मंगलवार, 2 सितंबर 2014

आर्थिक छुआछूत’ के विरुद्ध शंखनाद

प्रणय विक्रम सिंह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘जन-धन योजना’ के माध्यम से ‘आर्थिक छुआछूत’ के विरुद्ध शंखनाद कर दिया है। ‘मेरा खाता भाग्यविधाता’ के नारे के साथ प्रारंभ की गई प्रधानमंत्री जन-धन योजना के पहले ही दिन डेढ़ करोड़ खाते खोले गए और पूरी दुनिया की बैंकिग व्यवस्था में एक नया कीर्तिमान जुड़ गया। प्रधानमंत्री ने अपने चुनावी भाषणों में आर्थिक छुआछूत मिटाने का जो वादा किया था, उसको पूरा करने का प्रयास प्रारंभ तो हो गया, लेकिन यह कितना सफल होगा, इसका पता आने वाले दिनों में ही चलेगा। दीगर है कि देश की कुल आबादी का चौथाई हिस्सा साहूकारों के चंगुल में फंसा हुआ है। बैंक की कई योजनाओं व वहां उनका खाता नहीं होने से वह साहूकारों से ऋण लेकर अपनी जरूरतों को पूरा करता रहा और यही कारण रहा है कि देश का यह गरीब तबका कभी बंधुआ मजदूर बनने के लिए मजबूर रहा तो कभी दस से पंद्रह प्रतिशत की ब्याज दर पर कर्ज न चुका पाने के कारण आत्महत्या जैसे कदम उठाने के लिए मजबूर होता रहा। किसी भी लोकतांत्रिक देश में ऐसी अमानवीय प्रथाओं के लिए कोई जगह नहीं हो सकती। बेशक इंदिरा गांधी ने 1969 में 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके गरीबी हटाओ का नारा दिया हो मगर बैंकों के दरवाजे गरीब आदमी के लिए ऐसे राजमहलों के द्बार ही बने रहे जिसमें पैर रखते ही वे द्बारपाल से लेकर मनसबदारों की निगाहों में ‘भिखारियों’ की तरह चुभ जाते थे मगर नरेंद्र मोदी ने जन-धन योजना को लागू करके स्वतन्त्र भारत में उस लोकतन्त्र को साकार करने की दिशा में निर्णायक कदम उठा दिया है जिसकी परिकल्पना महात्मा गांधी ने आजादी से पहले की थी और आजादी के बाद जिसके लिए डा. राम मनोहर लोहिया, आचार्य नरेन्द्र देव व दीनदयाल उपाध्याय जैसे अलग-अलग दलों के नेताओं ने अपने-अपने हिसाब से प्रयास किया था। बैंक राष्ट्रीयकरण से पहले ही डा. लोहिया कहा करते थे कि आजाद भारत में तब तक आर्थिक प्रगति का उजाला गरीब की झोंपड़ी में नहीं पहुंच सकता जब तक कि राष्ट्रीय पूंजी में उसकी हिस्सेदारी तय न हो जाये अर्थात बैंकों से उसे उसी प्रकार ऋण न मिले जिस प्रकार किसी उद्योगपति को मिलता है। आचार्य नरेन्द्र देव ने 1953 में राज्यसभा में कहा था कि मैं उस दिन भारत को आजाद मानूंगा जिस दिन किसी खोमचे वाले को बैंक उसके

