बिनोद रिंगानिया
हम अपनी बात को आगे बढ़ाने से पहले यह बता देना चाहते हैं कि हमारा उद्देश्य असम में बांग्लादेशियों के अवैध प्रव्रजन की समस्या को कम करके आंकना नहीं है,न ही हम चाहते हैं कि अवैध विदेशी नागरिकों की शिनाख्त के काम में ढिलाई बरती जाए। बल्कि हम तो यह भी चाहते हैं कि सभी सीमांत प्रांतों के भारतीय नागरिकों को फोटो पहचान-पत्र दे दिए जाने चाहिए ताकि नए आने वाले किसी भी घुसपैठिए की शिनाख्त करना आसान हो जाए।
हम अपनी बात को आगे बढ़ाने से पहले यह बता देना चाहते हैं कि हमारा उद्देश्य असम में बांग्लादेशियों के अवैध प्रव्रजन की समस्या को कम करके आंकना नहीं है,न ही हम चाहते हैं कि अवैध विदेशी नागरिकों की शिनाख्त के काम में ढिलाई बरती जाए। बल्कि हम तो यह भी चाहते हैं कि सभी सीमांत प्रांतों के भारतीय नागरिकों को फोटो पहचान-पत्र दे दिए जाने चाहिए ताकि नए आने वाले किसी भी घुसपैठिए की शिनाख्त करना आसान हो जाए।
हम असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के उस बयान पर चर्चा करना चाहते हैं, जिसमें उन्होंने कहा है कि असम में मुसलमानों की संख्या में इजाफा होने का कारण उस समुदाय में जन्म दर ज्यादा होना है। मुख्यमंत्री के इस बयान पर तूफान तो नहीं मचा लेकिन विरोध की प्रबल हवाएं जरूर बहना शुरू हो गईं। विरोधियों का कहना है कि ऐसा कहकर मुख्यमंत्री यह साबित करना चाहते हैं कि असम में बांग्लादेशियों का अवैध आगमन नहीं हुआ है। विरोध के स्वर एक बार फिर हमें 1979-85 की याद दिलाते हैं जब असम में चले जबर्दस्त विदेशी भगाओ आंदोलन के नेतृत्व का आचरण इस तरह का था कि सत्य क्या है यह सिर्फ उन्हें ही मालूम है? चूंकि असम में मुसलमान अपने खुद के कारणों से काफी संख्या में (लेकिन शत-प्रतिशत नहीं,क्योंकि तब बदरुद्दीन अजमल का एआईयूडीएफ राज्य विधानसभा में प्रमुख विपक्षी दल कैसे बनता!)कांग्रेस को वोट देता है,इसलिए यह मान लिया गया है कांग्रेस का कोई भी नेता जो कुछ भी कहेगा वह बांग्लादेशियों के बचाव के लिए ही कहेगा। बहुत से लोग यह नहीं देख पा रहे हैं कि तरुण गोगोई एक ही साथ मुस्लिम कार्ड और हिंदू कार्ड खेल लेते हैं। मुसलमान के अलावा हिंदू, खासकर आहोम समुदाय, के समर्थन पर भी आज की प्रदेश कांग्रेस काफी हद तक निर्भर है।
असम में 1971के पहले या बाद कितने बांग्लादेशी आए हैं,इसका हिसाब किसी के पास नहीं है। लेकिन हर कोई कह रहा है कि बांग्लादेशी जरूर आए होंगे क्योंकि इस दौरान सूबे में मुसलमानों की आबादी में इजाफा हुआ है। 1971 में असम में मुस्लिम आबादी 24.56 प्रतिशत थी, जो 2001 में बढ़कर 30.92प्रतिशत हो गई। इसी तरह राज्य के मुस्लिम बहुल जिलों में मुसलमानों के बढ़ते अनुपात पर चिंता व्यक्त की जाती है। धुबड़ी जिला बांग्लादेश से सटा हुआ है और वहां नदी के रास्ते बांग्लादेश आना-जाना बिल्कुल आसान है। वहां की मुस्लिम आबादी का फीसद 1971 के 64.46 से बढ़कर 2001 में 74.29 हो गया। बांग्लादेशियों के मुद्दे पर फिर से आंदोलन छेड़ने वाले संगठन इस जनसंख्या वृद्धि को अवैध प्रव्रजन का अकाट्य प्रमाण मानते हैं।
