बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

दस वर्षों के वादों का हिसाब चाहिए

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गत 29 जनवरी 2014 को कांग्रेस के झूठ की पोल एकबार और खुल गई जब केंद्र में कांगे्रस के नेतृत्ववाली यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह एवं यूपीए के साथ कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी द्वारा नई दिल्ली के विज्ञान भवन में अल्पसंख्यकों के कल्याण एवं विकास के कामों की प्रशंसा के पुल को एक 37 वर्षीय सामाजिक एवं आरटीआई कार्यकर्ता ने धाराशायी कर दिया. फिर वही हुआ जो हमेशा होता आया है. युनानी चिकित्सक हकीम फहीम बेग के मुंह को पहले कुछ हाथों से जबरदस्ती बंद करने की कोशिश की गई और जब उन्होंने प्रधानमंत्री से म़ुखातिब होकर बोलना बंद नहीं किया तब उन्हें सुरक्षाकर्मियों के द्वारा प्रधानमंत्री एवं सोनिया गांधी के सामने ही विज्ञान भवन के हॉल बाहर पहुंचा दिया गया. ये सुबह सा़ढे दस बजे की घटना है. अवसर था सच्चर समिति की रिपोर्ट में अनुशंसा नंबर 40 के अनुसार मुस्लिम समुदाय के लाभ के लिए वक्फ संपत्ति के विकास के पेशेनजर नेशनल वक्फ डेवेलपमेंट कॉर्पोशन लिमिटेड (नवादको) के प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन का. इस कार्यक्रम में सोनिया गांधी विशिष्ठ अतिथि थीं.


इसमें कोई संदेह नहीं है कि हकीम फहीम बेग ने इस महत्वपूर्ण एवं असाधारण अवसर पर सरकार और सत्तारु़ढ ग्रुप के सबसे जिम्मेदारों के सामने देश के एक जिम्मेदारी शहरी का रोल ही नहीं अदा किया है बल्कि देश व समुदाय का प्रतिनिधित्व भी किया है, दोनों जिम्मेदारों के झूठे दावों की क़लई खोली है और खुले रूप में प्रत्येक व्यक्ति के दिल की बात कह दी है कि अल्पसंख्यक योजनाएं भले वो प्रधानमंत्री की 15 सूत्रीय प्रोग्राम की हों या घनी अल्पसंख्यक आबादी वाले 90 जिलों में मल्टीसेक्टोरल डेवेलपमेंट प्रोग्राम(एमएसडीपी) की, जमीनी सतह पर नहीं पहुंच पा रही हैं, अतएव पीएम एक और अधिक नई योजना को शुरू करने की बजाए पूर्व की योजनाओं पर पहले अमलदरामत करवाएं.
चौथी दुनिया से बातचीत करते हुए ख़िडकीवालान (बल्लीमारान), नई दिल्ली में 15 फरवरी 1977 को आपातकाल की समाप्ति की घोषणा के बाद जन्म लिए और कानपुर विश्‍वविद्यालय यूनानी चिकित्सा का बीयूएमएस कोर्स करने के बाद अब जाफराबाद में रह रहे और पत्नी के साथ प्रैक्टिस कर रहे हकीम फहीम बेग पूछने पर कि उन्हें इस अवसर पर यह सबकुछ विचार क्यों और कैसे आया व क्या यह सबकुछ पूर्व नियोजित था, कहा कि ‘पूरे देश में 90 घनी अल्पसंख्यक आबादी वाले जिलों में दिल्ली के अंदर एक ही जिला नार्थ ईस्ट डिस्ट्रिक्ट है जहां कांग्रेस के एमएलए चौधरी मतीन अहमद के सीलमपुर विधानसभा क्षेत्र मे जाफराबाद से इनका संबंध है. अतएव मैं यहां मल्टीसेक्टोरल