोदी चुनाव लड़ें कहां से उलझन यही हो गयी है। बनारस की सीट को लोकर सबसे बड़ी उलझन यह है कि मुरली मनमोहर जोशी की पैठ संघ के भीतक खासी है और संघ के भीतर से ही अब यह आवाज आ रही है कि जोशी जी को नाराज करके कोई फैसला लिया नहीं जा सकता। और सीट बदलने के हालात में देरी भी काफी हो गयी है।
वहीं राजनाथ सिंह लखनऊ से चुनाव लडना चाहते हैं। और राजनाथ की मुश्किल यह है कि संघ मुरली मनमोहर जोशी को नाराज करना नहीं चाहता है। और विकल्प के तौर पर अगर लखनऊ सीट से मोदी के लड़ने पर मुहर लगाता है तो राजनाथ के सामने दोबारा गाजियाबाद से चुनाव लडने के अलावा कोई विकल्प बचेगा नहीं। जो राजनाथ चाहते नहीं है।
असल में बीजेपी के बडे नेताओं के टकराव ने ही संघ को मजबूर किया है कि मोदी चुनाव कहां से लड़ें इस पर वह फैसला लें। इतना ही नहीं दिल्ली की सातों सीट से लेकर यूपी की 30 से ज्यादा सीटों पर भी बीजेपी का कौन सा उम्मीदवार मैदान में उतरे, इस पर आखिरी मुहर संघ की तरफ से ही लगेगी। यानी 8 मार्च को दिल्ली में मोदी की अगुवाई में होने वाली सीईसी बैठक हो या संसदीय बोर्ड उसमें सिर्फ औपचारिक तौर पर संघ के दिये नामों पर ही हस्ताक्षर किये जायेंगे।
असल में संघ की तरफ से जिन्हें मोदी के चुनाव लडने पर मुहर लगानी है, उसमें सरसंघचालक मोहन भागवत, सरसह कार्यवाहक भैयाजी जोशी और यूपी के प्रभारी कृष्ण गोपाल, राजनीतिक मामलों के देखने वाले सुरेश सोनी और संघ की तरफ से बीजेपी के कामकाज को देख रहे रामलाल हैं। रामलाल को छोड़ दें तो बाकी सभी प्रमुख स्वयंसेवक 3 मार्च को ही बेंगलूर पहुंच चुके हैं। और लगातार चर्चा के केन्द्र चुनाव को लेकर संघ परिवार की भूमिका ही है। असल में पहली बार आरएसएस 2014 के लोकसभा चुनाव को लेकर ना सिर्फ रुचि दिखा रहा है बल्कि संघ के स्वयंसेवकों की भागेदारी चुनाव में कैसे हो इसपर खास ध्यान दे रही है। और उसी अनुसार संघ के पारंपरिक कार्यक्रम तक को बदल रहा है। पहली बार चुनाव कार्यक्रम को देखकर संघ शिक्षा वर्ग की बैठकें तय की जा रही हैं। पहली बार नागपुर में तृतिया वर्ष के शिक्षा वर्ग की तारीखों को चुनाव परिणामो के बाद रखा जा रहा है। पहली बार -हर स्वयंसेवक को बूथ तक ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाने की जिम्मेदारी दी गयी है। और पहली बार संघ की सालाना प्रतिनिधि सभा में संध के विस्तार कार्यक्रम को मोदी की ताजपोशी से जोड़ा जा रहा है। यानी जो आरएसस दो बरस पहले तक बीजेपी के साथ किसी भी सीधे जुडाव से इंकार करता था वही संघ अब बदल चुका है और राजनीति का ककहरा बीजेपी को पढ़ा रहा है। संघ के ही राजनीतिक ककहरे का प्रभाव है कि बीजेपी एक बूथ, दस यूथ का खाका बनाकर काम कर रही है । और पहली बार किस तरह हर बूथ से दस युवाओं को जोड़ा जाये इसके लिये ट्रेनिंग भी संघ ही दे रहा है । सुरेश सोनी और रामलाल के जरीये नरेन्द्र मोदी से लेकर राजनात सिंह और अमित शाह तक को बताया गया कि कैसे एक बूथ, दस यूथ के जरीये देश बर में ढाई करोड युवाओ को जोडा जा सकता है । असल में युवाओ को जोडने की राजनीतिक क्लास भी प्रतिनिधी सभा तमाम संगठनो के पु्मुखो को दे रही है और इसका एहसास भी संघ की प्रतिनिधी सभा कराया जा रहा है कि 2009 की तुलना में 10 करोड से ज्यादा वोटर 2014 के वोटर लिस्ट में है । यानी 2009 में बीजेपी को सिर्फ साढे आठ करोड वोट मिले थे और सत्ता में आयी काग्रेस को भी साढे ग्यारह करोड वोट ही मिले थे । तो दस करोड से ज्यादा नये वोटरो को लियेक बीजेपी की रणनीति है क्या और संघ इसमें पहल कैसे करेगा इसका पाठ भी राजनाथ की मौजूदगी में संघ ही पढ़ायेगा।
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