बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

अलागिरी के अलगाव की वजह


karunanidhi
दक्षिण भारतीय राजनीति एक बार फिर चर्चा में है. द्रविण मुनेत्र कषगम के प्रमुख एम करुणानिधि ने अपने बेटे एमके अलागिरी को पार्टी से निकाल दिया, तो अलागिरी विद्रोही तेवर अपनाते हुए अपनी ही पार्टी को निपटाने और पार्टी के भीतर व्याप्त भ्रष्टाचार की कलई खोलने की घोषणा कर रहे हैं. वास्तव में यह राजनीतिक उलटफेर कई सवाल खड़े करता है. आख़िर अपने ही पिता और अपनी ही पार्टी के ख़िलाफ़ अलागिरी क्यों उतर आए हैं? सवाल यह भी है कि अपने ही बेटे को आख़िर करुणानिधि पार्टी से क्यों निकाल रहे हैं. इन सभी सवालों का जवाब खोजने के लिए हमें पहले करुणानिधि के परिवार और द्रमुक की राजनीति को समझने की ज़रूरत है.


द्रमुक परिवार में चल रही राजनीतिक उत्तराधिकार की लड़ाई ढाई दशक पुरानी है. करुणानिधि ने चार शादियां की हैं. राज्य की विधानसभा और देश की संसद में कुल मिलाकर इस परिवार के 16 प्रतिनिधि होते हैं, जिनमें उनके पुत्र-पुत्रियां, दामाद, उनकी पत्नी की ओर के रिश्तेदार शामिल हैं. एमके अलागिरी एवं एमके स्टालिन एक ही मां दयालु अम्मल के बेटे हैं. दक्षिण और खासकर, इस परिवार की राजनीति को क़रीब से जानने वाले राजनीतिक विश्‍लेषक यह मानते हैं कि करुणानिधि अपने छोटे बेटे स्टालिन को शुरू से ही ज़्यादा प्यार करते थे. छोटे भाई के प्रति पिता का ज़्यादा प्यार बड़े बेटे अलागिरी को हमेशा खटकता था. थलपति (पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच एमके स्टालिन इसी नाम से लोकप्रिय हैं) न केवल पिता, बल्कि द्रमुक कार्यकर्ताओं के बीच भी अलागिरी की तुलना में ज़्यादा लोकप्रिय हैं. शायद यही वजह है कि करुणानिधि हमेशा चाहते रहे कि स्टालिन ही उनका राजनीतिक उत्तराधिकारी बने. लेकिन उनके सामने भी वही समस्या थी, जो उत्तराधिकार को लेकर दूसरे राजनीतिक परिवारों में दिखाई देती है. पहले भी ऐसा देखा गया है कि राजनीतिक दिग्गजों के परिवारों में उत्तराधिकार को लेकर बंटवारे हुए हैं. हरियाणा में ऐसी ही मुश्किलें चौधरी देवीलाल को आई थीं, जिन्हें अपने बेटे रणजीत सिंह और ओम प्रकाश में से किसी योग्य को अपनी विरासत सौंपनी थी. ऐसी ही दिक्कत कुछ दिनों बाद ओम प्रकाश चौटाला को आएगी, क्योंकि उनके भी दो बेटे अजय और अभय हैं. हरियाणा में ही भजन लाल और बंसी लाल भी ऐसी ही मुश्किलों से दो-चार हो चुके हैं. महाराष्ट्र में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे को भी कमोबेश ऐसी ही समस्या का सामना करना पड़ा था, जब उन्होंने पार्टी की कमान अपने भतीजे के बजाय बेटे को सौंप दी, तो राज ठाकरे बगावत पर उतर आए और उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली. लालू प्रसाद यादव के सामने भी यह संकट है कि वह अपनी राजनीतिक कमान किसे दें, तेज प्रताप को या तेजस्वी को.
बहरहाल, अलागिरी किसी भी क़ीमत पर नहीं चाहते थे कि उत्तराधिकार स्टालिन को मिले, इसीलिए उन्होंने हर उस आवाज़ को दबाने की कोशिश की, जो स्टालिन के पक्ष में जा रही थी. करुणानिधि के भतीजे दिवंगत मुरासोली मारन के अख़बार दिनाकरन ने 2007 में एक सर्वे छापा, जिसके मुताबिक, करुणानिधि के उत्तराधिकारी के रूप में जनता की पहली पसंद स्टालिन थे. इससे नाराज होकर अलागिरी समर्थकों ने अख़बार के दफ्तर पर हमला कर दिया, जिसमें कई लोग मारे भी गए. इस घटना के बाद करुणानिधि और मारन परिवार के संबंध भी काफी खराब हुए. दयानिधि मारन को उन्होंने संचार मंत्रालय से हटवा दिया और उनकी जगह ए राजा को मंत्री बनाया. इस घटना के बाद करुणानिधि ने कलानिधि मारन से बात करना भी बंद कर दिया.
एक सवाल यह भी है कि आख़िर करुणानिधि स्टालिन और अलागिरी में स्टालिन को ही ज़्यादा क्यों पसंद करते हैं. करुणानिधि स्टालिन की सांगठनिक क्षमता के हमेशा ही कायल रहे हैं. ऐसा कहा जाता है कि अपने बड़बोलेपन के चलते अलागिरी कई बार राजनीतिक भूलें कर बैठते हैं, जबकि अपेक्षाकृत स्टालिन का पार्टी कैडर पर व्यापक नियंत्रण है. उनके नेतृत्व में अन्नाद्रमुक सरकार के ख़िलाफ़ तमिलनाडु में चलाया गया जेल भरो आंदोलन काफी सफल रहा था. यही वजह है कि 1990 के मध्य में करुणानिधि ने उन्हें (स्टालिन को) चेन्नई का मेयर बनाया और फिर पूर्ववर्ती द्रमुक सरकार के दौरान स्टालिन को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था. हालांकि, तब उत्तराधिकारी संबंधी किसी घोषणा से करुणानिधि ने परहेज किया था. बाद में परिस्थितियां ऐसी बनीं कि करुणानिधि के सामने एक विकल्प के तौर पर स्टालिन ही बचे, क्योंकि केंद्रीय मंत्री के रूप में एमके अलागिरी की पहचान एक निष्क्रिय मंत्री की थी और उनके बेटे दुरई दयानिधि करोड़ों रुपये के अवैध खनन के मामलों का सामना कर रहे थे. दूसरी ओर बेटी कनिमोझी 2जी मामले में अपनी साख गंवा चुकी हैं और मारन परिवार भी इस समय द्रमुक प्रमुख के ज़्यादा क़रीब नहीं नज़र आ रहा है. साथ ही पार्टी में भी ऐसा कोई चेहरा नहीं, जिसकी राज्य भर में धमक हो और वह अपने बलबूते चुनाव जिताने की क्षमता रखता हो.
करुणानिधि की घोषणा से पार्टी में विरोध का स्वर उनके बेटे अलागिरी ने ही उठाया है. उनके अलावा कोई और विरोध नहीं कर रहा है. इसकी भी वजह है. पार्टी के बाकी नेता पार्टी प्रमुख पद का सपना ही नहीं देखते, क्योंकि दल को पारिवारिक व्यवसाय की भांति जो चलाया जाता है. अलागिरी चूंकि परिवार से ही हैं और पार्टी प्रमुख पद पर अपना बराबर का हक़ समझते हैं, इसलिए उनके तेवर उग्र हैं. ठीक एक वर्ष पहले भी वह इसी बात को लेकर आक्रोशित हुए थे और उन्होंने केंद्रीय मंत्री एवं संगठन सचिव पद से इस्तीफा दे दिया था तथा कहा था कि द्रमुक कोई शंकराचार्य का मठ नहीं है, जहां उत्तराधिकारी की घोषणा करनी हो. 