डेवेलपमेंट प्रोग्राम पर अमलदरामत के बारे स्थानीय डिप्टी कमीश्‍नर रेवेन्यू से मालूम करता रहा और प्रधानमंत्री के दफ्तर को भी 150 पत्र लिखे एवं इस सिलसिले में पीएम से मिलकर बात करने का निवेदन भी किया मगर कोई जवाब नहीं आया और फिर 29 जनवरी को श्रीमति सोनिया गांधी और प्रधानमंत्री के भाषणों को सुनने के बाद मुझे अचानक स्वाभाविक तौर पर यह विचार आया कि इन्हीं से मुखातिब हुआ जाए जबकि मैं अवसर मिलने पर उन्हें सौंपने के लिए एक स्मरणपत्र लेकर आया था. प्रधानमंत्री के कहने पर केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री के रहमान खां एवं राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्ला ने मुझसे बातचीत तो की और वादा किया कि वे लोग उनकी प्रधानमंत्री से मुलाकात करवाएंगे. वैसे अभी तक कोई मुलाकात नहीं हो पाई है.’ ग़ौरतलब है कि उपरोक्त जिले की समस्या दिल्ली विधानसभा में भी उठाई गई थी. इसके अलावा ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के वित्तीय सचिव मुशर्रफ हुसैन ने एक अवसर पर जब उस समय की कांग्रेसी मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित से इस संबंध में सही स्थिति जाननी चाही तो उन्होंने छूटते ही कहा कि मुस्तफाबाद के कांग्रेसी एमएलए हसन अहमद एमएसडीपी के मामलों के प्रभारी हैं लिहाजा इस संबंध वही बेहतर बता सकते हैं. इस पर मुशर्रफ हुसैन उन्हें तब बताया कि उन्होंने हसन अहमद से इस संबंध में मालूम किया था जिसपर उनका कहना था कि इस जिले में अल्पसंख्यकों के विकास के लिए राशि आई थी परंतु उसे इस्तेमाल न किए जाने पर वापस कर दिया गया. आश्‍चर्य की बात तो यह है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री उनकी इस बात का कोई उत्तर दिए बिना सभा स्थल से चली गईं.
सच तो यह है कि अल्पसंख्यक स्कीमों के जमीनी सतह तक न पहुंचने की जो बात फहीम बेग ने कही है वह मात्र एक व्यक्ति की प्रधानमंत्री एवं कांग्रेस और यूपीए की मुखिया से नहीं है बल्कि ये कांग्रेस के इन दो जिम्मेदारों से देश व मुस्लिम समुदाय के तमाम लोगों की बात है. प्रश्‍न यह है कि क्या ये दोनों जिम्मेदार 10 वर्षों के दो कालों के अंतिम क्षण में भी जागेंगे और अब तक अपने ही किए गए तमाम वादों का विश्‍लेषण करेंगे? दिल्ली हाईकोर्ट की वकील इज़हार करीम अंसारी ने चौथी दुनिया से विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ‘ये कांग्रेस के लिए ख़तरे की घंटी है और इसबात का खुला इशारा है कि कांग्रेस के पांव तले से मुस्लिम अल्पसंख्यक का वोट खिसक चला है क्योंकि अल्पसंख्यकों की योजनाएं जमीनी सतह नहीं पहुंच पा रही हैं. मामला मात्र एक घनी अल्पसंख्यक आबादी वाले ज़िले दिल्ली के नार्थ ईस्ट डिस्ट्रिक्ट तक एमएसडीपी फंड के पहुंच कर इस्तेमाल होने का नहीं है बल्कि तमाम घनी आबादी वाले जिलों का भी यही हाल है.’
अजीब बात तो यह है कि विज्ञान भवन में आयोजित इस सरकारी कार्यक्रम को सत्तारू़ढ कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनावी लाभ के लिए इस्तेमाल करना चाहा. यही कारण है कि पार्टी कार्यकर्ताओं ने इस कार्यक्रम में सम्मिलित होने का निमंत्रण अधिकतर अपने हिमायतियों को दिए. जिसके फलस्वरूप बहुत से संजीदा लोग इसमें न आ सके. जब इस संबंध में चौथी दुनिया ने ऐसे लोगों से इसमें सम्मिलित न होने का कारण पूछा तो उन्होंने छूटते ही कहा कि वह तो कांग्रेस को शो था, अतएव हमलोग क्यों जाते? नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ दिल्ली के अध्यक्ष इंजिनियर इमदादुल्लाह जौहर ने कहा कि शायद यही कारण कि मेरे सामने ही निमंत्रण पत्र बांटे गए लेकिन मुझे नहीं दिया गया क्योंकि मैं कांग्रेस का हिमायती नहीं था. इसीलिए गैरसंजीदा लोग इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में आ गए जिन्हें इस बात की चिंता ही नहीं थी कि नेशनल वक्फ डेवेलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड का मतलब और मक़सद क्या है और इस अवसर पर फहीम बेग ने अल्पसंख्यकों की योजनाओं की जमीनी सतह तक न पहंचने का मसला क्यों उठा दिया बल्कि इसके विपरीत आधे घंटे के प्रोग्राम के समाप्त होते ही ‘ हाई टी ’ पर इस तरह टूट प़डे और फ्रायउ चिकन और फिश को लाते समय इस तरह लूटने लगे कि शायद उनके लिए यही महत्वपूर्ण था जिसके फलस्वरूप वहां उपस्थित मुस्लिम अल्पसंख्यक का सम्माननीय एवं संजीदा तबक़ा महरूम रहा. मगर कांगे्रस की रणनीति काम न आई और फहीम बेग ने मुल्क की सबसे ब़डे अल्पसंख्यक समूह का प्रतिनिधित्व करते हुए कटु सत्य को सामने ला दिया. कार्यक्रम के बाद कांग्रेस डैमेज कंट्रोल में लग गई और इस सिलसिले में उर्दू मीडिया को मैनेज करने की कोशिश की. यही कारण है कि दो-तीन अखबारों इंकलाब, ख़बरें एवं हिंद न्यूज को छो़डकर सभी उर्दू अखबारों ने इस खबर को डाउन प्ले किया. पूछने पर कुछ उर्दू पत्रकारों ने चौथी दुनिया को नाम न लेने की शर्त पर बताया कि इस संबंध में मौखिक निर्देश दिए गए थे कि सावधानी से काम करो वरना ‘धन्यवाद’ के लिए मिलने वाले पुर्ण पृष्ट के इश्तहार से वंचित कर दिए जाओगे. यहां यह भी गौरतलब है कि 31 जनवरी को कैबिनेट की मीटिंग के तुरंत बाद अल्पंसख्यक मंत्री के. रहमान खां ने कुछ पत्रकारों को अपने निवास पर बात करने के लिए बुलाया था और उनसे विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि फहीम बेग को 29 जनवरी की कॉन्फ्रेंस में अपनी बात कहने की क्या आवश्यकता थी? इस अवसर पर दिल्ली एवं लखनऊ से एकसाथ छप रहे एक उर्दू समाचार पत्र के संवाददाता ने उपरोक्त कॉन्फें्रस की खबर को लीड के तौर पर छापने एवं फहीम बेग की खबर को डाउन प्ले करने का भी के्रडिट लिया. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अंदर क्या-क्या हो रहा है? मगर इससे इसको कोई फायदा मिलने वाला नहीं है क्योंकि इसके चारों तरफ खुशामद पसंद लोगों का जमघट है और अंतिम समय में ये क्या तीर मार लेगी?
थिंक टैंक इंस्टिट्यूट ऑफ ऑबजेक्टिव स्टडीज़(आइओएस) के अध्यक्ष डॉ. मोहम्मद मंजूर आलम कहते हैं कि‘ यह क्षण बडा ही ऐतिहासिक था सच्चर रिपोर्ट की एक अनुशंसा पर अमल करते हुए सरकार ने नवादको का उद्घाटन किया था जो कि एक बहुत ब़डी अल्पसंख्यक योजना जैसी है. इस अवसर पर हकीम फहीम बेग ने जो कुछ कहा कि मुस्लिमों की दुखती हुई आवाज है और यही कारण है कि इसे सुनते ही सारे लोगो के कान और आंख खुल गए परंतु उनकी बात के लंबे हो जाने से संजीदा वातावरण डिस्टर्ब जरूर हुआ. अवएव उन्हें अपनी बात को लंबा नहीं करना चाहिए था.’
