काँग्रेस के “बुरे” फ़ैसले और भाजपा के “कड़े” फ़ैसले में क्या फ़र्क़ है?
काँग्रेस करे तो “बुरा” फ़ैसला और भाजपा करे तो “बड़ा” फ़ैसला? काँग्रेस करे तो “कूड़ा” फ़ैसला और भाजपा करे तो “कड़ा” फ़ैसला? नई सरकार को वक़्त दिया जाना चाहिए, इस बात पर न किसी को एतराज हो सकता है, न मुझे है। मेरा एतराज तो भाजपा के दोमुँहेपन से है। इस दोमुँहेपन का चरित्र आम आदमी पार्टी के दोमुँहेपन से ज़्यादा अलग नहीं है।
जिस तरह से दूसरों को पानी पी-पीकर चोर, भ्रष्ट, बेईमान कहने वाले केजरीवाल को अपने मंत्री सोमनाथ भारती में कोई ऐब नहीं दिखाई देता था, ठीक उसी तरह एक साल में संसद को दागियों से मुक्त करने का वादा करने वाले प्रधानमंत्री मोदी अपने मंत्री निहालचंद को रेप मामले की जाँच पूरी होने तक हटाने की नैतिकता नहीं दिखा पा रहे हैं।
जिस तरह से केजरीवाल ने अपनी व्यक्तिगत पसंद-नापसंद की बुनियाद पर राखी बिड़लान जैसी अपरिपक्वों को अपना मंत्री बना लिया, ठीक उसी तरह प्रधानमंत्री मोदी ने स्मृति इरानी को पार्टी में ढेर सारे योग्य लोगों के रहते हुए भी सीधा मानव संसाधन विकास मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बना दिया।
जिस तरह केजरीवाल ने काँग्रेस की सरकार को पानी पी-पीकर कोसा और उसी के समर्थन से सरकार बना ली, ठीक उसी तरह से काँग्रेस की सरकार के जिन फ़ैसलों और नीतियों के लिए भाजपा ने उसकी नाक में दम कर रखा था, अब देशहित और अर्थव्यवस्था की ज़रूरत की दुहाई देकर उसी को अपनाती हुई दिखाई दे रही है।
मोदी जी ने चुनाव-पूर्व अपने तमाम साक्षात्कारों में कहा था कि वह पीछे की बात नहीं करेंगे, आगे की बात करेंगे,लेकिन अब वे और उनके लोग बार-बार पिछली सरकार से मिली विरासत का रोना रो रहे हैं। यह बात कुछ दिन और महीने तक लोग सहानुभूतिपूर्वक सुनेंगे भी, लेकिन उसके बाद जब सुनेंगे, तो अपना सिर धुनेंगे।
क्या मोदी सरकार यह समझ पाएगी कि मनमोहन वाली “नई आर्थिक नीति” अब पुरानी हो चुकी है और देश को अब “समग्र आर्थिक नीति” की ज़रूरत है? ऐसी आर्थिक नीति की, जिसमें हाशिये पर पड़े आदमी और पर्यावरण की चिंता प्रथम हो। कोई आदमी भूखा न रहे, कोई बीमार इलाज न मिल पाने से न मरे, कोई किसान क़र्ज़ से दबकर आत्महत्या न करे।
मोदी सरकार अगर ग़रीबों और मध्यवर्गीय लोगों को दी जाने वाली मामूली सब्सिडी ख़त्म करना चाहती है तो करे, लेकिन इंसाफ़ और तर्क के तक़ाज़े से क्या इससे पहले वह बड़े-बड़े कॉरपोरेट्स को दी जाने वाली भारी टैक्स छूट और सब्सिडी ख़त्म कर पाएगी? क्या उनकी टैक्स चोरी और कर्ज़ हड़प कर जाने पर रोक लगा पाएगी?
अगर हाँ, तो हम उसके साथ हैं। अगर नहीं, तो “सबका साथ, सबका विकास” का उसका नारा झूठा है। वह काँग्रेस सरकार की क्लोन है। काँग्रेस सरकार की कार्बन कॉपी है। काँग्रेस सरकार की एक्सटेंशन है। पूँजीपतियों की पादुका-पूजक और ग़रीबों-शोषितों-वंचितों-मज़दूरों-किसानों-मध्यवर्गीय लोगों की जेबकतरी है। हम नहीं हैं भ्रम में!
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