व्यवसाय के लिए ऋण देगा। दीनदयाल उपाध्याय ने इसे और आगे ले जाते हुए कहा था कि गांवों में बसने वाले असली भारत और पूरे देश की सड़कों पर अपनी रोजी-रोटी की जद्दोजहद में लगे करोड़ों लोग जिस दिन राष्ट्रीय वित्तीय प्रबन्धन से जुड़ जायेंगे वही आजाद भारत के लिए सूर्योदय होगा। अपेक्षित सूर्योदय की लालिमा दिखाई पड़ने लगी है। एक दिन में डेढ़ करोड़ बैंक खाते खुलना और फिर हर परिवार को खाता देने की सघन मुहिम छेड़ना पूरी दुनिया के किसी भी देश में आज तक नहीं हुआ है। इसे हम असली आर्थिक क्रान्ति की शुरूआत की तरफ बढने का कदम मानते हैं। यह वित्तीय पारदर्शिता को किस तरह बढ़ायेगा इसकी कल्पना अभी नहीं की जा सकती। प्रधानमंत्री की यह योजना गरीबी दूर करने और समाज कल्याण की दिशा में एक कदम और आगे जाने के प्रयास के रूप में भी देखी जा सकती है। गरीबों और विशेषकर छोटे किसानों को जब ऋण की आवश्यकता होती है, तो वे साहूकारों के पास जाते हैं और शोषण के शिकार होते हैं। हजारों किसान प्रतिवर्ष इन परिस्थितियों में आत्महत्या तक कर लेते हैं। साहूकारों की मनमानी दूर-दराज के गांवों में अब भी है। जब तक आर्थिक छुआछूत समाप्त नहीं होती, गरीबों को बैंकिग तंत्र से जोड़ा नहीं जाता, तब तक इस समस्या का निदान संभव नहीं है। प्रथम चरण में जो खाते खोले जाएंगे, उनके धारकों को 3०,००० रुपए का जीवन बीमा और एक लाख रुपए का दुर्घटना-मृत्यु बीमा मुफ्त में दिया जाएगा। जिन लोगों के अभी तक बैंकों में खाते नहीं हैं, उन्हें इस योजना के तहत एक डेबिट कार्ड भी उपलब्ध कराया जाएगा। खाता छह महीने तक चलते रहने पर धारक को 25०० रुपये का ऋण और उसके बाद खाता बराबर चलने पर 5००० रुपए तक का ऋण मिल सकता है। मृत्यु या दुर्घटना बीमा राशि देय तभी होगी, जब घटना के 45 दिन पूर्व तक खाता चलता रहा। खास बात यह है कि यह सुविधा देते हुए मोदी सरकार बहुत बड़ा दांव भी खेल रही है। पहले से मुसीबत में चल रहे बैंकों पर यह योजना करोड़ों रुपए का बोझ बढ़ाने का काम कर सकते हैं। ग्रामीण इलाकों में करीब 42 फीसदी लोगों के पास बैंक खाता नहीं है। जिनके पास खाते हैं भी वह डॉर्मेट अकाउंट हो चुके हैं। इसका मतलब यह है कि इन खातों में पैसे ही नहीं हैं या इसका संचालन कोई भी नहीं कर रहा। ऐसे में अगर 1.5 करोड़ लोग 5००० रुपए की ओवरड्राफ्ट सुविधा दी जाएगी और ऐसे में अगर यह रकम डिफॉल्ट हुई तो करीब 7.5० हजार करोड़ रुपए का चूना लग जाएगा। देश में इस काम के लिए उपलब्ध बुनियादी ढांचे की कमजोरी की वजह से इस लक्ष्य की ओर बढ़ने में दिक्कत आ रही हैं। इस योजना के तहत अगले वर्ष 26 जनवरी तक साढ़े सात करोड़ नए खाते खोलने का लक्ष्य तय किया गया है। गरीबों, छोटे किसानों व कुटीर उद्योगों में लगे करोड़ों नागरिकों के अतिरिक्त यह योजना महिलाओं और युवकों को विशेष लाभ पहुंचाना चाहती है। महिलाएं अब अपनी बचत के पैसे बैंकों में सुरक्षित रख सकती हैं। अपनी सामाजिक हकीकत पर ध्यान दें तो यह एक बहुत बड़ी बात है। योजना के दूसरे चरण में बीमा (माइक्रो इंश्योरेंस) और पेंशन की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाना प्रस्तावित हैं। प्रधानमंत्री जन-धन योजना के उद्देश्य तो प्रशंसनीय हैं, कितु इसका क्रियान्वयन आसान नहीं है। हमें अपनी बैंकिग व्यवस्था का तेजी से विस्तार करना होगा। अगले दो-तीन वर्षों में कम से कम 5०,००० नई बैंक शाखाएं खोलनी होंगी, जो दूर-दराज के गांवों, पहाड़ी और रेगिस्तानी इलाकों को जोड़ सकेंगी। शाखाओं के अभाव में मोबाइल बैंकिग का नेटवर्क विकसित करना होगा। इसके अतिरिक्त बड़ी संख्या में प्रशिक्षित कर्मचारियों की आवश्यकता होगी और केंद्रीय बजट में अच्छी-खासी धनराशि इसके लिए आवंटित करनी होगी। इस योजना पर सही तरह अमल के लिए राज्य सरकारों का साथ भी जरूरी है। प्रशासन में समन्वय और चुस्ती से ही बेहतर नतीजे हासिल किए जा सकते हैं। इसके साथ ही ऐसी कोई पहल भी करनी होगी, जिससे बैंकों का अपने उपभोक्ताओं के प्रति रवैया बदले। अभी भी खाताधारक बैंकों में छोटे-छोटे कामों के लिए धक्के खाते देखे जाते हैं। यह स्थिति भी बदलनी होगी। भारत में वित्तीय समावेशन की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही थी। इसके पीछे यह विचार था कि यदि देश गरीबी से पार पाना चाहता है, योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों तक पहुंचाना चाहता है, सब्सिडी के बंदरबांट से निजात पाना चाहता है, कुल मिलाकर विकास के लाभ को अंतिम आदमी तक पहुंचाना चाहता है, तो वित्तीय समावेशन इसकी सीढ़ी बन सकती है। यह योजना गैरजरूरतमंदों को सब्सिडी रोकने में मददगार साबित हो सकती है। सरकार विभिन्न योजनाओं के तहत नागरिकों को सब्सिडी देती है। अब सब्सिडी को सीधे कैश के रूप में हस्तांतरण किया जा सकता है। हालांकि इसके लिए सभी खातों को आधार के साथ जोड़ा जाएगा। वहीं किसान कार्ड अब इसी योजना के तहत जारी होंगे। और मनरेगा के तहत मजदूरी का भुगतान इन्हीं खातों के जरिए होगा। असंगठित क्षेत्र में पेंशन योजना को भी इसी से जोड़ा जाएगा। इससे नगदी का इस्तेमाल कम होने से भ्रष्टाचार भी कम होगा। इस प्रकार इसका अर्थ सिर्फ खाता खोलना ही नहीं बल्कि इससे बढ़कर है। यह योजना आम आदमी को सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा तो देगी ही, इससे बैंकिग और बीमा सेक्टर में भी तेजी आएगी। इससे अर्थव्यवस्था का विस्तार होगा, गरीबों को बचत करने का माध्यम मिलेगा। देश में एक समस्या रही है कि योजनाओं का शुभारंभ तो काफी जोर शोर से होता है परंतु वे शुरुआती कुछ दिनों के बाद दम तोड़ने लगती हैं, उनमें शिथिलता आ जाती है। किंतु सरकार के इस प्रयास को सफल होना अपरिहार्य है क्योंकि सरकार की प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण योजना की सफलता पूरी तरह से वित्तीय समावेशन की सफलता पर ही निर्भर है और इस तथ्य के संकेत मिल रहे हैं कि व्यवस्था वित्तीय समावेश की किरणों के माध्यम से आर्थिक गुलामी के घोर तिमिर को हरने के प्रति गंभीर है।

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