प्रति,
राष्ट्रीय अध्यक्ष/महासचिव
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प्रिय अध्यक्ष जी/महासचिव जी,
हमारे देश में कई धर्मों, जातियों, समुदायों के लोग रहते आ रहे हैं। मुल्क तभी नहीं बंटता है जब उसके दो तीन नाम हो जाएं। हम पिछले साठ सालों से देख रहे हैं कि हमारे बीच भाई चारे में कमी आई है। एक दूसरे के दुश्मन के रूप में धर्म और जातियों के लोग समझे जाने लगे हैं। नीचा दिखाने और दबाकर रखने की विचारधारा को धर्म और जाति के बहाने बढ़ाया जा रहा है। दूसरी भाषा में, इस बात को इस तरह कह सकते हैं कि हमने विभिन्न समुदायों एवं वर्गो की सामाजिक एंव राजनीतिक समस्याओं का राष्ट्रीय अखण्डता, लोकतंत्र के भविष्य और सामाजिक समरसता पर पड़ने वाले प्रभावों का गहन अध्ययन किया। हमने पाया कि देश के कई भागों में होने वाले साम्प्रदायिक दंगों में प्रशासन की भूमिका और सरकारों की संवेदनहीनता के कारण निराशा और आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है। साम्प्रदायिक तत्वों के हौसले बढ़े हैं। साम्प्रदायिक हिंसा में लगातार बढ़ोत्तरी इसके प्रमाण हैं। आतंकवाद, देश के खिलाफ युद्व, गैर कानूनी गतिविधियों में संलिप्तता आदि के नाम पर बेगुनाह नौजवानों को जेल में डाला गया है। खासतौर से, वंचित वर्गों के नौजवानों को निशाना बनाया गया है। मुसलमान युवकों का तो कई वर्षों से मनोबल तोड़ने की लगातार कोशिशें की जा रही हैं। कई बड़ी आतंकवादी घटनाओं की पुनर्विवेचना में यह बात सिद्ध भी हो चुकी है कि मुसलमान युवकों को जान बूझकर फंसाया गया है।
सामाजिक ताने-बाने और धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा दिख रहा है, जिससे नीतिगत स्तर पर निपटा जाना आवश्यक हो गया है। देश की संप्रभुता व स्वायत्ता को चुनौती बाहरी ताकतों से नही, बल्कि अंदरूनी ताकतों से ज्यादा दिखती है। लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए अब जरूरी है कि खुफिया एजेंसियों की जनता के सर्वोच्च सदन, संसद के प्रति जवाबदेही तय की जाए।
हम देश में बन रहे हालात में सुधार के लिए अपनी भूमिका इस रूप में देख रहे है कि हम राजनीतिक पार्टियों के सामने एक सुझाव और सहमति पत्र पेश करें। देश के बहुसंख्यक वंचित तबके से जुड़ी समस्याओं का निदान बहुत हद तक संसद द्वारा कानूनी प्रावधानों और संविधान संशोधन के जरिए ही संभव है। जिसकी तरफ कोई सार्थक पहल करने में हमारी संसद विफल रही है। रिहाई मंच द्वारा ये मांग पत्र के रूप में आपको भेजा जा रहा है। आपसे आग्रह है कि आगामी लोकसभा चुनावों में इन मांगों को आप अपने घोषणा पत्र में शामिल करें ताकि यह स्पष्ट हो कि आप केवल चुनाव कराने को ही लोकतंत्र नहीं समझते हैं, बल्कि जिंदा कौम के लिए लोकतांत्रिक वसूलों व सिद्धातों के प्रति भी निष्ठा रखते हैं।
1- आतंकवाद की तमाम घटनाओं का सच जानने के लिए जांच की जानी चाहिए।2- आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तार किए गए व्यक्तियों को विवेचना के दौरान जमानत पर रिहा किया जाए।3- बेगुनाह व्यक्तियों को क्षतिपूर्ति अदा की जाए और उनके सम्मान की बहाली के लिए नीति तैयार की जाए।4- जिन व्यक्तियों को निर्दोष पाया जाए उनके विरुद्ध सांप्रदायिक पूर्वाग्रह के साथ आपराधिक भूमिका निभाने वाले पुलिस कर्मियों तथा खुफिया एजेंसियों के कर्मिर्यों के खिलाफ दंण्डात्मक कार्यवाई हेतु कानून बनाया जाए।5. आतंकवाद से संबन्धित मुकदमों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों का गठन कर जेल परिसर से बाहर दिन प्रतिदिन सुनवाई की व्यवस्था की जाए तथा प्रत्येक स्थिति में मुकदमें की सुनवाई एक साल के अन्दर पूरी की जाए।6- आतंकवाद के नाम पर कायम मुकदमों में पारित फैसलों की समीक्षा के लिए न्यायिक आयोग बनाया जाए।7- देश में आतंकवाद से संबन्धित अनेक मामलों में खुफिया एजेसियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई है तथा यह भी पाया गया है कि उनकी कार्य प्रणाली और स्वायत्ता हमारे लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए, संसद की संप्रभुता के लिए और आंतरिक सुरक्षा के लिए चुनौती बन गई है। आवश्यक हो गया है कि खुफिया एजेंसियों को संसद के प्रति जवाबदेह बनाया जाए तथा इंडियन मुजाहिदीन, जिसे समाज का बड़ा हिस्सा आईबी द्वारा निर्मित/संचालित कागजी संगठन मानता है के आईबी के साथ संबन्धों पर श्वेत पत्र संसद में लाया जाए।