अंबरीश कुमार
जन लोकपाल बिल न पेश हो पाने पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा लोकसभा चुनाव के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है। इसका राजनैतिक संदेश बहुत साफ़ है और अरविंद केजरीवाल साफ़ सन्देश देने में माहिर हैं। केजरीवाल को राजनैतिक दांव में फँसाने वाली कांग्रेस खुद इस खेल में फँस गयी। केजरीवाल ने पचास से कम दिन में वह सब कर दिया जिसका वे राजनैतिक संदेश देना चाहते थे और विदा भी हुये तो शहीद के अंदाज में और कांग्रेस भाजपा को एक दिखा कर। यह सब तकनीकी सवाल है कि जन लोकपाल बिल पेश होने के मुद्दे पर वोटिंग हुयी उसे पास कराने को लेकर नहीं। इसका सन्देश तो यही गया कि कांग्रेस भाजपा ने मिलकर भ्रष्चार के खिलाफ जन लोकपाल को रोका। दिल्ली में बुरी तरह पिटी कांग्रेस के लिये यह और बड़ा झटका है। अब कई मोर्चों पर कांग्रेस घिर गयी है। कांग्रेस ने केजरीवाल को समर्थन दिया था यह सोच कर कि आप पार्टी का हमलावर तेवर कुछ कुंद पड़ेगा और सरकार में फँसने की वजह से लोकसभा चुनाव में उनकी हिस्सेदारी कुछ कम होगी। कांग्रेस का समर्थन होने की वजह से आप नैतिक रूप से भी कांग्रेस पर बहुत हमलावर नहीं होगी। पर केजरीवाल ने खुद कम अपने सहयोगियों से कांग्रेस पर हर तरह का हमला करवाया और आप लगातार मीडिया में बनी रही।
इस पार्टी का उदय मीडिया से हुआ है और मीडिया में बना रहना इसके लिये बहुत जरूरी भी है। मीडिया का ही असर है कि चेन्नई, कोलकाता से लेकर अमदाबाद और हैदराबाद तक इसकी जड़े मजबूत हो चुकी हैं और मध्य वर्ग में इस पार्टी के प्रति बहुत लगाव भी है क्योकि इसने कांग्रेस को बड़ा झटका दिया वह भी दिल्ली में। यह काम तो मोदी भी नहीं कर पाये इसलिये धर्म निरपेक्ष और लोकतान्त्रिक ताकतों के लिये आप उम्मीद की किरण बनकर उभरी है जिसमे नौजवानों का हरावल दस्ता आगे है। यूँ ही नहीं जन आन्दोलनों से लेकर खांटी समाजवादी और गाँधीवादी इस प्रयोग के मुरीद हो गये।
ध्यान से देखें तो डॉक्टर से लेकर प्रोफ़ेसर तक इस पार्टी से लोकसभा टिकट पाने के लिये घंटो लाइन में खड़े होकर अपने पोते के उम्र के बराबर वालों को साक्षात्कार देकर बमबम हो जा रहे हैं। जो लोग कल तक नारा लगाते थे ‘राजनीति तो धोखा है,धक्का मारो मौका है’, वे भी टिकट की कतार में है। जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय यानी एनएपीएम की मेधा पाटकर लोकसभा चुनाव लड़ने जा रही हैं तो उनके सहयोगी मधुरेश आप की सर्च कमेटी में उम्मीदवार तलाशने में जुटे हैं और बाद में विधान सभा का चुनाव भी लड़ेंगे। यह बदलती हुयी राजनीति की बानगी है जिसकी शुरुआत एक एनजीओ से हुयी थी।
वाम दल एक साथ मिलकर जो नहीं कर पाए वह आप ने किया है जिसमें हर तरह की रणनीति भी शामिल है। केजरीवाल को लोकसभा चुनाव से पहले सरकार से मुक्त होना था यह सब जानते थे पर सिर्फ कांग्रेस नहीं जानती थी। यह हैरानी की बात है। केजरीवाल दिल्ली की 28 सीट पर सिमट कर रहने वाले नहीं थे क्योंकि हवा तो पूरे देश में बह रही थी। इसलिये वे सभी फैसले लिये जिसका वादा किया था और मुकेश अम्बानी के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा कर सभी को चुनौती दे दी। इनका क्या होगा इससे उन्हें कोई लेना-देना भी नहीं था। उन्हें तो सन्देश देना था कि वे अंबानी को भी घेर सकते हैं और यही सन्देश गया भी। अंत में जन लोकपाल के जरिए भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को को केजरीवाल ने निर्णायक मोड़ पर भी पहुँचा दिया। लोकसभा चुनाव सामने है और केजरीवाल अब देशभर में निकलेंगे। दिल्ली के खेल में कांग्रेस हारी है पर देश की राजनीति में उभरते नरेंद्र मोदी की अब बारी है और आप ने भाजपा के दो तीन फीसद वोट भी छीन लिये तो फिर मोदी को अगली बारी का इन्तजार करना पड़ सकता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें