सूचना के अधिकार क़ानून की धारा-7 में सूचना मांगने के लिए शुल्क की बात की गई है. धारा-7 की उप धारा-1 में लिखा गया है कि यह फीस सरकार द्वारा निर्धारित की जाएगी. इसमें स्पष्ट किया गया है कि आवेदन करने से लेकर फोटोकॉपी आदि के लिए कितनी फीस ली जाएगी. देश के सभी राज्यों में अथवा केंद्र में सरकारों ने फीस नियामवाली बनाई हैं और इसमें आवेदन के लिए कहीं 10 रुपये शुल्क रखा गया है, तो कहीं 50 रुपये. इसी तरह दस्तावेज़ों की फोटोकॉपी लेने के लिए भी 2 रुपये से 5 रुपये तक की फीस अलग-अलग राज्यों में मिलती है.
इसके लिए किसी लोक सूचना अधिकारी को यह अधिकार क़तई नहीं दिया गया है कि वह मनमाने तरी़के से फीस की गणना करे और आवेदक पर मोटी रक़म जमा कराने के लिए दबाव डाले. लेकिन इस क़ानून के बनने से लेकर अभी तक ऐसे कई मामले सामने आए, जिसमें लोक सूचना अधिकारियों की मनमानी देखने को मिली. ऐसे ही कुछ उदाहरणों पर एक नज़र.
दिल्ली पुलिस ने 13949 रुपये मांगे
चोरी हुए मोबाइलों के बारे में सूचना मांगने पर सामाजिक कार्यकर्ता सुबोध जैन से पुलिस उपायुक्त (पश्चिम) ने पत्र के माध्यम से 13949 रुपये जमा कराने को कहा. सुबोध ने दिल्ली पुलिस से 10 ज़िलों से चोरी हुए मोबाइल, प्राप्त हुए मोबाइल आदि के बारे में जानकारी चाही थी. इसके लिए उन्होंने पुलिस मुख्यालय में आवेदन दाख़िल किया, जिसे सभी ज़िलों के डीसीपी के यहां प्रेषित कर दिया गया. पुलिस का कहना था कि सूचनाओं को एकत्रित करने के लिए एक सब इंस्पेक्टर को दो दिन तक लगाया जाएगा जिसकी लागत 1546 आंकी गई है. साथ ही यह भी बताया कि दो हेड कांस्टेबलों को तीन दिन इसमें लगाया जाएगा और 13 कांस्टेबल इस काम में दो दिन के लिए लगाए जाएंगे. हेड कांस्टेबलों के लिए 1353 और कांस्टेबल के लिए 11050 रुपये जमा कराने को कहा गया.
78 लाख रुपये की सूचना
भोजपुर ज़िले के गुप्तेशवर सिंह से भोजपुर आपूर्ति अधिकारी ने आवेदन में मांगी गई सूचनाओं को उपलब्ध कराने के लिए 78 लाख 21 हज़ार 252 रुपये जमा करने को कहा. वह भी सूचना उपलब्ध कराने की 30 दिन की समय सीमा निकल जाने के बाद. गुप्तेश्वर सिंह ने 2000 से 2008 के बीच ज़िले के कुछ क्षेत्रों में जन वितरण प्रणाली के तहत वितरित किए गए अनाज और मिट्टी के तेल की जानकारी मांगी थी. आवेदन में डीलर के भुगतान रसीद की छायाप्रति भी मांगी गई थी.
आवेदन के जवाब में सूचना अधिकारी ने कहा-आपके द्वारा मांगी गई सूचनाएं विवरण के साथ तैयार हैं, लेकिन इसके लिए आपको पहले छायाप्रति शुल्क के रूप में 7821252 रुपये जमा करने होंगे. हालांकि बाद में सूचना आयोग में अपील करने के बाद मुफ्त में सूचना उपलब्ध कराने के आदेश दिए गए.
गुजरात वक़्फ़ बोर्ड ने 4.7 लाख रुपये मांगे
अहमदाबाद के हुसैन अरब द्वारा दायर आरटीआई आवेदन का जवाब देने के लिए राज्य के वक़्फ़ बोर्ड ने 474690 रुपये की मांग की. हुसैन अरब ने 6 फरवरी, 2007 को आवेदन दाख़िल कर बोर्ड पर लगे प्रशासनिक अनियमितताओं के आरोपों का ब्यौरा और गुजरात चैरिटी कमिश्नर द्वारा 2001 में पारित योजना को लागू न करने का कारण जानना चाहा था.
आवेदन में उन्होंने मुस्लिम ट्रस्ट के अधीन अहमदाबाद, सूरत और भरूच में संपत्तियों की जानकारी भी मांगी थी. सूचना के स्थान पर उन्हें वक़्फ़ बोर्ड के लोक सूचना अधिकारी ने सूचना हासिल करने के लिए उक्त राशि जमा करने को कहा.
झज्जर अस्पताल में फोटोकॉपी शुल्क 4 लाख 92 हज़ार रुपये
हरियाणा के झज्जर अस्पताल के लोक सूचना अधिकारी ने आवेदक नरेश जून द्वारा दायर आरटीआई आवेदन का 5 महीने बाद जवाब दिया, जिसमें कहा गया कि आवेदक सूचनाएं हासिल करने के लिए 4 लाख, 92 हज़ार 100 रुपये अतिरिक्त शुल्क के रूप में जमा करा दे. नरेश जून ने आवेदन में मेडिकल लीगल सर्टिफिकेट (एमएलसी) की सूचनाएं मांगी थीं, जिसमें भारी मात्रा में घोटाले का अंदेशा था. आयोग के हस्तक्षेप के बाद जानकारी मिली जिससे स्पष्ट हो गया कि एमएलसी शुल्क के रूप में जो राशि वसूली जाती है, उसमें करोड़ों का घोटाला हुआ है. शुल्क के रूप में वसूली गई राशि की कैश बुक में प्रविष्टि नहीं होती थी. नरेश जून को इन सूचनाओं को हासिल करने के लिए जेल तक जाना पड़ा और उनके ख़िलाफ़ झूठा मामला तक दर्ज किया गया.
सुल्तानपुर ज़िला कार्यक्रम कार्यालय ने 70 लाख रुपये मांगे
सूचना के अधिकार के तहत सुल्तानपुर के आइमा गांव में रहने वाले रमाकांत पांडे को सूचना तो नहीं मिली, उल्टे 70 लाख रुपये जमा करने का पत्र ज़रूर मिल गया था. रमाकांत ने ज़िला कार्यक्रम अधिकारी के पूरे कार्यकाल के आवागमन (भ्रमण पंजिका), जनपद में संचालित आंगनवाड़ी केंद्रों की सूची, केंद्र से छात्रों को शासन द्वारा निर्धारित मानक, छात्रों की भौतिक सत्यापन की रिपोर्ट के साथ-साथ कई और जानकारियां मांगी थीं. निर्धारित 30 दिन बीत जाने के बाद प्रथम अपील दाख़िल की गई. जवाब में सूचना के लिए निर्धारित शुल्क जमा कराने की बात कही गई. इसके बाद 70 लाख रुपये जमा करने की जानकारी देने वाले पत्र को देखकर रमाकांत हक्के-बक्के रह गए. ज़िला कार्यक्रम अधिकारी के कार्यालय के पत्र के अनुसार, मांगी गई सूचनाओं को ब्यौरा देते हुए लिखा गया कि लाभार्थियों की संख्या 519034 और अन्य नाम पते विवरण आदि देने में अनुमानित व्यय 77 लाख 85 हज़ार 510 रुपये लगाते हुए उनसे 78 लाख 14 हज़ार 245 रुपये जमा कराने को कहा गया था. पत्र में यह भी कहा गया कि धनराशि का अग्रिम 90 प्रतिशत (70 लाख 32 हज़ार 820 रुपये) पत्र प्राप्ति के एक सप्ताह के भीतर जमा करने पर सूचनाओं के तैयार करने संबंधी कारवाई शुरू की जाएगी.
औरंगाबाद में सूचना देने के लिए 50 हज़ार रुपये मांगे
औरंगाबाद के सदर अनुमंडल, राजस्व के लोक सूचना अधिकारी से राशन और तेल आपूर्ति के संबंध में जानकारी मांगने पर नवल किशोर प्रसाद से 49974 रुपये की मांग की गई थी. वह भी आरटीआई आवेदन दाख़िल करने के 30 दिन बाद. अप्रैल 2008 में जनहित में दायर इस आवेदन में नवल ने माहवार वितरित किए गए तेल और राशन आदि का ब्यौरा मांगा था. सूचना हेतु मांगी गई राशि की वजह 24984 पेजों की सूचना बताई गई.
बरगढ़ में सिंचाई परियोजना की जानकारी 30 हज़ार की
ओडिसा के बरगढ़ ज़िले के तुकुरला गांव के सहदेव मेहर ने एक लघु सिंचाई परियोजना के बारे में ज़िला मुख्यालय से जानकारी मांगी तो क़रीब सात महीने बाद मिले पत्र में कहा गया- सूचना चाहिए तो 30 हज़ार रुपये जमा करा दें. सहदेव ने आवेदन में परियोजना में ख़र्च की गई राशि, इसके अंतर्गत डूबी ज़मीन आदि के बारे में जानना चाहा था.