8- उत्तर प्रदेश के कचहरी धमाकों के आरोपी तारिक कासमी व मरहूम मौलाना खालिद मुजाहिद की संदेहास्पद गिरफ्तारी पर गठित एकल सदस्यीय आरडी निमेष जांच कमीशन की रिपोर्ट को स्वीकारते हुए 16 सितंबर 2013 को विधानसभा पटल पर रखा जा चुका है। उस पर कार्रवाई सुनिश्चित कराई जाए।9- उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, फैजाबाद, बरेली, कोसी कलां, अस्थान, महाराष्ट्र के धुले, अकोला, असम, समेत देश भर में हुए सभी सांप्रदायिक हिंसा की वारदातों की सुप्रिम कोर्ट की देखरेख में जांच कराई जाए। पूर्व में हुए जिन सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं पर जांच आयोगों का गठन किया गया उनकी रिपोर्टों को सार्वजनिक किया जाए। सांप्रदायिक हिंसा निरोधक बिल को संविधान में परिकल्पित संघीय ढांचे के तहत लागू किया जाए।10- आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट (आफ्सपा) और गैर कानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) व संगठित अपराध रोकथाम अधिनियम (कोका) जैसे दमनकारी कानूनों से नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, इसे तत्काल समाप्त किया जाए। आतंकवाद से निपटने के नाम पर संघीय ढांचे के खिलाफ एनसीटीसी के गठन को रोका जाए। इन कानूनों के तहत पत्रकारों एवं मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के उत्पीड़न के मामलों की न्यायिक जांच कराई जाए जिससे अभिव्यक्ति की आजादी, मानवाधिकार और लोकतांत्रिक अधिकार सुनिश्चित हो सके।11. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग व अल्पसंख्यक आयोग को और अधिक स्वायत्त और सशक्त बनाते हुए कानूनी अधिकारों से लैस किया जाए।12- देश में आतंकवाद के नाम पर कथित मुठभेड़ों और न्यायिक/पुलिस हिरासत में हुई मौतों/हत्याओं की जांच एक विशेष न्यायिक आयोग द्वारा कराई जाए।13. सच्चर और रंगनाथ मिश्रा कमेटियों की रिपोर्ट को अक्षरशः लागू किया जाए।14- आपराधिक विवेचना की जांच के लिए पुलिस प्रशासन से अलग पुलिस सुधार आयोग की सिफारिश के अनुसार एक अलग विवेचना ईकाई का गठन किया जाए।15- सरकारी गोपनियता अधिनियम 1923 में संशोधन करते हुए गोपनीय दस्तावेजों को एक निश्चित समय सीमा के बाद सार्वजनिक करने का प्रावधान किया जाए।16- संविधान सम्मत सामाजिक व राजनीतिक संगठनों की गतिविधियों पर खुफिया एजेंसियों द्वारा की जा रही ब्रीफिंग को आरटीआई दायरे मे लाया जाए।17. संविधान के अनुच्छेद 341 के अन्तर्गत जारी आदेश जिसके द्वारा मुस्लिम, ईसाई तथा पारसी दलितों को अनुसूचित जाति के लाभ से वंचित किया गया है से धर्म सूचक शब्द (हिंदू) सिख, बौद्ध को हटाया जाए व देश की सभी धर्मों के दलित जातियों को समान रुप से अनुसूचित जाति का लाभ दिया जाए।18- सच्चर और रंगनाथ मिश्र कमेटी के सिफारिशों के अनुरूप संसद और विधान सभाओं में अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षित सीटों में चक्रानुक्रम व्यवस्था लागू की जाए।19- अल्पसंख्यक वर्गों के जो नाम मतदाता सूची में छूटे हुए हैं, उन्हें जोड़ने की निश्चित व्यवस्था की जाए।20- इसराइल व अमेरिका की कुख्यात खुफिया एजेंसियां जो अपने हितों को साधने के लिए दुनिया भर में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक समाजों के बीच युद्धोन्माद फैलाकर उन देशों की आतंरिक सुरक्षा को संकट में डालकर उन देशों के सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने के लिए बदनाम हैं, से सैन्य व सामरिक सम्बन्ध तत्काल खत्म किया जाएं।21- समाज के कमजोर तबकों को आत्म रक्षा हेतु हथियारों लाइसेंस आवंटित किए जाएं।22- सरकारी/निजी नई बसाहटों में आरक्षण की व्यवस्था लागू की जाए।23- सांप्रदायिक हिंसा पीड़ितों को आरक्षण दिया जाए।24- पासपोर्ट बनवाने तथा बैंकिंग की सुविधाएं प्राप्त करने में आने वाली व्यावहारिक समस्याओं का निदान किया जाए।25-पुलिस बल में मुसलमानों के उचित प्रतिनिधित्व की गारंटी की जाए।
द्वारा जारी- रिहाई मंच कार्यकारी समिति
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