बिना इस प्रश्न का उत्तर दिए कि क्या असम में 1971 के बाद भी बड़ी संख्या में बांग्लादेशी प्रव्रजन हुआ है, हम सिर्फ इस बात की पड़ताल करेंगे कि क्या 1971 से 2001 तक के जनगणना के आंकड़े बड़ी संख्या में अवैध घुसपैठ का संकेत देते हैं? धुबड़ी में मुस्लिम आबादी 1971 की 64.46 फीसदी से बढ़कर 2001 में 74.29 हो गई। यानी 30 सालों में इस जिले में मुसलमानों की संख्या में 119 फीसदी बढ़ोतरी हुई। समूचे असम राज्य में इन 30 सालों के दौरान मुसलमानों की आबादी में 129.5 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई और देश भर की मुस्लिम जनसंख्या में इस दौरान 133.3 फीसदी इजाफा हुआ।
हो सकता है धुबड़ी जिले में और असम में 1971के बाद भी बड़ी संख्या में अवैध रूप से लोग बांग्लादेश से आए हों। लेकिन कम-से-कम जनगणना के आंकड़ों से यह सिद्ध नहीं होता। जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि इन 30 सालों में असम में यदि मुसलमानों की संख्या 129.5 फसदी बढ़ी है, तो सारे भारत में इस समुदाय की आबादी इससे भी अधिक यानी 133.3 फीसदी बढ़ी है। जाहिर है हमें देश के स्तर पर मुस्लिम आबादी में इतनी अधिक बढ़ोतरी की व्याख्या करने के लिए दूसरे कारण खोजने होंगे, क्योंकि यह तो नहीं कहा जा सकता कि इन 30 सालों में मुस्लिम समुदाय में जो आठ करोड़ के लगभग नए सदस्य शामिल हुए हैं, वे बांग्लादेश से आए हैं।
जनगणना के आंकड़े साफ बताते हैं कि 1971 से 2001 तक की अवधि में भारत में मुसलमानों की संख्या में वृद्धि 133.3 फीसदी हुई, जबकि सभी समुदायों के लिए यह आंकड़ा 87.37 फीसदी था। इस तरह मुस्लिम और गैर-मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि दर में काफी फर्क है और यह देश में राजनीतिक तनाव का एक अहम कारण रहा है। असम में आलोच्य अवधि में सभी समुदायों की जनसंख्या वृद्धि दर अखिल भारतीय औसत से कम यानी 82फीसदी रही। हम इन आंकड़ों को जानने के लिए इसलिए भी विशेष तौर पर उत्सुक थे,क्योंकि विदेशी भगाओ आंदोलन के दौरान असम में बाकी भारत की तुलना में असामान्य रूप से अधिक जनसंख्या वृद्धि को अवैध बांग्लादेशी प्रव्रजन के अकाट्य तर्क के रूप में पेश किया गया था और चिंतित होने तथा समस्या का समाधान खोजने के लिए उद्यत होने का यह एक सही कारण था भी।
2011 के आंकड़े साफ दिखाते हैं कि भारत की कुल उर्वरता दर (टोटल फर्टिलिटी रेट या टीएफआर) 2.6 रही, जबकि इसी वर्ष मुसलमानों के लिए यह दर 3.1 थी। टीएफआर का मतलब है एक महिला उम्र भर में कितने बच्चों को जन्म देती है। जब तक यह दर सभी समुदायों के लिए 2.0 के नजदीक नहीं आती, तब तक भारत में यह सामाजिक और राजनीतिक तनाव का कारण बना रहेगा। यह 2.0 के आसपास आने पर इसे स्थिरता लाने वाली दर कहा जाता है यानी तब उस समुदाय की कुल आबादी लगभग स्थिर हो जाती है। यहां इस बात का उल्लेख किए बिना बात अधूरी रह जाएगी कि "औसत भारतीय' और मुसलमान - दोनों ही मामलों में कुल उर्वरता दर में लगातार कमी आ रही है। 1998-99 में मुसलमानों में यह दर 3.6 थी और "औसत भारतीय' में 2.85। मुसलमानों में टीएफआर का 3.6से घटकर 3.1तक आना एक अच्छा संकेत है -समुदाय और देश दोनों के लिए। औसत भारतीय के मामले में गत 50सालों में यह दर लगभग आधी हो गई है। यहां यह भी उल्लेख करना जरूरी है कि बांग्लादेश में परिवार नियोजन कार्यक्रम को इस तरह लोकप्रिय किया गया कि वहां कुल उर्वरता दर 2011में सिर्फ 2.2रह गई। यह आंकड़ा भारत को मुंह चिढ़ाने वाला है,जिसके तथाकथित विकसित राज्य गुजरात में यह दर अब भी 2.5 और हरियाणा में 2.3 है।
2011 के आंकड़े साफ दिखाते हैं कि भारत की कुल उर्वरता दर (टोटल फर्टिलिटी रेट या टीएफआर) 2.6 रही, जबकि इसी वर्ष मुसलमानों के लिए यह दर 3.1 थी। टीएफआर का मतलब है एक महिला उम्र भर में कितने बच्चों को जन्म देती है। जब तक यह दर सभी समुदायों के लिए 2.0 के नजदीक नहीं आती, तब तक भारत में यह सामाजिक और राजनीतिक तनाव का कारण बना रहेगा। यह 2.0 के आसपास आने पर इसे स्थिरता लाने वाली दर कहा जाता है यानी तब उस समुदाय की कुल आबादी लगभग स्थिर हो जाती है। यहां इस बात का उल्लेख किए बिना बात अधूरी रह जाएगी कि "औसत भारतीय' और मुसलमान - दोनों ही मामलों में कुल उर्वरता दर में लगातार कमी आ रही है। 1998-99 में मुसलमानों में यह दर 3.6 थी और "औसत भारतीय' में 2.85। मुसलमानों में टीएफआर का 3.6से घटकर 3.1तक आना एक अच्छा संकेत है -समुदाय और देश दोनों के लिए। औसत भारतीय के मामले में गत 50सालों में यह दर लगभग आधी हो गई है। यहां यह भी उल्लेख करना जरूरी है कि बांग्लादेश में परिवार नियोजन कार्यक्रम को इस तरह लोकप्रिय किया गया कि वहां कुल उर्वरता दर 2011में सिर्फ 2.2रह गई। यह आंकड़ा भारत को मुंह चिढ़ाने वाला है,जिसके तथाकथित विकसित राज्य गुजरात में यह दर अब भी 2.5 और हरियाणा में 2.3 है।
मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने असम में मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि का कारण अशिक्षा बताया था। ऐसा कहते हुए उन्हें भान होगा कि आखिर यह बात उलटकर उन्हीं पर आएगी कि तब आपकी सरकार ने अशिक्षा खत्म करने के लिए कुछ किया क्यों नहीं। लेकिन फिर भी उन्होंने मुस्लिम जनसंख्या वृद्धि जैसे मसले को उठाने का साहस किया। हो सकता है मुख्यमंत्री ने जो कारण बताया है वही कारण सही नहीं हो या एकमात्र कारण नहीं हो। लेकिन इस पर कोई विवाद की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए कि जनसंख्या नियंत्रण के मामले में बांग्लादेश ने सीमित संसाधनों और हमारी तुलना में कम प्रति व्यक्ति आय के बावजूद जो उपलब्धि हासिल की है, भारत और असम को भी उस दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। कहीं भी आबादी का ढांचा गड़बड़ाने से रोकने की दिशा में यही कदम अंततः
लेखक बिनोद रिंगानिया गुवाहाटी में दैनिक पूर्वोदय के सलाहकार संपादक हैं। इनसे संपर्कः bringania@gmail.com के जरिए किया जा सकता है
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