12 मई को 2014 की संसद के लिए चुनाव का आखिरी दिन और शेयर बाजार का तीसरे हफ्ते का पहला कारोबारी दिन। बाजार में उम्मीदें जैसे किसी अंतरिक्षयान की गति से उछाल मार रही हैं। सोमवार को शेयर बाजार ने फिर से नई ऊंचाई पा ली है। सारी उम्मीद नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार पर टिकी है। सेंसेक्स साढ़े तेईस तो निफ्टी सात हजार पर पहुंच गया है। छे साल से भी ज्यादा समय के बाद शेयर बाजार में इस तरह की तेजी देखने को मिली है। पिछले चार-पांच सालों से इक्कीस हजार पर अंटका सेंसेक्स शुक्रवार को तेईस हजार के पार चला गया। हालांकि, तेईस हजार के ऊपर बंद होने में सेंसेक्स कामयाब नहीं हुआ लेकिन, सेंसेक्स करीब तेईस हजार पर बंद हुआ ये कहा जा सकता है। एक दिन में साढ़े छे सौ प्वाइंट से ज्यादा सेंसेक्स चढ़ गया। लेकिन, क्या ये तेजी निवेशकों के लिए पुराने अच्छे दिन लौटाने वाली है। अगर शेयर बाजार के अनुमान की मानें तो भारतीय जनता पार्टी के चुनावी नारे अच्छे दिन आने वाले हैं की तर्ज पर बाजार के भी अच्छे दिन आने वाले हैं। अब इस बाजार के अनुमान को मानें तो नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार बनने वाली है। और जो बाजार अभी तक अकेले भारतीय जनता पार्टी के 200 के अंदर रहने और मुश्किल से एनडीए बनाकर सरकार का उम्मीद में था। वो बाजार अचानक अकेले भारतीय जनता पार्टी के ही 210-240 सीटों के जीतने का अनुमान लगा रहा है और इसी आधार पर आसानी से नरेंद्र मोदी की अगुवाई में सरकार बनने की उम्मीद कर रहा है। मई महीने के दूसरे हफ्ते के आखिरी कारोबारी दिन जब दुनिया से किसी तरह का कोई संकेत नहीं था। सिर्फ इसी एक संकेत कि नरेंद्र मोदी मजे से सरकार बना लेंगे। भारतीय शेयर बाजार ने वो छलांग लगा दी जिसके ट्रेडर, ब्रोकर लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। बाजार को अनुमान ये है कि नरेंद्र मोदी की सरकार बनेगी और ढेर सारे वो रुके हुए फैसले ले लिए जाएंगे जिसके न लागू होने की वजह से दुनिया की रेटिंग एजेंसियां भारत में निवेश को जोखिम बताने लगी थीं। बाजार को उम्मीद है कि मोदी ऐसे फैसले लेंगे जिससे भारत के कारोबारी देश में तेजी से औद्योगिक गतिविधि बढ़ा सकेंगे। बुनियादी परियोजनाओं के पूरा होने में कोई रुकावट नहीं आएगी। यूपीए दो के दौरान सरकार पर जो लगातार पॉलिसी पैरलिसिस का आरोप लगता था वो, खत्म हो जाएगा। बाजार इसी आधार पर दौड़ लगा चुका है। बाजार में ये सब कुछ हुआ है मई महीने के दूसरे हफ्ते में। और मई महीने के तीसरे हफ्ते यानी 16 मई को ये तय हो जाएगा कि बाजार की उम्मीदें कितनी पूरी होंगी। मतलब नरेंद्र मोदी आसानी से सरकार बना पाएंगे या नहीं।
चलिए एक बार मान लेते हैं कि 16 मई को जब ईवीएम खोले जाएंगे तो ढेर सारे कमल निशानों के साथ नरेंद्र मोदी सरकार बनाने के लिए रायसीना हिल्स की ओर बढ़ जाएंगे। ये भी मान लेते हैं कि नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी को अकेले 230-240 और बची सीटें आसानी से एनडीए के साथ पूरी हो जाएंगी। नरेंद्र मोदी की वो सरकार बन जाएगी। जो ये कह रही है कि अच्छे दिन आने वाले हैं। अब जरा ये बात कर लें कि अच्छे दिन आने का मतलब क्या। मोटा-मोटा पांच बातें अगर हो जाएं तो मुझे लगता है कि