भारतीय जनता पार्टी की यह जीत नकारात्मक कम सकारात्मक ज्यादा है. दस साल के यूपीए शासन की एंटी इनकम्बैंसी होनी ही थी. पर यह जीत है, किसी की पराजय नहीं. कंग्रेस जरूर हारी पर विकल्प में क्षेत्रीय पार्टियों का उभार नहीं हुआ. नरेंद्र मोदी ने नए भारत का सपना दिखाया है. यह सपना युवा-भारत की मनोभावना से जुड़ा है. यह तख्ता पलट नहीं है. यह उम्मीदों की सुबह है. इसके अंतर में जनता की आशाओं के अंकुर हैं. वोटर ने नरेंद्र मोदी के इस नारे को पास किया है कि ‘अच्छे दिन आने वाले हैं.’ अब यह मोदी की जिम्मेदारी है कि वे अच्छे दिन लेकर आएं. उनकी लहर थी या नहीं थी, इसे लेकर कई धारणाएं हैं. पर देशभर के वोटर के मन में कुछ न कुछ जरूर कुछ था. यह मनोभावना पूरे देश में थी. देश की जनता पॉलिसी पैरेलिसिस और नाकारा नेतृत्व को लेकर नाराज़ थी. उसे नरेंद्र मोदी के रूप में एक कड़क और कारगर नेता नज़र आया. ऐसा न होता तो तीस साल बाद देश के मतदाता ने किसी एक पार्टी को साफ बहुमत नहीं दिया होता. यह मोदी मूमेंट है. उन्होंने वोटर से कहा, ये दिल माँगे मोर और जनता ने कहा, आमीन। देश के संघीय ढाँचे में क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पंख देने में भी नरेंद्र मोदी की भूमिका है. एक अरसे बाद एक क्षेत्रीय क्षत्रप प्रधानमंत्री बनने वाला है.
इस चुनाव के दो-तीन बुनियादी संदेश और कुछ चुनौतियाँ हैं जो नरेद्र मोदी से रूबरू हैं. पहला संदेश यह कि देश वास्तव में जाति और सम्प्रदाय की राजनीति से बाहर आना चाहता है. बेशक जाति और सम्प्रदाय के जुम्ले इस चुनाव पर भी हावी थे, पर जनादेश देखें तो उसमें ‘पहचान की राजनीति’ से बाहर निकलने की वोटर की छटपटाहट साफ नज़र आती है. उत्तर प्रदेश में मायावती और मुलायम सिंह की राजनति की हवा ही नहीं निकली, अजित सिंह के रालोद का भी सफाया हो गया. इसके पीछे मुजफ्फरनगर के दंगों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. नरेंद्र मोदी ने भी सोशल इंजीनियरी का सहारा लिया और चुनाव के अंतिम दिनों में अपनी जाति को लेकर बयान दिए. पर प्रकट रूप से संकीर्ण नारों का सहारा लेने के बजाय, उन्होंने गवर्नेंस पर ज़ोर दिया. संघ परिवार से जुड़े कुछ नेताओं के ज़हरीले बयानों पर हालांकि पार्टी ने कोई औपचारिक कार्रवाई नहीं की, पर अंदरूनी तौर पर इस किस्म के बयानों को रोका गया.
भारतीय जनता पार्टी पहली बार पैन इंडियन पार्टी के रूप में पहली बार नजर आ रही है. हालांकि उसे केरल में सीट नहीं मिली है, पर वहाँ पैर पसारे हैं. दूसरी ओर उन्होंने तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, बंगाल, उड़ीसा और असम तक में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. गुजरात और राजस्थान में सूपड़ा साफ किया और महाराष्ट्र में कांग्रेस की चूलें हिला दीं. उत्तर भारत में केवल पंजाब में एनडीए को धक्का लगा है, जिसका सबसे बड़ा कारण अकाली दल के खिलाफ एंटी इनकम्बैंसी थी, जिससे पिछले विधानसभा चुनाव में तो पार पा लिया गया, पर इसबार उसे रोका नहीं जा सका.
इस जीत के बाद नरेंद्र मोदी के सामने तमाम चुनौतियाँ हैं. इनमें राजनीतिक, प्रशासनिक और आर्थिक चुनौतियाँ शामिल हैं. चुनाव परिणाम आने के बाद अपनी पहली प्रतिक्रिया में पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने नरेंद्र मोदी को न तो बधाई दी और न उन्हें जीत का खुले शब्दों में श्रेय दिया. इसी प्रकार की प्रतिक्रिया सुषमा स्वराज की थी. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का एक तबका उनके लिए चुनौती खड़ी करेगा.एक्ज़िट पोल के परिणाम सामने आने के बाद से पूछा जा रहा था कि आडवाणी जी को क्या पद मिलेगा?मोदी पर केवल कांग्रेस के हमले ही नहीं होंगे. भीतर के प्रहार भी होंगे. भाजपा को ‘पार्टी विद अ डिफरेंस’कहा जाता था. पिछले साल से उसे ‘पार्टी विद डिफरेंसेज़’ या ‘भारतीय झगड़ा पार्टी’ कहा जाने लगा है. दूसरी चुनौती है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ. जीत हासिल करने के बाद नरेंद्र मोदी का कद बढ़ा है. क्या वे अपनी सरकार बनाने और चलाने का काम स्वतंत्रता पूर्वक कर पाएंगे?
इस साल मॉनसून कमज़ोर होने की सम्भावना है. हालांकि दो रोज़ पहले की खबर है कि मॉनसून उतना विलम्ब से नहीं आ रहा, जितना अंदेशा था. नई सरकार को सबसे पहले महंगाई के मोर्चे पर कुछ करना होगा. हमारे यहाँ मौसम का महंगाई से गहरा रिश्ता है. नई सरकार के पास इस साल के बजट में कुछ क्रांतिकारी काम करने का मौका नहीं है. शायद जून में बजट आएगा. नई सरकार मंत्रालयों की संरचना में बड़ा बदलाव करना चाहती है. क्या यह काम फौरन होगा? नरेंद्र मोदी के साथ वरिष्ठ नौकरशाहों का सलाहकार मंडल है. काम का खाका पहले से बनाकर रखा गया है. सरकार के पास लोकसभा में बहुमत है, पर राज्यसभा में वह अल्पमत है. सरकार को नए कानून बनाने के लिए कांग्रेस की मदद लेनी होगी. देश में बड़े स्तर पर रोज़गारों का सृजन करने के लिए भारी पूँजी निवेश की जरूरत होगी. मोदी सरकार की आहट आने के साथ ही रुपए की कीमत बढ़ने लगी है. इससे पेट्रोलियम की कीमत पर असर पड़ेगा भुगतान संतुलन में देश की स्थिति बेहतर होगी. अच्छी बात यह है कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत हैं.
मोदी के सामने एक बड़ी चुनौती विदेश नीति के बाबत है. आमतौर पर विदेश नीति के मामले में बड़े बदलाव नहीं होते हैं. खासतौर से पाकिस्तान के साथ रिश्तों को लेकर उनसे बड़ी अपेक्षाएं की जा रहीं हैं. हाल में उन्होंने मीडिया के साथ बातचीत में कहा है कि हम पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते बनाकर रखना चाहेंगे. वस्तुतः मोदी सरकार की परीक्षा नीतियों से ज्यादा उसके प्रशासन को लेकर होगी. उनकी छवि कड़क नेता की है. जनता को कड़क सरकार चाहिए, जो उसकी परेशानियाँ दूर करे.
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