- खुफिया एजेंसियों की संसद के प्रति तय हो जवाबदेही- रिहाई मंच
- रिहाई मंच ने जारी किया 2014 लोकसभा चुनाव माँग पत्र
- कानून निर्माण व संविधान संशोधन के बगैर कमजोरों के अधिकारों को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता
- माँग पत्र के जरिए रिहाई मंच अवाम को करेगा जागरूक
लखनऊ 24 मार्च 2014। 2014 लोकसभा चुनावों के मद्देनजर रिहाई मंच कार्यकारी समिति ने खुफिया एजेंसियों की संसद के प्रति जवाब देही को अपना केन्द्रीय मुद्दा बनाते हुये सभी राजनीतिक दलों को संबोधित पच्चीस सूत्रीय माँग व सुझाव पत्र जारी किया है।
माँग पत्र जारी करते हुये रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि समाज के बड़े हिस्से की समस्याओं का निदान कानून निर्माण व संविधान में संशोधन किए बिना संभव नहीं है, क्योंकि मौजूदा व्यवस्था पूरी तरह मजबूत तबकों के पक्ष में खड़ी है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र का मतलब हर पांच साल पर सिर्फ चुनाव कराना नहीं बल्कि समाज के हाशिए पर खड़े लोगों के उत्थान और सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है। जिसमें हमारी संसद और सरकारें पूरी तरह विफल साबित हुयीं हैं। रिहाई मंच का मानना है कि लोकतंत्र को मजबूत करने के लिये जरूरी है कि जनता के सर्वोच्च सदन संसद जनता के प्रति अपनी खोती हुई निष्ठा को पुर्नबहाल करे तथा खुफिया एजेंसियों को संसद के प्रति जवाहदेह बनाया जाये ताकि गोपनीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर जनता के एक बड़े हिस्से का मानवाधिकार हनन रोका जा सके।
नागरिक परिषद के रामकृष्ण ने कहा कि खुफिया एजेंसियों ने विदेशी खुफिया एजेंसियों के साथ मिलकर भारतीय लोकतंत्र का अपहरण कर लिया है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की जाँच के लिये गठित जैन कमीशन की रिपोर्ट में जिस मोसाद, सीआईए तथा भारतीय खुफिया एजेंसी आईबी व रॉ के कुछ अधिकारियों की संलिप्तता उजागर हो चुकी है, उन बाहरी एजेंसियों से अपने संबन्ध तोड़ने व भारतीय एजेंसियों को संसद के प्रति जवाबदेह बनाने के बजाय उन्हें बेलगाम छोड़ दिया जाना हमारी राष्ट्रीय एकता, अखंडता एवं संप्रभुता के लिये खतरा बन गया है।
सामाजिक संगठन अवामी काउंसिल के महासचिव असद हयात ने कहा कि सामाजिक संगठन सिर्फ माँगों को राजनीतिक दलों के समक्ष रख सकते हैं परन्तु उन विषयों पर कानून बनाने का काम राजनीतिक दलों को ही करना होता है। आतंकी घटनाओं में निर्दोषों को फँसाए जाने के मामले हों अथवा सांप्रदायिक हिंसा के मामले हों, दोनों में ही मुसलमानों को लक्ष्य बना कर हिंसा की जा रही है। जो लोग निर्दोषों को झूठी गवाही और आरोप पत्र तैयार करके फँसा रहे हैं वह भी सांप्रदायिकता है। फर्क सिर्फ इतना ही है कि इन मामलों में सरकारी अधिकारी और एजेंसियां सांप्रदायिक भावना से कार्य कर रही हैं जबकि दंगों के मामलों में यह कार्य सांप्रदायिक संगठन और दल करते हैं और इन दोनों को ही रोकने के लिये सांप्रदायिक हिंसा निरोधक बिल जैसा सशक्त कानून जो संविधान में परिकल्पित संघीय ढाँचे के तहत हो, को लागू किया जाये।
सामाजिक न्याय मंच के अध्यक्ष राघवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि आज जिस तरह से पूरे देश में चुनाव के माहौल में आतंकी सांजिशों के खतरे को मीडिया बता रही है और लगातार मुस्लिम युवकों को उठाया जा रहा है। ठीक ऐसे ही 2002 गुजरात चुनावों के दौरान भी हुआ था, कि मोदी को मारने के नाम पर मुस्लिमों को मुठभेड़ों के नाम पर मारा गया। आज हकीकत सबके सामने है कि जो मुस्लिम आतंकवाद के नाम पर मारे गये उनकी हत्या के जुर्म में दर्जनों आईपीएस जेल की सीखचों के पीछे हैं। ऐसे में आज जो आईबी और सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारी मोदी को मारने के षडयंत्र के नाम पर मुस्लिमों को निशाना बनाए हुये हैं उन्हें जेल में सड़ रहे वंजारा, नरेन्दर अमीन जैसे लोगों से सबक लेना चाहिए।
रिहाई मंच कार्यकारिणी सदस्य अनिल आजमी, मोहम्मद आरिफ और हरे राम मिश्र ने कहा कि लोकसभा चुनावों के मद्देनजर इस माँग पत्र में सुझाव भी दिए गये हैं। हम सभी राजनीतिक दलों से अपेक्षा करते हैं कि वो इस पर गंभीरता से विचार करेंगे। इस माँग पत्र को लेकर हम जनता के बीच में भी अभियान चलाएंगे जिससे जनता चुनावों में इन मुद्दों पर प्रत्याशियों से सवाल पूछ सके।
रिहाई मंच द्वारा जारी माँग पत्र के अयोजन में, केके शुक्ल, रफीक सुल्तान, मो0 फहीम सिद्दीकी, एहसानुल हक मलिक, फैजान मुसन्ना, जैद अहमद फारुकी, शिव नारायण कुशवाहा, रियाज अल्वी, शान ए इलाही, एएम सिद्दीकी, एसएम वरी, फरीद खान, इरफान शेख, वासिफ शेख, अजीजुल हसन, केके शुक्ला, शहजाद अहमद, शिब्ली बेग समेत बड़ी संख्या में लोग शामिल रहे।
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