अल्पसंख्यकों को कांग्रेस की ओर से लॉलीपॉप देकर उनके असल मुद्दों से ध्यान हटाने की संसदीय चुनाव से ठीक पहले नवादको जैसी ये अकेली एवं एकमात्र चाल नहीं है. ये इस तरह की चाल हमेश चलती रही है और इस चाल के तीसरे दिन भी सोनिया गांधी ने बिहार के पशमांदा इलाके किशनगंज जो कि दिल्ली के नार्थ ईस्ट डिस्ट्रिक्ट की तरह 90 घनी अल्पसंख्यक आबादी वाले जिलों में शामिल है, अलीगढ मुस्लिम युनिवर्सिटी का शिलान्यास करने गईं. संसदीय चुनाव से ठीक पहले यह भी एक चाल थी जबकि ये समस्या एक लंबे समय से चली आ रही थी. इस अवसर पर दूसरे रोज उर्दू अखबारों में एक फरवरी को छपी तस्वीर में विशेष रूप से एएमयू सेंटर का उदघाटन करते हुए उनके साथ किशनगंज से कांग्रेस के टिकट पर पिछली बार निर्वाचित लोकसभा सदस्य एवं ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के उपाध्यक्ष मौलाना असरारुल हक क़ासमी को दिखाया गया. ये भी अल्पसंख्यकों को दिया जा रहा एक पैगाम था जो कि सरासर झूठ था क्योंकि ये वही मौलाना साहब हैं जो कि कांग्रेस के टिकट पर 2009 के संसदीय चुनाव में सफल हुए शायद बिहार के अकेले व्यक्ति थे और तमाम मांगों के बावजूद उन्हें उस समय बने केंद्रीय मंत्रीमंडल में सम्मिलित नहीं किया गया था. उन्हें सामाजिक और शैक्षिक कामों के दिलचस्पी के तकाजा के तौर पर पिछले पांच वर्षों में जिन्हें कोई अहम जिम्मेदारी भी नहीं दी गई थी और जिसके कारण संसदीय क्षेत्र के वोटर कांग्रेस से सख्त नाराज चल रहे थे.
एएमयू सेंटर की चर्चा होते ही स्वाभाविक तौर पर एएमयू के अल्पसंख्यक के दर्जें के संबंध में 2005 में कांग्रेस की ओर से किए गए वादे याद आ जाते हैं. उस समय जब एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देशानुसार अंतिम निर्णय आने के समय तक रोक दिया गया था. तब उन दिनों केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्व. अर्जुन सिंह ने वादा किया था कि यह मामला अदालत में है परंतु सरकार इसकी सुनवाई में तेजी लाने को कहेगी और जरूरत पडने पर आवश्यक कार्रावई करके इसके अल्पसंख्यक दर्जे को फिर से बहाल करवाएगी और वह इसके लिए वचनबद्ध है. इस वादे को भी नौ वर्ष गुजर गए और वादे वादे ही रह गए. प्रश्‍न यह है कि कांग्रेस जब अब एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा ही बहाल न कर सकी है तो वह किशनगंज में एएमयू सेंटर स्थापित करने अल्पसंख्यकों के लिए किया गया काम कह कर क्यों क्रेडिट ले रही है? यह भी सच कि यह सब कुछ भी धोखा ही है.
जाहिर सी बात है कि कांग्रेस ने पिछले दस वर्षों में सिर्फ धोखा ही दिया है लिहाजा यह बात बिल्कुल मुनासिब है कि अल्पसंख्कों को मात्र ऐलान ही नहीं बल्कि दस वर्षों के वादों का हिसाब चाहिए. सवाल यह है कि क्या कांगे्रस अपने काम के इस हिसाब को देने के लिए तैयार है?

चौथी दुनिया

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