देश के लोग ये मानने लगेंगे कि अच्छे दिन आ गए हैं। सबसे पहले महंगाई कम हो जाए। महंगाई मतलब- सब्जी, अनाज और दूसरी रोज की खाने-पीने चीजें उन्हें सस्ती मिलें। फिर क्या उद्योगों को भरोसा लौटे और वो देश में आसानी से अपने उद्योग लगा चला सकें। फिर क्या कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर अच्छा करने लगे। मतलब कारें, एसी, फ्रिज खूब बिकें। और क्या हो वो ये कि लोगों को सस्ता कर्ज मिले। सस्ती ब्याज दरों पर घर, गाड़ी खरीद सकें। बुनियादी सुविधाएं यानी सड़क, बिजली, पानी की सहूलियत आसानी से मिल सके। और इस सबके लिए सबसे जरूरी कि ढेर सारे रोजगार के मौके बनें। जिससे लोगों की कमाई बढ़े और वो इस तरह से खर्च कर सके, बचा सके कि देश की तरक्की की रफ्तार यानी जीडीपी के आंकड़े दुरुस्त हो सकें। अच्छी बात ये है कि यूपीए दो की सरकार सारी आलोचनाओं के बाद अपने पीछे अच्छा विदेशी मुद्रा भंडार खजाने में छोड़कर जा रही है। लेकिन, दूसरी देश की ऐसी समस्याएं और गंभीर हुई दिख रही हैं जिसको आधार बनाकर नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि उनकी सरकार बनाइए तो अच्छे दिए आएंगे। सबसे ज्यादा चोट पड़ी है तो भारतीयों पर महंगाई की। महंगाई का आलम ये रहा है कि पिछले तीन सालों से हर बार जब महीने का सामान खरीदने के लिए भारतीय निकलता है तो उसे पहले से ज्यादा रकम चुकानी पड़ी है। रोज की जरूरत के सामान तेजी से महंगे हुए हैं। आटा, दाल, चावल, सब्जी, दूध और दूसरी सारी जरूरी चीजें तेजी से महंगी हुई हैं। हर तीसरे महीने अखबारों में विज्ञापन देकर दूध कंपनियां दूध के दाम एक-दो रुपया बढ़ाने के तर्क पेश करती हैं। और सबसे बड़ी बात ये रही है कि यूपीए एक हो या दो- दोनों ही कार्यकाल में देश में मॉनसून बेहतर रहा है और खाद्यान्न के मामले में भारत की स्थिति बहुत अच्छी रही है। इसके बावजूद सरकार अनाज, फल, सब्जी, दूध की कीमत काबू में नहीं कर सकी। और प्याज की कीमतों पर तो कोहराम मचा। अब सवाल ये है कि नरेंद्र मोदी इस मोर्चे पर क्या आसानी से काबू पा लेंगे। तो इसका जवाब नहीं में हैं। क्योंकि, अभी तक जो मौसम का हाल रहा है वो, साफ दिखा रहा है कि इस साल मॉनसून सामान्य से कम हो सकता है जिसका सीधा सा मतलब होगा कि खेती पर बुरा असर पड़ेगा। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हालत का अंदाजा लगाइए कि ताजा कारों की बिक्री का आंकड़ा बढ़ने के बजाए करीब दस प्रतिशत कम बता रहा है। मतलब लोगों की जेब में कारें खरीदने के पैसे नहीं हैं। वो भी तब जब दुनिया की हर कार कंपनी भारतीयों को लुभाने के लिए ढेर सारे नए मॉडल हर महीने ला रही है। देश में महंगे कर्ज की वजह से औद्योगिक घरानों को अपनी विस्तार योजना रोकनी पड़ी है। इससे देसी निवेश बुरी तरह प्रभावित हुआ है। घर खरीदने के लिए ग्यारह प्रतिशत के आसपास और गाड़ी खरीदने के लिए लोगों को साढ़े बारह प्रतिशत से ज्यादा ब्याज देना पड़ रहा है। इसकी वजह से रियल एस्टेट सेक्टर में जबर्दस्त ठहराव आ गया है। दिल्ली, मुंबई के बाजार में साल भर पहले के भाव अभी भी थोड़ा खोजने पर मिल जा रहे हैं। डेवलपर भी फंड की वजह से अपने चल रहे प्रोजेक्ट को पूरा नहीं कर पा रहे हैं और नए प्रोजेक्ट शुरू ही नहीं कर पा रहे हैं। अब रियल एस्टेट