2जी मामले में भी दोनों भाइयों के बीच तब मतभेद साफ़ दिखाई दिए थे, जब कनिमोझी की गिरफ्तारी पर अलागिरी चुपचाप रहे, जबकि करुणानिधि और स्टालिन तिहाड़ जेल में कनिमोझी से कई बार मिलकर आए. अलागिरी ने तब पार्टी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने का भी ऐलान कर दिया था. इससे करुणानिधि तिलमिलाए भी, नाराज भी बहुत हुए थे, पर उनकी पत्नी दयालु अम्मल ने उन्हें समझाया कि फिलहाल वह ऐसा न करें, वरना दोनों बेटों के बीच टकराव बढ़ जाएगा. यही वजह है कि तब करुणानिधि मान गए थे और उन्होंने स्टालिन को उत्तराधिकारी बनाने की अपनी घोषणा फिलहाल स्थगित कर दी थी.
तब एक योजना के तहत करुणानिधि ने अलागिरी को चेन्नई से दूर रखने के लिए दक्षिणी तमिलनाडु में पार्टी को मजबूत करने की ज़िम्मेदारी सौंपी. इसके लिए उन्हें खास तौर से संगठन का सचिव बनाया गया, लेकिन अलागिरी की वहां भी नहीं चली. जब स्टालिन ने विजयकांत के साथ सीटों के तालमेल की बात करनी शुरू की, तो अलागिरी ने फिर उनका विरोध करना शुरू कर दिया. उन्हें लगा कि विजयकांत के साथ जाने से दक्षिण तमिलनाडु में उनका आधार साफ़ हो जाएगा. उन्हें इसमें अपने भाई स्टालिन की साजिश नज़र आई. लिहाजा इस गठबंधन को पलीता लगाने के लिए उन्होंने विजयकांत के ख़िलाफ़ फिर बयानबाजी शुरू कर दी. जवाब में विजयकांत ने कहा कि वह 2011 में ही द्रमुक के साथ तालमेल करने का मन बना चुके थे, पर अलागिरी के कारण उन्होंने अपना फैसला बदल दिया.
स्टालिन ऐसे ही एक मौके की तलाश में थे. उन्होंने पहले से ही अलागिरी के समर्थकों को तोड़ना शुरू कर दिया था और पार्टी की मदुरै इकाई भी भंग कर दी थी. अलागिरी की बयानबाजी के बाद अपनी बहन कनिमोझी के साथ उन्होंने करुणानिधि से मुलाकात करके कहा कि अब पानी सिर से गुजर रहा है. अगर लोकसभा चुनाव भी हार गए, तो अगली सरकार और ज़्यादा दिक्कतें पैदा करेगी. मालूम हो कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में ए. राजा एवं कनिमोझी, दोनों ही जेल जा चुके हैं और मामला अदालत में चल रहा है. अक्सर दोनों बेटों में समझौता कराने वाली दयालु अम्मल इन दिनों काफी बीमार चल रही हैं, इसलिए फिलहाल समझौते की कोई तस्वीर भी नज़र नहीं आई और करुणानिधि ने स्टालिन को अपना उत्तराधिकार सौंपने की घोषणा कर दी. अलागिरी के बगावती तेवर जारी हैं. उनका दावा है कि उनके पिता को गुमराह किया जा रहा है, लेकिन इसके जवाब में करुणानिधि का यह बयान भी समझ से परे हैं कि उन्होंने अलागिरी को पार्टी से इसलिए निकाला, क्योंकि उन्होंने कहा कि तीन महीने में स्टालिन की मौत हो जाएगी. भला एक बाप यह कैसे सुन सकता है.
जो भी हो, करुणानिधि ने जिस पारिवारिक राजनीतिक वटवृक्ष को मजबूती दे रखी थी, वह अब कमजोर पड़ रहा है. अब देखना यह है कि अलागिरी हर बार की तरह किसी ऑफर के साथ पार्टी में लौट आते हैं या फिर बगावत के साथ द्रमुक के लिए घातक साबित होते हैं.

चौथी दुनिया

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