आज गन्ने की खेती करने वाले एक किसान से भेंट हुई। उनका कहना था कि इस बार चीनी मिल मालिक सही समय पर मिल चालू करने से मना कर रहे हैं। पिछले साल भी देर से मिल चलने के कारण खेत खाली नहीं हुआ, इसलिए गेंहूँ की बुआई समय से नहीं हो पाई थी। मिल मालिकों ने गन्ने का पेमेंट भी समय से नहीं किया। सरकार से ढेर सारी सहूलियतें मिलने के बावजूद अभी तक चीनी मिलों पर किसानों का हजारों करोड़ रूपए बकाया है। अपना पैसा पाने के लिए हम अदालतों का मुँह देखने और पुलिस की लाठी खाने को मजबूर हैं।इस बार सरकार ने गन्ने का भाव 220 रुपए प्रति क्विंटल तय किया है जो पिछले साल से काफी कम है। भाजपा ने चुनाव के समय वादा किया था कि सरकार
दिगंबर, लेखक जाने-माने वामपंथी विचारक हैं।
बनी तो वह किसानों की फसल की कीमत कुल लागत पर पचास फीसदी लाभ जोड़ कर दिलाएगी। इस हिसाब से गन्ने की कीमत 400 रुपए प्रति क्विंटल से कम नहीं होना चाहिए।220 रुपए में तो खर्च भी पूरा नहीं पड़ेगा। लागत खर्च लगातार बढ़ रहा है, फसल का दाम घट रहा है। इसीलिए क़र्ज़ में डूबे किसान आत्महत्या कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जो लोग गन्ने की कीमत तय करते हैं, उनको पहले नंगे बदन गन्ने के खेत में दौड़ाना चाहिए और ज्यादा नहीं तो सिर्फ एक क्विंटल तैयार गन्ने की फसल काट कर और छील कर उसे चीनी मिल के गेट तक पहुँचाने की ज़िम्मेदारी देनी चाहिए। तभी उनको गन्ने की कीमत का कुछ अंदाज़ा लग पायेगा। उनका यह भी कहना था कि लाखों रूपए तनख्वाह पाने वालों का वेतन-भत्ता जब किसान तय नहीं करते, तो वे हमारी फसल का दाम तय करने वाले कौन होते हैं। चीनी मिल मालिकों और किसानों के बीच की रस्साकशी में हमारे लोकतंत्र का हर स्तम्भ चीनी मिल मालिकों के पाले में खड़ा है। किसान हतप्रभ हैं, भीतर-भीतर सुलग रहे हैं।