सेक्टर को उम्मीद है कि नरेंद्र मोदी आएंगे तो इस सेक्टर में तेजी आएगी लेकिन, सबसे बड़ा सवाल यही है कि जिस तरह की नीतियां भारत सरकार की रियल एस्टेट सेक्टर के लिए उसमें डर यही है कि 16 मई के बाद की रियल एस्टेट की तेजी सिर्फ बुलबुला होगी, काला धन बढ़ाने वाली होगी। वो फायगा करेगी तो रियल एस्टेट डेवलपर्स का। उससे देश की जीडीपी में खास बेहतरी नहीं होने वाली। जीडीपी की बेहतरी की चिंता इसलिए कि जीडीपी ग्रोथ यानी तरक्की की रफ्तार इस समय दशक में सबसे कम यानी साढ़े पांच प्रतिशत की है। और इस वित्तीय वर्ष में भी इसी के आसपास ये रफ्तार रहती दिख रही है। क्योंकि, जब तक अगली सरकार, चाहे वो मोदी की हो या किसी और की, काम शुरू कर पाएगी तब तक इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही बीत चुकी होगी और दूसरी तिमाही का आधार भी बन चुका होगा। ऐसे में इस तरक्की की रफ्तार को चमत्कारिक तरीके से बढ़ाना नरेंद्र मोदी या अगली किसी भी सरकार के लिए चुनौती होगी। बात हमने शेयर बाजार के संकतों से शुरू की थी। इसलिए शेयर बाजार की ही बात फिर से कर लेते हैं और उसके संकेतों को भी ज्यादा गंभीरता से समझने की कोशिश करते हैं। मई के दूसरे हफ्ते में शेयर बाजार में ये जो तेजी देखने को मिली है ये पूरी तरह से उन विदेशी खिलाड़ियों की वजह से है जो एक झटके में अपनी सारी रकम निकालकर किसी दूसरे अच्छे मुनाफा देने वाले ठिकाने की ओर चल देते हैं। यानी 2008 की ही तरह तेजी से विदेशी निवेशक मुनाफा लेकर भागने लगे तो सेंटिमेंट पर चलने वाले बाजार को बचाना बड़ा मुश्किल होगा। शेयर बाजार की तेजी में जो शेयर सबसे तेजी से भागे हैं उनमें बैंक, पावर और रियल एस्टेट सबसे आगे हैं। हालांकि, अच्छी बात ये है कि मई के दूसरे हफ्ते में आई इस तेजी के नेता वो शेयर हैं जिनके फंडामेंटल्स काफी अच्छे हैं और वो लंबे समय से बाजार में आई कमजोरी की वजह से पिट रहे थे। लेकिन, इसी का दूसरा पहली ये भी है कि शेयर बाजार की इस तेजी में नब्बे प्रतिशत से ज्यादा कंपनियां शामिल नहीं हैं और न ही देसी निवेशक इस तेजी का हिस्सा है। शेयर बाजार में भारतीय देसी निवेशकों की रुचि भी कितनी तेजी से खत्म हुई है इसका अंदाजा लगाने के लिए एक आंकड़ा काफी होगा। इस साल के पहले महीने से मार्च महीने में देसी निवेशकों यानी एनएसडीएल के जरिए ट्रेडिंग अकाउंट खुलवाने वाले करीब आधा प्रतिशत घटे हैं। डर ये कि अगर इस बार 16 मई के बाद 2008 जनवरी वाले हालात हुए तो देसी निवेशक ऐसा भागेंगे कि फिर बरसों ये भरोसा वापस लाने में लग जाएगा। इसलिए शेयर बाजार से मिल रहे अच्छे दिन के संकेतों पर सावधानी बरतने की जरूरत है। नई सरकार के सामने बड़ी चुनौतियां होंगी फिर चाहे वो अच्छे दिन लाने का दावा करने वाले नरेंद्र मोदी ही क्यों न हों। लालच से बचने की जरूरत है वरना सरकार कोई भी आए लालच अच्छे दिनों को बुरे दिन में बदल देगा। और भारतीय लोकतंत्र है पूरी तरह अनिश्चित। 99 प्रतिशत मोदी की अच्छे दिन वाली सरकार के साथ एक प्रतिशत दूसरी सरकार भी मानें तो देश की भावनाएं जिस तरह से कमजोर होंगी उन्हें उबारना बहुत बड़ी चुनौती होगी। |
शुक्रवार, 23 मई 2014
इतनी आसानी से अच्छे दिन तो नहीं आने वाले
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