निर्दोष शकील और बशीर की रिहाई के लिये सीतापुर में रिहाई मंच ने किया जनसम्मेलन
सीतापुर/लखनऊ, 15 फरवरी 2014। आतंकवाद के नाम पर पकड़े गये बेगुनाह शकील और बशीर हसन की रिहाई के लिये गुरूवार को आयोजित जन सम्मेलन को सम्बोधित करते हुये रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शुऐब ने कहा कि बशीर, शकील और उनका पूरा परिवार यूपी एटीएस और दिल्ली स्पेशल सेल की आपराधिक साजिश का शिकार है, जिसने इस हँसते-खेलते परिवार को तबाह कर दिया है। उनके परिवार द्वारा कई बार सपा सरकार के नेताओं राजेंद्र चौधरी और अबु आसिम आजमी से फरियाद करने के बावजूद उन्हें सरकार से सिर्फ आश्वासन ही मिला। यहाँ तक कि उनकी गिरफ्तारी पर उठने वाले सवालों की जाँच के लिये सरकार ने कोई आयोग तक गठित करना जरूरी नहीं समझा और ना ही उन ज्ञापनों का ही कोई जवाब आज तक इस परिवार को सरकार की तरफ से मिला जिसे उन्होंने कई बार सरकार और मुख्यमंत्री को भेजा। जिससे साबित होता है कि आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाह मुसलमानों की रिहाई का चुनावी वादा सिर्फ एक धोखा था।
सीतापुर के बिसवां स्थित शकील के पैत्रिक गांव कुतुबपुर में आयोजित जन सम्मेलन में मोहम्मद शुऐब ने कहा कि बशीर और शकील पर आरोप है कि उनके घर यासीन भटकल आया था जिसका न तो कोई प्रमाण है और ना ही कोई गवाह। आज तक पुलिस यह भी नहीं बता पायी है कि उनके उपर आरोप क्या है और क्या किसी भी अनजान व्यक्ति के किसी के घर का पता पूछते हुये चले जाने से कोई कैसे आतंकवादी साबित हो जाता है। लेकिन बावजूद इसके वे पिछले दो सालों से जेल में बन्द हैं। जबकि असीमानंद द्वारा कई बार संघ परिवार के नेताओं मोहन भागवत, इंद्रेश कुमार और भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ की आतंकी घटनाओं में संल्प्तिता उजागर करने के बावजूद उन्हें आज तक पूछताछ के लिये भी पुलिस और जाँच एजेंसियों ने नहीं बुलाया। जिससे साबित होता है कि आतंकवाद के नाम पर सिर्फ बेगुनाह मुसलामानों को फँसाने और असली आतंकियों को खुली छूट देने के नीतिगत सिद्धान्त पर सरकारें काम कर रही हैं। जिसमें प्रदेश सरकार भी शामिल है। इसीलिये यूपी एटीएस ने बशीर और शकील को फँसा कर दिल्ली स्पेशल सेल को दे दिया। जो कि कानूनी तौर पर गलत और राज्य सरकार के अधिकारों का अतिक्रमण था। लेकिन केंद्र की काँग्रेस सरकार से तमाम मुद्दों पर मतभेद होने के बावजूद इस पर सपा सरकार ने आपत्ति नहीं की। जो साबित करता है कि आतंकवाद के झूठे आरोप में मुसलमानों को फँसाने के सवाल पर काँग्रेस या भाजपा की सरकारों के साथ प्रदेश की सपा सरकार की आम सहमति है।
वरिष्ठ पत्रकार रामकृष्ण ने कहा कि शकील और बशीर जैसे निर्दोष मुसलमानों को आतंकवाद के झूठे आरोपों में फँसा कर सरकारें हिन्दुओं और मुसलमानों में दूरी पैदा करके अपनी जनविरोधी नीतियों के खिलाफ जनता के संयुक्त आंदोलनों को कमजोर करना चाहती हैं। लेकिन रिहाई मंच दूसरे संगठनों के साथ मिल कर सरकारों के इस नापाक साजिश को नाकाम करने का काम करेगा। उन्होंने कहा कि अवध की इस धरती के इतिहास से हमें सबक सीखना होगा जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ यहाँ के हिन्दुओं और मुसलमानों ने बेगम हजरत महल और मौलवी अहमदुल्ला शाह के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई लड़ी थी। आज फिर से हमें ऐसी ही तहरीक चला कर साम्प्रदायिक और कॉर्पोरेट परस्त खुफिया एजेंसियों और सरकारों से मोर्चा लेते हुये अपने देश की गंगा-जमुनी विरासत की रक्षा करनी होगी।
मुस्लिम मजलिस के नेता जैद अहमद फारूकी ने कहा कि सपा अपने को मुसलमानों की हिमायती बताती है। लेकिन मुसलमानों के वोट से सपा के कई बार सत्ता में पहुँचने के बावजूद मुसलमानों की स्थिति दयनीय बनी बुनी है। जिसका अंदाजा सिर्फ इसी से लग जाता है कि प्रदेश में कुल दरोगाओं की संख्या 10197 है जिसमें मुसलमानों की कुल संख्या 236 यानि 2:31 प्रतिशत है, कुल 8224 हेड कॉन्सटेबल में सिर्फ 269 मुसलमान हैं, तथा 124245 सिपाहियों में सिर्फ 4430 यानि 4:37 मुसलमान हैं। उन्होंने कहा कि मुसलमानों को आतंकवाद के नाम पर फँसाने की राजनीति मुसलमानों की नयी पीढ़ी के मनोबल को तोड़कर उन्हें दोयम दजे का नागरिक बनाने की है जिसके खिलाफ आवाम को संघर्ष करना होगा।
वरिष्ठ रंगकर्मी आदियोग ने कहा कि साम्प्रदायिक साजिशों के खिलाफ हमें सांस्कृतिक हस्तक्षेप भी करना होगा। आज मीडिया से लेकर सिनेमा तक के माध्यम से मुसलमानों की छवि बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है। जिसके खिलाफ हमें अपनी मिली जुली सांस्कृतिक परम्पराओं को आगे बढ़ाना होगा।
भारतीय एकता पार्टी के अध्यक्ष सैयद मोईद अहमद ने कहा कि सपा सरकार ने खालिद मुजाहिद की हत्या करवा कर साबित कर दिया है कि आतंकवाद के नाम पर कैद बेगुनाहों को छोड़ने के बजाए वह उनकी हत्या करवाने पर तुली है, जिसे मुसलमान समझ गया है और आने वाले लोकसभा चुनाव में वह इसका बदला भी लेगा।
सिनेमा ऐक्टिविस्ट शाह आलम ने कहा कि आजादी के बाद से मुसलमानों की संख्या को उच्च सरकारी नौकरियों में लगातार एक साजिश के तहत कम किया गया है और शकील, बशीर या अलीगढ़ से पीएचडी कर रहे गुलजार वानी जैसे पढ़े लिखे नौजवानों को जेलों में डाल कर उस संख्या को समायोजित किया रहा है। इसलिये इन साजिशों के खिलाफ नीतिगत स्तर पर संघर्ष करना होगा।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रनेता और रिहाई मंच प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य अनिल आजमी ने कहा कि आईबीकी साम्प्रदायिक निगाहें सबसे ज्यादा पढ़े लिखे मुस्लिम युवकों पर है। क्योंकि मुसलमानों की यह पीढ़ी अपने अधिकारों के प्रति पहले से ज्यादा जागरूक है। ऐसे में जरूरत है कि इस संघर्ष में यह पीढ़ी खुद सामने आये।
जनसम्मेलन का संचालन रिहाई मंच के नेता लक्ष्मण प्रसाद ने किया। रिहाई मंच के प्रवक्ता राजीव यादव, शाहनवाज आलम और शकील के भाई मौहम्मद इसहाक ने भी सभा को सम्बोधित किया।
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