मालेगांव, अजमेर शरीफ, मक्का मस्जिद से लेकर समझौता ब्लास्ट तक मामलों में गिरफ़्तार असीमानंद के पीछे कौन है? यह बहुत बड़ी गुत्थी है? वास्तविक खोजी पत्रकारिता में दिलचस्पी रखने वाले किसी भी पत्रकार या अख़बार/ न्यूज़ चैनल के लिये यह बहुत आकर्षक स्टोरी आइडिया है लेकिन अफ़सोस है कि अब तक किसी ने गम्भीरता और सक्रियता से इसकी पड़ताल नहीं की। क्यों? बताने की ज़रूरत नहीं है।
‘कारवाँ’ पत्रिका को बधाई कि उसने इस गुत्थी को सुलझाने की कोशिश की है। अब यह बाक़ी अख़बारों/ न्यूज़ चैनलों की ज़िम्मेदारी है कि इसकी आगे पड़ताल करें और सच्चाई को सामने ले आएँ।
वैसे असीमानंद और उनके साथियों में इन बम ब्लास्ट और लोगों को मारने के विचार कहाँ से आए हैं, यह किसी से छुपा नहीं हैं। सच यह है कि किसी को असीमानंद के पीछे खड़े सांप्रदायिक घृणा के विचार और साथियों की पहचान करनी है तो वह भगवा सांप्रदायिक फासीवाद की राजनीति ही है।
असीमानंद के ज़रिए सामने आई सच्चाई बड़ा मुद्दा है याजेल में इंटरव्यू कैसे हो गया? जेल में यह पहला इंटरव्यू नहीं है, पत्रकार ऐसे इंटरव्यू करते रहे हैं। 80 के दशक की सबसे बड़ी खोजी रिपोर्ट- भागलपुर अंखफोड़वा कांड का पर्दाफ़ाश ऐसे ही हुआ था। उस समय पुलिस से नाराज़ जेल अधिकारियों ने ही पत्रकारों की मुलाक़ात पीड़ितों से करवाई थी।
इसलिए मुद्दा इंटरव्यू की सत्यता, असीमानंद की आवाज़ और रिपोर्ट में उसकी अन्य स्रोतों से की गयी छानबीन का है। देशभक्ति के ठेकेदारों का उस पर क्या कहना है?
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